फोटो – 07कैप्सन- डीएम लक्ष्मी प्रसाद चौहान प्रतिनिधि, सुपौलबच्चों में मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट जानने की उत्कंठा हमेशा से बरकरार रही है. फर्क सिर्फ सूचना तंत्र के स्रोत में आया है. वर्तमान में मोबाइल व इंटरनेट के विकास से पूरी दुनिया में घर बैठे रिजल्ट जानना आसान हो गया है. पहले परीक्षा का परिणाम बंद लिफाफे में स्कूल में भेजा जाता था, लिहाजा छात्रों को परिणाम की जानकारी कई दिनों बाद मिल पाती थी. जिलाधिकारी लक्ष्मी प्रसाद चौहान ने अपने स्कूली जीवन को याद करते हुए बताया कि 1972 में उन्होंने उच्च विद्यालय कटिहार से मैट्रिक की परीक्षा दी थी. उस जमाने में टेली प्रिंटर के माध्यम से सदर पोस्ट ऑफिस में रिजल्ट प्रिंट कर दीवार पर चिपका दिया जाता था. मजेदार बात यह है कि कुछ ही घंटों बाद परीक्षा में असफल छात्र उसे फाड़ कर फेंक देते थे. नतीजतन वंचित छात्रों को कई दिनों के बाद स्कूल में रिजल्ट आने पर ही परिणाम की जानकारी मिल पाती थी. रिजल्ट देखने की उत्सुकता व तौर-तरीके भी आज के जमाने से भिन्न होते थे. परिणाम जानने के बाद छात्र अपने गुरुजन व माता-पिता को प्रणाम करते थे, जिसमें आज बदलाव आ गया है.
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तब टेली प्रिंटर पर आता था परीक्षा परिणाम :डीएम
फोटो – 07कैप्सन- डीएम लक्ष्मी प्रसाद चौहान प्रतिनिधि, सुपौलबच्चों में मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट जानने की उत्कंठा हमेशा से बरकरार रही है. फर्क सिर्फ सूचना तंत्र के स्रोत में आया है. वर्तमान में मोबाइल व इंटरनेट के विकास से पूरी दुनिया में घर बैठे रिजल्ट जानना आसान हो गया है. पहले परीक्षा का परिणाम बंद […]
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