तुम्हारी भी जय-जय हमारी भी जय-जय…
सुपौल : चुनावी सरगर्मी जिले में जोर पकड़ चुकी है. सभी प्रत्याशी धुंआधार चुनाव प्रचार में जुटे हैं. ऑटो, मैजिक जैसे वाहनों पर लगे लाउडस्पीकर गूंज रहे हैं. क्षेत्र में प्रत्याशी के साथ ही उनके कार्यकर्ता व समर्थकों की टोली भी घूम रही है. मतदाताओं को लुभाने व तरह-तरह के वादों व दलीलों से उनका […]
सुपौल : चुनावी सरगर्मी जिले में जोर पकड़ चुकी है. सभी प्रत्याशी धुंआधार चुनाव प्रचार में जुटे हैं. ऑटो, मैजिक जैसे वाहनों पर लगे लाउडस्पीकर गूंज रहे हैं. क्षेत्र में प्रत्याशी के साथ ही उनके कार्यकर्ता व समर्थकों की टोली भी घूम रही है. मतदाताओं को लुभाने व तरह-तरह के वादों व दलीलों से उनका समर्थन हासिल पाने की कोशिश की जा रही है.
दोनों प्रमुख गठबंधनों का कार्यालय इन दिनों विशेष रूप से गुलजार दिख रहा है. कार्यालय के बाहर झंडा, बैनर, पोस्टर से सजी खड़ी दर्जनों वाहन व प्रचार गाड़ियों के अलावा कार्यालय परिसर में कार्यकर्ताओं व आने-जाने वाले लोगों की भीड़ यह एहसास करा रही है कि चुनावी घमासान पूरे परवान पर है.
अहले सुबह से ही यहां भीड़ जुटने लगती है. जो देर शाम तक जारी रहता है. कार्यकर्ताओं को क्षेत्र में जाने के लिये वाहन, बैनर, पोस्टर, झंडे आदि उपलब्ध कराना उनमें तेल भराना, बाइक सवार कार्यकर्ता को पेट्रोल उपलब्ध कराना, भोजन की व्यवस्था करना, उन्हें खर्चा-पानी देना, तकरीबन दिन भर जारी रहता है.
इस बीच कार्यकर्ता अपने वरीय नेताओं व पार्टी अधिकारियों को यह भी रिपोर्ट करते हैं कि कहां उन्हें भारी जन समर्थन मिल रहा है या फिर कहां कौन से मतदाता नाराज हैं. फिर ऐसे मतदाताओं को मनाने के लिये नीतियों का निर्धारण होता है.
वोट मैनेज करने के नाम पर जम कर खर्च भी किया जाता है. सूत्रों की मानें तो इस चुनावी जंग में जहां अधिकांश कार्यकर्ता पूरी ईमानदारी और निष्ठा से अपने पार्टी व गठबंधन प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के लिये दिन-रात एक कर रहे हैं. वहीं चुनावी होड़ में कई ऐसे भी मौकापरस्त तथाकथित कार्यकर्ता हैं, जो इस अनुकूल मौके का भरपूर लाभ उठाने में नहीं चूक रहे.
ऐसे कार्यकर्ताओं का सही मायनों में कोई जमीनी वजूद नहीं होता. लेकिन बोलने में तेज तर्रार व चापलूस किस्म के ये लोग सही मौके पर प्रत्याशी व उनके मुख्य करपतदार के पास पहुंच कर बड़े शातिराना अंदाज में बताते हैं कि उन्होंने आज फलां जगह वोटरों को एकदम ठीक कर लिया है, या फिर फलां जगह वोट को मैनेज करने की दरकार है, जिसमें इतना खर्च आयेगा.
ऐसे शातिर लोग प्रत्याशी व आलाकमान को क्षेत्र में मिल रहे अपार समर्थन एवं सुनिश्चित जीत की झूठी रिपोर्ट कर उन्हें फीलगुड भी कराते हैं. मकसद एक ही होता है, पैसे ऐंठना. ऐसे लोगों की अपनी दलीलें भी है. कहते हैं कि भाई चुनाव तो यूं ही होता रहता है. जीतने वाले जीत कर दिल्ली उड़ जाते हैं. वहीं हारने वाले फिर वापस अपने घर लौट जाते हैं.
चुनावी मेला खत्म हो जाने के बाद फिर कोई नहीं पूछता. यही वजह है कि जो हाथ-सो ही साथ. कमाल की बात है कि ऐसे कई तथाकथित कार्यकर्ता भी हैं, जो आपको दिन में किसी दल तो फिर रात में किसी और दल के कार्यालय में अपनी गोटी सेट करते नजर आते हैं. इनका कोई दल व सिद्धांत नहीं होता. बस एक ही नारा होता है ‘तुम्हारी भी जय-जय और हमारी भी जय-जय, ना तुम हारे और ना हम…’
प्रत्याशियों को फीलगुड करा कर पैसा ऐंठने का होता है खेल
दिन में कहीं तो रात में अंधियारे में कहीं और नजर आते हैं ऐसे लोग