दीपों का त्योहार आज, दिख रहा उत्साह
सुपौल : त्योहारों का मौसम जारी है. कोसी के इलाके में दीपावली के त्योहार को लेकर उत्साह का माहौल है. मंगलवार को जिले भर में नरक चतुर्दशी व छोटी दीपवली का त्योहार मनाया गया. दीपावली को लेकर मुख्यालय सहित प्रखंड क्षेत्र के बाजारों को आकर्षक तरीके से सजाया गया है. कहीं मिट्टी से बने दीया […]
सुपौल : त्योहारों का मौसम जारी है. कोसी के इलाके में दीपावली के त्योहार को लेकर उत्साह का माहौल है. मंगलवार को जिले भर में नरक चतुर्दशी व छोटी दीपवली का त्योहार मनाया गया. दीपावली को लेकर मुख्यालय सहित प्रखंड क्षेत्र के बाजारों को आकर्षक तरीके से सजाया गया है. कहीं मिट्टी से बने दीया की बिक्री, तो कहीं चायनिज इलेक्ट्राॅनिक सामग्रियों की खरीदारी में लोग जुटे हुए हैं. विद्यालयों में भी छुट्टी हो गयी है. इसे लेकर बच्चों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. दीपावली के मौके पर व्यवसायियों ने विभिन्न प्रकार के पटाखा व फुलझड़ियों का स्टॉल लगाया गया है.
एक तरफ जहां युवा वर्ग पटाखे छोड़ कर दीपावली की खुशियां मनाने को लेकर उत्सुक हैं. वहीं छोटे-छोटे बच्चे फुलझड़ी व अनार की खरीदारी कर रहे हैं.
पांच दिवसीय त्योहार है काफी प्रचलित: सोमवार को धनतेरस से प्रारंभ हुआ यह त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि तक जारी रहेगा. पांच दिवसीय इस त्योहार में कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली, अमावस्या तिथि को दीपावली, शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्द्धन पूजा व शुक्ल द्वितीया को भैया दूज मनाया जाता है.
मंत्रोच्चार कर उका-पाती का प्रचलन
दीपावली की संध्या ग्रामीण सहित अधिकांश शहरी क्षेत्रों में मंत्रोच्चार कर उका- पाती खेले जाने की परंपरा है. ग्रामीण क्षेत्र के बुजुर्गों द्वारा सुनठी व खर के सात गांठ का उका बनाया जाता है. संध्या में निर्धारित समय पर घर में कलश के ऊपर चौमुखी दीप जला कर सभी पुरुष वर्ग धन-धान्य की कामना करते हुए उका में आग लगाते हैं और मंत्रोच्चार कर अपने-अपने पितरों का सुमिरन करते हैं. इसके उपरांत उका से सुनठी निकाल कर कलश के समीप लाकर रखते हैं. इसके उपरांत सभी लोग अपने से बड़ों का पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं. इसके साथ ही हम उम्र के लोगों से हाथ व गले मिल कर खुशियां बांटते हैं.
त्योहारों को लेकर प्रचलित है कथा : पुराणों के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष के नरक चतुर्दशी तिथि को श्रीकृष्ण ने तारकासुर राक्षस का वध कर बंदी गृह में बंद 16 हजार कन्याओं को छुड़ाया था. इस उपलक्ष्य में उक्त तिथि को छोटी दीपावली मनाये जाने की परंपरा रही है. हिंदू धर्मावलंबी चतुर्दशी तिथि को अपने-अपने घरों की साफ-सफाई कर संध्या के समय घी व तेल का दीया जला कर सुख व समृद्धि की कामना करते हैं.
दानशीलता की स्मृति में दीपोत्सव : दैत्यों के राजा बलि की दानशीलता की परीक्षा के लिए भगवान विष्णु वामन का रूप लेकर अवतरित हुए, जहां राजा बलि से उन्होंने तीन पग जमीन मांगी. राजा बलि ने दान देना स्वीकार कर लिया. भगवान विष्णु ने तीनों लोकों को दो पग में ही माप लिया. इसके उपरांत राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीसरा पग रखने को लेकर अपना मस्तक सामने रख दिया. भगवान विष्णु राजा बलि की धर्म निष्ठा व दानशीलता से प्रसन्न हुए और दानशीलता की स्मृति में महोत्सव का आयोजन किया, जो बाद में दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
दीपावली को लेकर एक और कथा प्रचलित है कि अहंकार व असत्य के प्रतीक रावण का वध करने के उपरांत श्रीराम जब अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में पूरे अयोध्या को दीप जला रोशन कर दिया था. कहा जाता है कि अमावस्या को पूरी धरती पर अंधकार छाया रहता है. लोग अपने मन में छाये हुए अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए स्नेह व सद्भाव के निमित्त अनगिनत दीपों को प्रज्वलित करते हैं.
दीया-बाती की बिक्री रही जोरों पर
दीपावली के त्योहार को लेकर जिला मुख्यालय सहित प्रखंड क्षेत्र के बाजारों में मिट्टी से बने दीया की खूब खरीदारी की जा रही है. मुख्यालय स्थित दीया बेच रहे विक्रेताओं ने बताया कि इस बार सामान्य दीया 80 से 100 रुपये प्रति सैकड़ा के हिसाब से बेच रहे हैं. बताया कि बीते वर्ष 40 से 50 रुपये प्रति सैकड़ा दीया की बिक्री हुई थी. पहले दीया बनाने वाली सामग्रियों की कीमत कम था, लेकिन कोयला, मिट्टी, रंग आदि की कीमत बढ़ जाने की वजह से दीया की कीमतों में वृद्धि की गयी है.
पटाखों से पाटा है बाजार : दीपावली के मौके पर युवा, बच्चे पटाखे छोड़ कर खुशियां मनाते हैं. इसे लेकर बाजार सहित ग्रामीण क्षेत्र के चौक चौराहों पर व्यवसायियों द्वारा पटाखा का स्टॉल लगाया गया है.
पटाखा व्यवसायी ने बताया कि मंहगाई चरम पर हैं. बीते वर्ष जो पटाखा उन्हें 12 से 20 रुपये दर्जन मिलता था. इस बार उसी कंपनी का पटाखा 60 से 80 रुपये दर्जन के हिसाब से खरीद करना पड़ा है. बताया कि आज से दस वर्ष पूर्व पटाखा बेच कर जितना मुनाफा होता था. वर्तमान समय में नहीं हो रहा है.
लक्ष्मी गणेश प्रतिमा की हो रही बिक्री : दीपावली के मौके पर अधिकांश जगहों पर महालक्ष्मी की आराधना की जाती है. महालक्ष्मी की पूजा को लेकर जिले भर में व्यापक रूप से तैयारी की जा रही है. कई महिलाएं उपवास रख कर दीपावली की संध्या विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं.
बाजारों में तरह-तरह के डिजाइन वाली चिकनी मिट्टी से बनी लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा उपलब्ध है. खास कर दीपावली के मौके पर वैश्य समुदाय सहित व्यवसायियों द्वारा दुकानों में लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है, ताकि सालों भर माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहे.