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सदर अस्पताल में फर्श पर कटी मरीजों की रात

अव्यवस्था. शिविर लगा 25 महिलाओं का किया गया बंध्याकरण, प्रबंधन ने दिया केवल एक प्लास्टिक सीट सदर अस्पताल में सोमवार को 25 महिलाओं का बंध्याकरण ऑपरेशन किया गया. हालांकि इसके बाद अस्पताल प्रबंधन की अव्यवस्था के कारण सभी मरीज व उनके परिजन को फर्श पर ही रात गुजारनी पड़ी. कड़ाके की ठंड में उन्हें कमरा […]

अव्यवस्था. शिविर लगा 25 महिलाओं का किया गया बंध्याकरण, प्रबंधन ने दिया केवल एक प्लास्टिक सीट

सदर अस्पताल में सोमवार को 25 महिलाओं का बंध्याकरण ऑपरेशन किया गया. हालांकि इसके बाद अस्पताल प्रबंधन की अव्यवस्था के कारण सभी मरीज व उनके परिजन को फर्श पर ही रात गुजारनी पड़ी. कड़ाके की ठंड में उन्हें कमरा भी उपलब्ध नहीं कराया गया.
सुपौल : सदर अस्पताल यानी सभी सुविधाओं से सुसज्जित और जिले का आदर्श अस्पताल, लेकिन सुपौल के मामले में परिभाषा बिल्कुल इतर ही है. यहां न तो समुचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं और न ही किसी को मरीजों का ख्याल है. ऐसा ही कुछ नजारा सोमवार की रात सदर अस्पताल में देखने को मिला. दरअसल सोमवार को अस्पताल में विशेष शिविर के तहत 25 महिलाओं का बंध्याकरण ऑपरेशन किया गया, लेकिन यह शिविर कुव्यवस्था की भेंट चढ़ गया.
ऑपरेशन के बाद महिलाओं को भेंड़-बकरियों की तरह कड़ाके की ठंड में भी फर्श पर रात गुजारने के लिए छोड़ दिया गया. अस्पताल प्रबंधन की असंवेदनशीलता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि करीब दर्जन भर मरीज को आराम के लिए कमरा तक नसीब नहीं हुआ. ऐसे मरीज व उनके परिजन बरामदे पर ही पूरी रात गुजारने को विवश रहे. वही हद तो तब हो गयी, जब मरीज के परिजनों से कुछ दवा खुले बाजार से खरीद करवायी गयी. इसमें टिटनेश की सूई(टीटवैक) भी बाजार से ही खरीद कर मंगायी गयी, जबकि खरीद के बावजूद सूई के लिए मरीजों के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा. स्पष्ट है बांध्याकरण शिविर ने अस्पताल में उपलब्ध कुव्यवस्थाओं को भी जग जाहिर कर दिया.
उपलब्ध थी महज एक प्लास्टिक सीट
रात के 08:10 बज रहे थे. सदर अस्पताल की ऊपरी मंजिल पर कमरा संख्या 134 के सामने हॉल में करीब एक दर्जन मरीज फर्श पर लेटे हुए थे, जबकि उनके परिजन घर से लाया हुआ नाश्ता कर रहे थे. यहां अस्पताल की ओर से उपलब्ध सुविधाओं के नाम पर महज एक प्लास्टिक सीट मरीजों को उपलब्ध करायी गयी थी, जिस पर बमुश्किल आधा दर्जन मरीज आराम करते नजर आये.
सदर प्रखंड के एकमा की मरीज सुशीला देवी व बुधनी देवी के साथ आयी साबो देवी, रविया देवी व रानी देवी ने बताया कि चादर से लेकर रजाई तक का प्रबंध निजी स्तर से किया गया है. डॉक्टरों की सलाह पर बाहर से कुछ दवा भी खरीद की गयी है, लेकिन उसे देने के लिए कोई नहीं पहुंचा है. वहीं सुंदरपुर से मरीज सोनी देवी व गीता देवी के साथ आये ललित पंडित व शिव पंडित ने बताया कि महज एक प्लास्टिक सीट अस्पताल प्रबंधन की ओर से उपलब्ध कराया गया है. इस पर सभी मरीजों के लिए आराम करना नामुमकिन है.
वहीं ऑपरेशन के बाद से अब तक कोई मरीज को देखने तक नहीं आया है. करिहो से रंजना देवी के साथ आयी किरण देवी ने भी बाहर से दवा खरीद की बात कही. वही उपलब्ध व्यवस्थाओं पर नाराजगी जतायी. कहा कि ‘इ ठंडी म जै व्यवस्था छै, लोग त मैरिये जेतई’. यहां अन्य मरीजों का हाल भी लगभग एक जैसा था.
टीकाकरण केंद्र पर भी जमा लिया कब्जा
रात के 08:30 बज रहे थे. ऊपरी मंजिल पर ही टीकाकरण केंद्र के लिए निर्मित हिस्से में करीब आधा दर्जन मरीज व उनके परिजन किसी प्रकार ठंड से राहत पाने की जुगत में थे. भेलाही से चुनचुन देवी के साथ आयी फूलो देवी ने बताया ‘कुछो सुविधा नेय मिललै. चादर सब भी घरे स आनलिये य’. फिर कहा ‘डॉक्टर साहेब क कहियो न, जे दवाय कहलकैय रहअ,
अइन लेलियै य. बहुत देर भैय गेलै’. वहीं हटवरिया-निर्मली से सुलेखा देवी के साथ आये रघु मंडल ने कहा ‘सरकार त बहुत व्यवस्था करलकैय य, लेकिन हॉस्पिटल बला कुछो दैते नैय छै’. वही केंद्र के बाहर छर्रापट्टी से रीता देवी के साथ आयी सुप्रभा देवी, बलहा से फूलदाय देवी के साथ आयी महावती देवी, चंदैल मरिचा से ममता देवी व संझा देवी के साथ आयी दुखनी देवी व संजू देवी आदि ठंड से ठिठुर रहे थे. मरीज का ऑपरेशन हुआ था तो उनकी परेशानी ज्यादा गंभीर थी, लिहाजा सभी मरीज की सेवा में जुटे थे.
पूछने पर सभी ने एक साथ कहा ‘की व्यवस्था छै, देखते छहक’. फिर कहा ‘हम सब की कहबै बाबू, अस्पताल बला त कुछो दैते नैय छै’. बताया ‘कुछ दवाइयो बाहरे स किनेलकैय य, लेकिन कोय दैये बला नैय छै’.
…उदासीनता की हद
सोमवार को सदर अस्पताल में आयोजित विशेष बंध्याकरण शिविर में 25 महिलाओं का ऑपरेशन किया गया, लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसे उदासीनता के चरम सीमा की संज्ञा दी जा सकती है, क्योंकि खुद डॉक्टरों की मानें तो ऑपरेशन के बाद महिला को होश आने में न्यूनतम 05 से 07 घंटे का समय लगता है. इस दौरान महिला के होश में आने तक उसका विशेष ख्याल रखा जाना आवश्यक होता है. जबकि सर्दी के दिनों में और भी अधिक सतर्कता की आवश्यकता होती है.
क्योंकि इस बीच अगर महिला बीमार पड़ गयी, तो उसकी स्थिति नाजुक हो सकती है और यहां तक की सर्दी अधिक होने पर उसकी मौत भी हो सकती है. इसके अलावा संक्रमण से भी महिला को बचाना होता है. हालांकि राहत की बात यह है कि सोमवार की रात ठंड की ठिठुरन के बावजूद मरीजों की हालात सामान्य रही. लेकिन सोमवार को जिस प्रकार ऑपरेशन के बाद महिलाओं को भेंड़-बकरियों की तरह फर्श पर सोने के लिए छोड़ दिया गया, स्पष्ट है कि अस्पताल प्रबंधन को इसका कोई मलाल नहीं था.
ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि जिस सदर अस्पताल पर जिले की स्वास्थ्य सेवाएं निर्भर करती हैं, वहां अगर हालात इतने दयनीय हैं तो जिले के अन्य अस्पतालों का क्या हाल होगा. इसके अलावा डॉक्टरी सलाह पर बाहर से दवा की खरीद और टीटवैक जैसी दवा की अनुपलब्धता भी अस्पताल की सुविधाओं पर प्रश्न चिह्न खड़े कर रही है.

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