बिहार का ऐसा जिला जहां आज एक किलोमीटर भी नहीं चल रही ट्रेन, …जानें क्या है मामला?
सुपौल :देश में ट्रेन परिचालन शुरू किये जाने के करीब 165 साल बीत जाने के बाद आज जहां देश बुलेट ट्रेन के परिचालन का सपना पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. वहीं, देश में एक ऐसा भी जिला है, जहां एक किलोमीटर भी ट्रेन नहीं चलती है. यह भी पढ़ें :बोतल नहीं, […]
सुपौल :देश में ट्रेन परिचालन शुरू किये जाने के करीब 165 साल बीत जाने के बाद आज जहां देश बुलेट ट्रेन के परिचालन का सपना पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. वहीं, देश में एक ऐसा भी जिला है, जहां एक किलोमीटर भी ट्रेन नहीं चलती है.
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पूर्व रेल मंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र ने संपूर्ण देश में रेलवे के विस्तार और विकास की सोच को परिलक्षित किया था. उन्होंने कोसी के दुरुह इलाके में भी रेलवे का जाल बिछाने की परिकल्पना की थी. सहरसा से सुपौल तक आनेवाली रेल को फारबिसगंज तक पहुंचाया. लेकिन, उनकी असमय मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परिकल्पना अधूरी रह गयी. आज एक बार फिर केंद्र सरकार उनकी परिकल्पनाओं को मूर्त रूप देने में लगी है.विडंबना है कि उनके गृह जिला सुपौल में आज स्थिति ऐसी है कि यहां वर्तमान में एक किमी भी रेल नहीं चलती है. वहीं, सहरसा-फारबिसगंज और सरायगढ़-निर्मली रेलखंड में आमान परिवर्तन कार्य की रफ्तार भी कछुए की गति में चल रही है. अब लोगों के लिए इंतजार करना ही बचा है.
मेगा ब्लॉक के बीत गये छह साल
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने करीब 15 साल पूर्व छह जून, 2003 को निर्मली अनुमंडल मुख्यालय में बड़ी रेल लाइन एवं कोसी महासेतु निर्माण की नींव रखी गयी थी, जिससे लोगों को इलाके में विकास की उम्मीद जगी थी. लेकिन, दुर्भाग्य है कि इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस रेलखंड पर ट्रेनों का परिचालन तो दूर, अमान परिवर्तन कार्य भी पूरा नहीं हो पाया है. मालूम हो कि वर्ष 2008 में कुसहा त्रासदी के बाद राघोपुर से फारबिसगंज के बीच बाढ़ की चपेट में रेल पटरियां ध्वस्त हो गयी थी. पुन: 20 जनवरी, 2012 को रेल मंत्रालय द्वारा राघोपुर-फारबिसगंज के बीच अमान परिवर्तन को लेकर लगाया गया मेगा ब्लॉक का कार्य भी अभी पूर्ण होना शेष ही था कि नवंबर 2015 में राघोपुर से थरबिटिया एवं 25 दिसंबर, 2016 को थरबिटिया से सहरसा के बीच मेगा ब्लॉक के नाम पर ट्रेनों का परिचालन ठप कर दिया गया.
सुस्त है निर्माण कार्य की रफ्तार
इस रेलखंड पर मेगा ब्लॉक के बाद लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब शीघ्र ही अमान परिवर्तन का कार्य पूर्ण होगा. इसके बाद बड़ी लाइन की पटरियों पर नयी ट्रेनें दौड़ेगी और कोसी प्रभावित इस जिले का भी भाग्योदय होगा. लेकिन, विडंबना है कि कार्य की सुस्त गति में लोगों की आशाओं को कुंठित कर दिया है. वर्षों बीत जाने के कारण लोग निराश हो रहे हैं. वहीं, इन कालखंड में जन्म लेनेवाले नौनिहाल बच्चे भी अब जिले में ट्रेनों की उपलब्धि के संबंध में पूछताछ करने लगे हैं. हैरत की बात है कि सीमावर्ती क्षेत्र रहने के बावजूद सुपौल जिले को रेल सेवा से पूरी तरह महरूम कर दिया गया है और विभागीय अधिकारी चैन की बंशी बजा रहे हैं. लोगों को इस बात का भी आश्चर्य है कि जब सहरसा से बरूआरी के बीच बड़ी रेल लाइन की पटरियां बिछ चुकी है, तो फिर यहां तक ट्रेनों का परिचालन क्यों नहीं प्रारंभ किया गया. शुरुआती दौर में कार्य की गति देख कर लगा था कि साल-डेढ़ साल में यह कार्य पूरा कर लिया जायेगा. लेकिन, आलम यह है कि स्थानीय रेलवे स्टेशन पर ही करीब डेढ़ साल पूर्व बिछायी गयी पटरियों पर अब घास निकल आये हैं.