अंग की धरती से कर्ण देते थे भगवान भास्कर को अर्घ्य

अंग की धरती से कर्ण देते थे भगवान भास्कर काे अर्घ्य स्थानीय लोगों से बातचीत पर आधारितसंवाददाता, भागलपुरअंग प्रदेश की पावन धरती पर चंपा नदी के तट पर (वर्तमान में नाथनगर क्षेत्र) जिस ऊंचे टिल्हे से महाभारत के महायोद्धा कर्ण भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया करते थे, वह ऊंचा टिल्हा चंपानगर के मसकन बरारी मोहल्ले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 14, 2015 6:44 PM

अंग की धरती से कर्ण देते थे भगवान भास्कर काे अर्घ्य स्थानीय लोगों से बातचीत पर आधारितसंवाददाता, भागलपुरअंग प्रदेश की पावन धरती पर चंपा नदी के तट पर (वर्तमान में नाथनगर क्षेत्र) जिस ऊंचे टिल्हे से महाभारत के महायोद्धा कर्ण भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया करते थे, वह ऊंचा टिल्हा चंपानगर के मसकन बरारी मोहल्ले के उत्तर में आज भी अवस्थित है. यहां आज भी छठ व्रती लोक आस्था के महापर्व पर उद‍यीमान और अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्ध्य देते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि अंग प्रदेश की धरती पर कर्ण ने ही सबसे पहले छठ पर्व की शुरूआत की थी. वे ब्रह्म मुहुर्त में गंगा स्नान करने के बाद रोजाना इसी ऊंचे टिल्हे से भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते थे. स्थानीय युवक संघ हर साल घाट की साफ-सफाई पर्व से एक सप्ताह पहले शुरू कर देते हैं. श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं हो, स्थानीय लोग इसका भी ख्याल रखते हैं. युवकों ने बताया कि यहां वर्तमान में बड़े नाले के नीचे एक विशाल तुलसी चौरा था. टिल्हे के नीचले हिस्से एक पत्थर का बड़ा कमल गट‍्टा ( कमल फूल आकृित) है , जो आज मिट्टी में दब गया है. ऐसा ही एक कमल गट‍्टा ऊंचे टिल्हे के ऊपरी हिस्से में खाई व झाड़ी में है. इसे झाड़ी हटाने पर अभी भी देखा जा सकता है. मसकन बरारी युवक संघ के महेश कुमार , परमानंद, विक्‍कू, अमरजीत, गोलू, मनीष, राकेश, ओम प्रकाश, गोपाल, सदानंद, अशाेक साह आदि ने बताया कि इस ऊंचे टिल्हे से बड़ी संख्या में देवी-देवताओं की पत्थर की मूर्ति अक्‍सर निकलते रहते थे. इसे स्थानीय मंदिरों में स्थापित कर दिया गया है. यहां जगरनाथ स्वामी, शंकर भगवान, पार्वती माता, बजरंगवली सहित कई दुर्भल मूर्ति ऊंचे टिल्हे से मिट्टी कटाव होने से निकली है.अंग प्रदेश की राजधानी चंपा थी. यहां पावन चंपा नदी की कलकल धारा अविरल बहती थी. इस नदी होकर पुराने जमाने में कई व्यावसायिक पानी की जहाजें चला करती थी. इस होकर जानेवालों जहाज प्रबंधन को चुंगी चुकाना पड़ता था. चंपा नदी के किनारे ऊंचे टिल्हे से कर्ण के भगवान भास्कर को अर्घ्य देने का ही देन है कि आज भी यहां के लोग पूरी तरह निष्ठा के साथ छठ महापर्व मनाते हैं. चंपानदी, यमुनिया नदी व गंगा नदी के किनारे छठ पर्व पर हजारों लोग पहुंच कर भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान करते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि पुरातत्व विभाग यदि इसकी खोज करे, तो कई राज सामने आ सकती है.

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