आधुनिकता के दौर में बदला चुनाव प्रचार, परंपरागत पेशेवर निराश
बदलते दौर में इंटरनेट का चलन और सोशल मीडिया ने कई लोगों का रोजगार छीन लिया
जदिया. एक दौर था, जब चुनावी मौसम में रोजगार के नए अवसर मिल जाते थे और चुनाव के दौरान दर्जनों लोगों को रोजी रोटी का जुगाड़ हो जाता है. मगर बदलते दौर में इंटरनेट का चलन और सोशल मीडिया ने कई लोगों का रोजगार छीन लिया. निर्वाचन आयोग के आदेशों पर लगी बंदिश ने चुनाव के वक्त जोरदार कारोबार होने की उम्मीद लगाए रखने वालों को हताश और निराश कर दिया. क्योंकि चुनाव के दौरान लाखों तक कमाने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं. अभी चुनाव का दौर चल रहा है और किसी जमाने में इस मौसम में फ्लैक्स और होर्डिंग लगाने वाले कारोबारी निराश चल रहे है. दरअसल चुनावों में अब प्रचार का तरीका बदल गया है और चुनावी रोजगार से जुड़े रहने वाले लोगों को इसी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. प्रचार सीडी बनाने वाले बताते है कि इस बार खर्च के डर से अब तक कोई उम्मीदवार सीडी बनवाने नहीं आया है. वे बताते हैं कि इस मौसम में प्रचार सीडी से जुड़े अच्छी आवाज वाले युवा को बढ़िया आमदनी हो जाता था पर वे निराश हैं. प्रचार सीडी भी पटना से बनकर आ रहा है. अमुमन यही स्थिति प्रिंटिंग प्रेस के व्यवसाय का भी है. बाजार में फ्लैक्स व होर्डिंग बनाने का काम होता है. लेकिन चुनावी मौसम में आयोग के डंडे का डर से यह काम ठप पड़ा है. कुछ ऐसा ही हाल वाल पेंटिंग करने वालों का है. कुछ दशक पहले की चुनावी मौसम को याद किया जाय तो उस समय पेंटरों की चांदी रहती थी. बड़े-बड़े पेंटर प्रमुख दलों के प्रत्याशियों द्वारा पहले ही बुक हो जाते थे और वाल लेखन भी हुआ करता था. बाद के दिनों में इस पर भी पाबंदी लग गयी. कपड़े वाले बैनर की जगह डिजिटल फ्लैक्स ने ले ली. बदलते दौर में हालत कुछ ऐसा हो गया है कि हाथों में रखा मोबाइल ऑन होते ही चुनाव मैदान में डटे दलों के एक से एक प्रचार सामने आ जाते है. वह भी अलग अलग गीतों के साथ हम सबको अपनी और खींचने का प्रयास करते हैं. अलबत्ता चुनाव प्रचार के हुए तरीकों से कारोबारी का भले नुकसान हुआ हो पर प्रत्याशियों के खर्च कम हो गए हैं. सारा खर्च एक जगह सिमट आया है.
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