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गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की है पहचान : कुलपति

सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा के कुलपति प्रो (डॉ) विमलेंदु शेखर झा मौजूद थे

सुपौल. भारत सेवक समाज कॉलेज के सभागार भवन में रविवार को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर इंटर क्वालिटी एश्योरेंस बीएसएस कॉलेज द्वारा एक दिवसीय जिला स्तरीय गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का आधार विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा के कुलपति प्रो (डॉ) विमलेंदु शेखर झा मौजूद थे. विशिष्ट अतिथि बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा के कुलसचिव प्रो (डॉ) विपिन कुमार राय मौजूद थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता बीएसएस कॉलेज के प्राचार्य प्रो (डॉ) संजीव कुमार ने किया. कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया. जिसके बाद महिला कॉलेज की छात्रा निधी कुमारी, दिशा, तनीषा झा, लवली राज, कल्पना, छोटी, अनुप्रिया , निक्की, सोनी एवं मौसम ने स्वागत गान एवं कुल गीत से अतिथियों का स्वागत किया. बीएसएस कॉलेज के प्राचार्य ने अतिथियों को बुके, पाॅग व शॉल से स्वागत किया. इस अवसर पर डॉ पंकज शर्मा, डॉ उमाशंकर झा, भूपेंद्र प्रसाद यादव, विद्यानंद यादव, प्रो एखलाख, डॉ शिकेंद्र राय, डॉ सुधीर कुमार सिंह, डॉ सुमित कुमार, डॉ अनामिका यादव, विवेक कुमार अमर, डॉ जय लक्ष्मी, दीपक कुमार, विवेकानंद सरकार, वीणा प्रसाद, अखिल सिंह परमार, श्याम कुमार, नीतीश कुमार, नवनीत कुमार सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद थे. कुलपति प्रो (डॉ) विमलेंदु शेखर झा ने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की पहचान है. इस संस्कृति का अंग्रेजों के समय में ह्रास हुआ था. नयी शिक्षा नीति इसलिये लाया गया कि गुरु-शिष्य परंपरा को और मजबूत किया जा सके. गुरु और शिष्यों के बीच में मजबूत संबंध स्थापित हो सके. एक परिवार के रूप में रहे. बताया कि जब तक गुरु और शिष्य एक साथ नहीं बैठेंगे, तब तक नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा. गुरु-शिष्य परंपरा की मजबूती के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम को महत्वपूर्ण बताया. कुलपति प्रो डा झा ने विभिन्न जिले के नोडल महाविद्यालयों में गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत करवाकर इतिहास रच दिया है. भारत के इतिहास में प्रथम बार आधिकारिक तौर पर इस परंपरा की फिर से शुरुआत हो रही है जिससे भारत के एक बार फिर से विश्व गुरु बनने की आशा पुनर्जागृत हो रही है.

गुरु सही व गलत का कराते हैं फर्क : कुलसचिव

कुलसचिव प्रो विपीन कुमार राय ने कहा कि आप हमारे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और कालखंडों में देखते हैं कि गुरु वशिष्ट और दशरथ के राज कुमारों को जो शस्त्र-शास्त्र का जो प्रशिक्षण दिया गया, वह आदर्श गुरु का ही प्रतिरूप है. महाभारत काल में पांडव और कौरवों के राजकुमारों को जो प्रशिक्षण दिया वह गुरु द्रोणाचार्य ही हैं. द्वारिका के राजा के पुत्र बलराम और कृष्ण को भी गुरु के द्वारा ही प्रशिक्षण दिया गया. कालीदास के भी गुरु थे, विवेकानंद के भी गुरु परमहंश थे. यह एक गुरु और शिष्य की आदर्श शृंखला है. गुरु और शिष्य परंपरा सभी देशों में है. लेकिन भारत की संस्कृति अजीब है. हम अपने से बड़ों का सम्मान करते हैं. छोटे को स्नेह देते हैं. गुरु हमें ज्ञान देता है और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. गुरु हमें गलत और सही में फर्क करने का शिक्षा देता है. गुरु की वजह से ही हम एक अच्छे और आदर्श व्यक्ति बनते हैं.

गुरु शिष्य परंपरा भारतीय एवं सनातन संस्कृति की है देन : प्रो संजीव

बीएसएस कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो संजीव कुमार ने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा भारतीय एवं सनातन संस्कृति की देन है. इस परंपरा के माध्यम से ही पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला और मानवीय सभ्यता संस्कृति और संस्कृति का विकास हुआ. कहा कि ब्रह्मांड के प्रथम गुरु भगवान शिव हैं जिन्होंने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया. सप्त ऋषियों से पूरे विश्व में ज्ञान का प्रसार हुआ. भारत में में इस परंपरा के माध्यम से पूरे विश्व में योग, अध्यात्म, धर्म, शास्त्र, विज्ञान, कला, आयुर्वेद, युद्ध कौशल, खगोल, ज्योतिष आदि विधाओं की जानकारी फैलाने की परंपरा भारत के ऋषियों ने जारी रखी और तब से यह प्रक्रिया अनवरत रूप से गुरु शिष्य परंपरा के रूप में जारी है. परिणामस्वरूप भारत विश्वगुरू कहलाने लगाए परंतु विगत कुछ वर्षों में अंग्रेजों के शासन काल में इस परंपरा को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया.

गुरु-शिष्य की परंपरा नई पीढ़ी तक पहुंचाने का है सौपान : डॉ राघेश्याम

आरएसटीटी कॉलेज के प्राचार्य डॉ राघेश्याम यादव ने कहा कि वैदिक काल के पहले से ही गुरु-शिष्य की परंपरा चली आ रही है. गुरु-शिष्य की परंपरा नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सौपान है. गुरु द्वारा जो शिक्षा या विद्या शिष्य को सिखाई जाती है. उस ज्ञान को अर्जित कर बाद में शिष्य गुरु के रूप में अपने शिष्यों को उसकी शिक्षा देता है. यही क्रम चलता रहता है और शिक्षा व विद्या का विस्तार गुरु-शिष्य की परंपरा से होता रहता है. गुरु से शिष्य को मिलने वाला ज्ञान संगीत, कला, अध्यात्म, वेदाध्ययन, वास्तु आदि कुछ भी हो सकता है. गुरु में ‘गु’ शब्द का अर्थ अंधकार और ‘रु’ का अर्थ प्रकाश ज्ञान से होता है. यानी अज्ञान को नष्ट करने वाला ऐसा ज्ञान जो कि ब्रह्मा के रूप प्रकाश है, वही गुरु है. इसलिए भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर के समान माना गया है. क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को गुरु बनाते हैं.

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