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स्वतंत्रता संग्राम में बाबा अच्युतानंद झा की रही अहम भूमिका

सुपौल : कहते हैं कि आदमी का शरीर खत्म हो जाता है लेकिन उनकी कीर्ति कभी नहीं मिटती. उनकी उपलब्धियां हमेशा शीशे में सजी तस्वीर की तरह चमकती रहती है. कुछ ऐसे ही कीर्ति है जाने माने हैं प्रखर स्वतंत्रता सेनानी सदर प्रखंड के जगतपुर गांव निवासी स्व बाबा पंडित अच्युतानंद झा की. उन्होंने अपने […]

सुपौल : कहते हैं कि आदमी का शरीर खत्म हो जाता है लेकिन उनकी कीर्ति कभी नहीं मिटती. उनकी उपलब्धियां हमेशा शीशे में सजी तस्वीर की तरह चमकती रहती है. कुछ ऐसे ही कीर्ति है जाने माने हैं प्रखर स्वतंत्रता सेनानी सदर प्रखंड के जगतपुर गांव निवासी स्व बाबा पंडित अच्युतानंद झा की. उन्होंने अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय देश के लिए कुर्बान कर दिया. वे बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के थे. साथ ही उनके अंदर देश भक्ति की भावना भरी हुई थी. उनका जन्म तत्कालीन जिला भागलपुर अंतर्गत सुपौल अनुमंडल से महज दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित जगतपुर गांव में हुआ था. उनकी आरंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूलों में हुई थी.

बचपन से ही उनमें संघर्ष का जज्बा एवं देश प्रेम की भावना मौजूद थी. क्रांतिकारी स्वभाव के स्व अच्युतानंद झा के मन में उम्र बढ़ने के साथ ही देश के लिए समर्पण का जुनून बढ़ने लगा और वे देश की आजादी के लिए जारी स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़े.

दांडी यात्रा व भारत छोड़ो आंदोलन में हुए थे शामिल

राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत बाबा पंडित अच्युतानंद झा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध पहले दांडी यात्रा में शामिल हुए. इस बीच उनके ऊपर पारिवारिक दायित्व व जिम्मेदारी पड़ी. लेकिन उन्होंने देश हित को प्राथमिकता देते हुए आजादी की जंग जारी रखी. इसके कारण वे अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बने रहे. यहां तक कि कई देश भक्त भी उनके साहसिक भूमिका से हतप्रभ थे. वे 09 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल हुए.

इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें हिरासत में लेकर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. अंग्रेजों ने उन्हें जेल के अंदर प्रताड़ित भी किया. उनके साथ स्वतंत्रता सेनानी स्व जयराम मिश्र सहित कई साथी भी इस आंदोलन में शरीक थे. स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 15 अगस्त 1886 को ही हुआ था. जबकि उनकी मृत्यु 09 अगस्त 1971 को हुई. वहीं उक्त दोनों तिथि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए खास रही है. एक तरफ जहां 09 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन का महापुरुषों द्वारा आगाज किया गया था. वहीं 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली. उन्हें आज समाज व देश उनके शिलापट्ट पर अंकित नाम को देख शत-शत नमन करता है.

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