टूटा दुख का पहाड़, कौन उठायेगा आश्रितों का बोझ

सुपौल : पति के मौत की खबर सुनने के बाद से ही बिस्तर पर बीमार पड़ी महिला के मुख से एक ही आवाज निकल रही है कि बांस काटने के विवाद ने एक परिवार के आशियाना को उजाड़ दिया. अपने बच्चे छह साल की साक्षी, तीन वर्ष का प्रीतम और दो साल का सौरभ को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 12, 2017 5:22 AM

सुपौल : पति के मौत की खबर सुनने के बाद से ही बिस्तर पर बीमार पड़ी महिला के मुख से एक ही आवाज निकल रही है कि बांस काटने के विवाद ने एक परिवार के आशियाना को उजाड़ दिया. अपने बच्चे छह साल की साक्षी, तीन वर्ष का प्रीतम और दो साल का सौरभ को इस कदर निहारती है कि मानो बच्चे के सामने दुःख का पहाड़ टूट गया हो.

इस हादसे में बच्चों के सर से उसके पिता का साया तो छीन ही लिया. साथ ही उसके हंसते खेलते परिवार को ऐसे नजर लगी कि उसकी बांकी बची जिंदगी पहाड़ सी लगने लगी है. अखिलेश किसी तरह मेहनत मजदूरी कर परिजनों का गुजारा कर रहे थे. जिसपर अब ग्रहण लग गया.

एक बांस ने छीना मांग की सिंदूर

गौरतलब हो कि अखिलेश के मौत का कारण एक बांस बना. घटना के बाद से रोती बिलखती अर्चना देवी के मन में ये बातें कोस रही है कि काश बांस के कारण झंझट नहीं होता तो शायद उनका पति आज जिंदा होता. नाबोध बच्चों को भले ही अभी ये बात समझ में ना आए लेकिन जिसके सिर से पति का साया उठ गया हो उसे आने वाले समय अंधेरी कोठरी की तरह लग रही है. लाचार व बेबस अर्चना कहती है कि आर्थिक तंगी के बावजूद किस तरह उसने अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना कुछ दिन पहले ही संजोए थे कि बच्चों को पढ़ा लिखा कर एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा देंगे. ताकि बुढ़ापे में बच्चे उनका सहारा बन सके. लेकिन गरीबी से बदतर इस जिंदगी से भी अग कभी निजात मिल पाएगा. लेकिन सारे सपनों को पल भर में बांस के विवाद ने छीन लिया. वो इस युग की सावित्री भी तो नहीं जो यमराज से लड़कर भी अपने पति को लौटा पाए. काश इस युग में भी वैसी तपस्या हो पाती तो पूरी जिंदगी तपस्या करना भी उसके लिए कठिन नहीं होता.

छिन गयी खुशियां

वो काला दिन अर्चना देवी के जिंदगी में ऐसा भूचाल लाया कि उसके तकदीर की रेखा को पल भर में बदल कर रख दी. उस दिन घटना के बाद घायल पति का इलाज पटना में हो रहा था तो थोड़ी सी उम्मीद बांकी थी. लेकिन जैसे ही ये खबर आया कि उसके पति की मौत हो गयी. मानो आंखों के सामने अंधेरा छा गया. लोग तरह तरह की बातें करने लगे. जो नजरें पहले उनकी ओर एक सुहागन की तरह उठ रही थी. अब सभी विधवा की तरह देखने लगी. ये पल उनके लिए किसी सजा से कम नहीं . दो साल के सौरभ को ये भी पता नहीं है कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं है. रह रह कर वो अपने पिता का खोज करता है तो लोगों द्वारा ये दिलासा दी जाती है कि उनके पिता आ जाएंगे कह नाबोध को चुप करा दिया जाता है. जालिमों की इस दुनिया में किसकी तकदीर कब किस कदर करबट ले लेगी ये कहना अब वास्तव में काफी मुश्किल है. उन्होंने तो बस अपना ही बांस किसी को काटने से रोका था. इस बेगुनाही का सजा जालिमों ने मौत से लिख दिया. काश बांस का ये झंझट नहीं होता तो उनके पति अपनों के साथ होते.

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