अफसोस. डीएम के आदेश पर भी नहीं सुधरी मुक्तिधाम की व्यवस्था
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अंतिम संस्कार में भी संकट
अफसोस. डीएम के आदेश पर भी नहीं सुधरी मुक्तिधाम की व्यवस्था लगभग 20 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों द्वारा निजी स्तर पर आरंभ किये गये शव दाह गृह (मुक्तिधाम) में सही संचालन नहीं होने से यह मुक्तिधाम लोगों के लिए अनुपयोगी साबित हो रहा है. सुपौल : नगर वासियों की सुविधा के लिए जिला मुख्यालय स्थित […]
लगभग 20 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों द्वारा निजी स्तर पर आरंभ किये गये शव दाह गृह (मुक्तिधाम) में सही संचालन नहीं होने से यह मुक्तिधाम लोगों के लिए अनुपयोगी साबित हो रहा है.
सुपौल : नगर वासियों की सुविधा के लिए जिला मुख्यालय स्थित वार्ड नंबर 14 में बनाया गया शव दाह गृह लोगों के लिए उपयोगी साबित नहीं हो रहा है. लगभग 20 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों द्वारा निजी स्तर पर आरंभ किये गये शव दाह गृह(मुक्तिधाम) में संसाधन उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2012 में पीएचईडी द्वारा एक भवन व एक शव दाह के लिए खुले शेड समेत शौचालय व 03 दुकानों का निर्माण कराया गया था. लेकिन शव दाह गृह के सही संचालन नहीं होने से यह मुक्तिधाम लोगों के लिए अनुपयोगी साबित हो रहा है.
नतीजतन शहर वासियों को आज भी लोगों के अंतिम संस्कार के लिए अन्य स्थानों का रूख अख्तियार करना पड़ रहा है. लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा शव दाह के लिए भवन व शेड का निर्माण तो कर दिया गया. लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा मुक्तिधाम के लिए दी गयी जमीन का घेराव डीएम के आदेश के बावजूद भी नहीं किया गया. जिसके कारण आज भी यहां अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए आने वाले लोग शेड में शव का संस्कार नहीं कर उक्त जमीन में कहीं कर देते हैं. जबकि बनाये गये शेड में एक साथ 06 शव के जलाने की सुविधा उपलब्ध है.कहते हैं लोग
सरकार द्वारा शव दाह गृह की सारी जमीन का घेराव नहीं करने से यहां अंतिम संस्कार करने आने वाले लोग शेष बची जमीन में ही शव दाह कर देते हैं. जिसके कारण आस-पास के रहने वाले लोगों को उससे उत्पन्न होने वाले दुर्गंध से काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. स्थानीय लोगों में राजधर यादव, मिथिलेश कुमार यादव, शिव कुमार, पांचू राम, सुरेंद्र कुमार, मुकेश कुमार, मनीष कुमार आदि ने बताया कि शव दाह के लिए लोगों ने जो जमीन दान में दी.
इसका समुचित लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल पा रहा है. लोगों का कहना है कि अन्य जगहों पर शव दाह गृह में विद्युत यंत्र लगा कर शव का अंतिम संस्कार किया जाता है. जिसमें जहां समय का बचाव होता है.
वहीं आस-पास के लोगों को इससे परेशानी भी कम होती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि लगभग 06 माह पूर्व जिलाधिकारी बैद्यनाथ यादव शव दाह गृह के निरीक्षण के लिए आये थे. उस दौरान उन्होंने शव दाह गृह के घेराव के लिए आश्वासन भी दिया था. लेकिन आज तक बांड्री कराने की दिशा में कोई खास पहल नहीं की गयी है. इस बाबत जिलाधिकारी से मोबाइल पर कई बार संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन हर बार उनका मोबाइल ‘इस समय कॉल नहीं पूरी की जा सकती’ बता रहा था.
जन सहयोग से बना था मुक्तिधाम
शहर की बढ़ती आबादी और लोगों की जरूरत को देखते हुए लगभग 20 वर्ष पूर्व नगर परिषद के वार्ड नंबर 14 व 15 के बीच लगभग डेढ़ एकड़ जमीन शव दाह गृह(मुक्तिधाम) के लिए स्थानीय लोगों ने दान स्वरूप दिया था. जिसमें निर्णय लिया गया था कि अब से हिंदू समुदाय से जुड़े लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार इसी जमीन में करेंगे. वर्ष 2009 में बिहार की तत्कालीन सरकार ने लोगों की जरूरत को देखते हुए जिला में मुक्तिधाम बनाने का निर्णय लिया.
जिसके तहत जिला मुख्यालय में पीएचईडी विभाग द्वारा शव दाह के लिए भवन, शेड, शौचालय व दुकानों का निर्माण हुआ. लेकिन शव दाह के लिए दान की गयी शेष जमीन का घेराव नहीं किया गया. लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा भवन व अन्य संसाधन तो उपलब्ध करा दिये गये. लेकिन शव दाह गृह के सही तरीके से संचालन के लिए किसी को जवाबदेही नहीं दी गयी. जिसका नतीजा रहा कि शव दाह गृह निर्माण के बाद भी इसका लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है.
वर्ष 2013 में हुआ था पहला टेंडर
भवन निर्माण के बाद नगर परिषद द्वारा वर्ष 2013 में शव दाह गृह के लिये निविदा निकाली गयी. वार्ड नंबर 14 निवासी शिव कुमार मुखिया को शव दाह गृह का टेंडर 76 सौ रुपये में एक साल के लिए दिया गया. मुखिया का कहना है सरकार द्वारा शव दाह गृह के लिए भवन व अन्य संसाधनों की व्यवस्था तो कर दी गयी.
लेकिन शेष बची जमीन को बिना घेरा के ही छोड़ दिया गया. जिसके चलते ज्यादातर लोग शव का अंतिम संस्कार शेष बची खाली जमीन में ही कर देते हैं. बाहर में शव दाह करने के कारण शव दाह के लिए निर्धारित शुल्क नहीं मिलता था. जिसके कारण शव दाह गृह घाटे में चला गया. जिसके बाद कोई भी व्यक्ति नप के शव दाह के टेंडर में दिलचस्पी नहीं लिया. नतीजा आज शव दाह गृह रहने के बावजूद शहर वासियों को शव के अंतिम संस्कार के लिए अन्यत्र जाना पड़ता है.
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