जीवन में उतारें गीता के उपदेश

धर्मक्षेत्रे. गांधी मैदान में अंतरराष्ट्रीय संतमत सत्संग में बोले व्यासानंद जी गंभीरता व मौन दो ऐसे मंत्र है, जिनके द्वारा हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है सुपौल : गीता जीवन का सार है. गीता के कुछ उपदेशों को जिंदगी में उतार कर अपने जीवन को मनुष्य सफल बना सकते हैं. सदा प्रसन्न रहना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 8, 2017 5:22 AM

धर्मक्षेत्रे. गांधी मैदान में अंतरराष्ट्रीय संतमत सत्संग में बोले व्यासानंद जी

गंभीरता व मौन दो ऐसे मंत्र है, जिनके द्वारा हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है
सुपौल : गीता जीवन का सार है. गीता के कुछ उपदेशों को जिंदगी में उतार कर अपने जीवन को मनुष्य सफल बना सकते हैं. सदा प्रसन्न रहना ही दुश्मन के लिए सबसे बड़ी सजा है. किसी को कष्ट पहुंचाकर क्षमा मांग लेना बहुत आसान है. लेकिन खुद चोट खाकर किसी को माफ कर पाना बहुत कठिन है. गंभीरता और मौन दो ऐसे मंत्र है. जिनके द्वारा हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है. उक्त बातें गांधी मैदान में अंतर्राष्ट्रीय संतमत सत्संग के तत्वावधान एवं लोहिया यूथ ब्रिगेड प्रदेश संयोजक डॉ अमन कुमार की अध्यक्षता में आयोजित श्रीमद‍् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ में प्रवचन करते हुए वरिष्ठ आचार्य पूज्यपाद स्वामी व्यासानंद जी महाराज ने कही.
हुनर को प्रदर्शित करने का जरिया है गीता : स्वामी व्यासानंद जी ने कहा कि अध्यात्म, सत्य, प्रेम, कर्म, विश्वास, ज्ञान और दर्पण जीवन के सच्चे मंत्र है. जीवन में अधिक रिश्ते का होना महत्वपूर्ण नहीं है. बल्कि रिश्तों में अधिक जीवन का होना ज्यादा महत्वपूर्ण है. बताया कि प्राणियों को जीवन भर अच्छे लोगों का संपर्क मिलना उनका भाग्य है. लेकिन उन्हें संभाल कर रखना प्राणियों के हुनर को पदर्शित करता है. प्रत्येक प्राणियों का विचार अलग हो सकता है. लेकिन यह विचार सामुहिक दृष्टि से सही होगी तो आप दुनिया को अच्छे लगेंगे. बताया कि मनुष्यों को जीवन पर्यंत प्राप्त चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिये. कहा कि संघर्ष ही जीवन है, जो आप पर विश्वास करें उससे झूठ मत बोलिये और जो आपसे झूठ बोले उस पर कभी विश्वास मत करिये. मनुष्यों के लिए यही मूल मंत्र है. जब मनुष्य अपने कर्म, चाहे वे हिंसा से सिद्ध हों अथवा अहिंसा से, बुद्धि से विचार कर निःस्वार्थ भाव से कर्म करता है तो वह कर्म धर्मान्तर्गत ही होना है. युद्ध के अतिरिक्त भी जीवन की प्रायः सब समस्याओं का समाधान गीता में निहित है. इस कारण जीवन संघर्ष में बच्चों को तैयार करने के लिए विद्यालय-महाविद्यालय की शिक्षा के अतिरिक्त नित्य प्रातः इस पुस्तक का स्वाध्याय उत्तम माना गया है. धर्म की स्थापना के लिए बुद्धि से विचारित कर्म अपना स्वार्थ छोड़कर करने की प्रेरणा इस ग्रन्थ में दी गई है. अतः इसका पाठ, उस पर चिंतन व वार्त्तालाप परिवार में नित्य प्रातः काल होना चाहिए. जिससे बुद्धि निर्मल होगी और निर्मल बुद्धि से कर्म करने पर जब योजना बनेगी तो निःसन्देह उसमे सफलता प्राप्त होगी.
गीता का प्रयोग व परिणाम दोनों है सफल
गीता वेद के बहुत समीप है और उपनिषदों से भी अधिक वेदानुकूल है. गीता का अध्ययन करने वाला विद्यार्थी, वर्तमान सरकारी शिक्षा से शिक्षित होकर उक्त स्वाध्याय को करता हुआ अपना मार्ग संसार में सहज ही बना सकता है. श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा काव्य है, जिसमें मानव मन को अनुशासित करने के लिये मनोवैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया गया है. कहा कि यह एक मनोविज्ञान की प्रयोगशाला है, जिसके प्रयोग और परिणाम दोनों सफल रहे हैं. यही कारण है कि सहस्राब्दियां बीत जाने के पश्चात् भी गीता का आकर्षण कम होता दिखायी नहीं पड़ता. यह मात्र कृष्ण और अर्जुन के मध्य होने वाला संवाद नहीं है. इसमें तो मानव मन की दुर्बलताओं को समझते हुए मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के द्वारा मन को अनुशासित किया गया है. इस अवसर पर मंच पर आसीन रामदेव बाबा, सीताराम बाबा, सुबोध बाबा, जगदीश बाबा, बंदेलाल बाबा, शिवानंद बाबा, महर्षि बाबा, परमेश्वर बाबा, रामप्रसाद बाबा, ब्रहम ऋषि बाबा, तिवारी बाबा, सियाराम यादव, गायक बेचन कुमार हिमांशु, तबला वादक जयप्रकाश झा आदि उपस्थित थे.

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