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ब्लड की कमी से जूझ रहा है ब्लड बैंक

ब्लड की कमी से जूझ रहा है ब्लड बैंक

सदर अस्पताल : ब्लड की कमी से जूझ रहा है ब्लड बैंक

28 दिनों से नहीं हुआ है एक भी यूनिट रक्तदान

ब्लड बैंक में मात्र 08 यूनिट है ओ पॉजिटिव ब्लड

सुपौल सुपौल सदर अस्पताल में संचालित ब्लड बैंक इन दिनों खुद ही ब्लड की कमी से जूझ रहा है. जिस कारण गंभीर स्थिति में इलाज कराने आये मरीजों को ब्लड के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है या दूसरे जिले के ब्लड बैंक पर आश्रित होना पड़ रहा है. इधर ब्लड की कमी के कारण ब्लड माफियाओं की कट रही है चांदी. जानकारी अनुसार सदर अस्पताल के रक्त केंद्र में शनिवार को मात्र 08 यूनिट ओ पॉजिटिव ब्लड ही उपलब्ध था. अन्य किसी भी ग्रुप का ब्लड अस्पताल के रक्त केंद्र में नहीं रहने के कारण गंभीर स्थिति में इलाज कराने आये मरीजों की हालत भगवान भरोसे ही रहेगा.

28 दिनों में नहीं हुआ एक भी रक्तदान

मालूम हो कि 14 जून 2023 को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा सदर अस्पताल में रक्त केंद्र का उद्घाटन किया था. सदर अस्पताल में रक्त केंद्र होने से पिछले एक साल कई गंभीर मरीज को तुरंत ब्लड उपलब्ध हो जाने से जिंदगियां बची है. लेकिन वर्तमान समय में ब्लड बैंक खुद ब्लड की कमी से जूझ रहा है. विगत 12 मई से अभी तक किसी भी संस्था के द्वारा रक्तदान शिविर या रक्तदान नहीं किया गया है. जिस कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है. इस बीच अगर किसी मरीज को रक्त की जरूरत पड़ी तो रक्त केंद्र में रक्तदान करने के उपरांत 07 घंटे के बाद सभी प्रकार के जांच कर रक्त उपलब्ध किया जा सकता है.

थैलेसीमिया मरीजों की बढ़ी मुश्किलें

जिले में स्थापित रक्त केंद्र थैलेसीमिया मरीजों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है. यही कारण है कि अब तक 47 थैलेसीमिया के मरीजों को 113 यूनिट ब्लड दिया गया. इनमें सुपौल के 30 व अन्य जिलों के 17 थैलेसीमिया के मरीज शामिल हैं. वर्तमान समय में ब्लड बैंक में रक्त नहीं रहने से थैलेसीमिया मरीजों की भी मुश्किलें बढ़ गयी है. सदर अस्पताल में स्थापित ब्लड बैंक खून की कमी से जूझ रहा है. खासतौर पर थैलेसीमिया के मरीजों के लिए यह परिस्थितियां बेहद घातक हैं. जिन्हें हफ्ते, 15 दिन या महीने में नियमित तौर पर ब्लड चढ़ाना पड़ता है. यदि इन मरीजों को समय पर खून नहीं दिया गया तो उसकी मौत भी हो सकती है.

कहते हैं डॉक्टर

सदर अस्पताल में कार्यरत डॉ विनय कुमार ने बताया कि थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है. यह तब होता है, जब शरीर में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनाता है. गंभीर अल्फा थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के लिए रक्त ही मुख्य उपचार है. यह उपचार स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं को सामान्य हीमोग्लोबिन प्रदान करता है. लाल रक्त कोशिकाएं केवल तीन महीने ही जीवित रहती हैं, लाल रक्त कोशिकाओं की स्वस्थ आपूर्ति बनाए रखने के लिए बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है. जिन लोगों को थैलेसीमिया होता है, उनके रक्त में स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं और सामान्य से कम हीमोग्लोबिन होता है. हीमोग्लोबिन परीक्षण से हीमोग्लोबिन के भीतर मौजूद अल्फा या बीटा ग्लोबिन प्रोटीन शृंखला की समस्याओं का पता चलता है. ऐसे मरीजों को ससमय रक्त की जरूरत पड़ती है.

रक्तदान के लिए संस्थाओं से किया जा रहा संपर्क : सीएस

सिविल सर्जन डॉ ललन कुमार ठाकुर ने बताया कि ब्लड कमी की जानकारी मेरे संज्ञान में है. रक्तदान के लिए विभिन्न संस्थाओं से संपर्क किया जा रहा है. जल्द ही रक्तदान केंद्र आयोजित कर ब्लड की समस्या को दूर किया जायेगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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