कोसी नदी में पानी बढ़ा तो बाढ़, घटा तो कटाव, कई गांव नदी में हो चुके हैं विलीन
कोसी तटबंध के बीच बसे लोगों के जीवन की अजब कहानी है. नदी में पानी बढ़ा तो बाढ़ और जब पानी उतरने लगा या घटने लगा तो कटाव होता है. कटाव भी ऐसा-वैसा नहीं. कोसी अपने साथ गांव का गांव बहा ले जाती है.
सुपौल. कोसी तटबंध के बीच बसे लोगों के जीवन की अजब कहानी है. नदी में पानी बढ़ा तो बाढ़ और जब पानी उतरने लगा या घटने लगा तो कटाव होता है. कटाव भी ऐसा-वैसा नहीं. कोसी अपने साथ गांव का गांव बहा ले जाती है. बाद में लोगों को अपनी ही जमीन तलाशनी पड़ती है. फिर से नया आशियाना बसाना पड़ता है. सरायगढ़ के बनैनिया गांव कई बार कोसी में विलीन हो चुका है. आखिरकार गांव के लगभग आधी से अधिक आबादी अपना घर-द्वार कुलदेवी-देवता को छोड़ दूसरे जगह जाकर बस गये. कोसी की यह कहानी साल दर साल दुहराती रहती है. जानकारी के अनुसार किशनपुर प्रखंड के मौजहा, सदर प्रखंड के बलवा पंचायत में कटाव के कारण लगभग तीन दर्जन से अधिक परिवार गांव छोड़ ऊंचे स्थानों पर शरण ले जिंदगी गुजार रहे हैं.
भारी तबाही मचाती है नदी
कोसी नदी अमूमन हर साल अपना रौद्र रूप दिखाती है. लेकिन तटबंध के कारण यह अंदर ही घुमड़कर रह जाती है. लेकिन अंदर घुमड़ती हुई नदी भारी तबाही मचाती है. सबसे पहले तो तटबंध के अंदर बिजली आपूर्ति बंद कर दी जाती है. सरकार द्वारा किए गए विलेज प्रोटेक्नशन वर्क को क्षत-विक्षत कर देती है. हर साल सड़कों को बहा ले जाती है. हजारों एकड़ भूमि में लगी फसलों को बर्बाद कर देती है. बच्चों की पढ़ाई तो प्रभावित होती ही है. स्वास्थ्य व्यवस्था भी लगभग ठप हो जाती है. बीमार पड़ने की स्थिति में लोग दुविधा में पड़ जाते हैं. तटबंध के बीच बसे लोगों का प्रयास होता है कि वे समय से बाहर निकल जाएं और किसी ऊंचे स्थल पर शरण ले लें.सिल्ट बहाकर लाने वाली दूसरी बड़ी नदी
कोसी नदी अपने साथ सिल्ट बहाकर लाने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी नदी है. पहले स्थान पर नील नदी का नाम है. कोसी अपने साथ हर साल इतनी मात्रा में सिल्ट बहाकर लाती है कि कई जगहों पर नदी का तल (रिवर साइड) बाहरी तल (कंट्री साइड) से ऊंची हो गयी है. जिससे तटबंध पर दबाव बना रहता है. हालांकि तटबंध की क्षमता नौ लाख क्यूसेक पानी को सहने की है, लेकिन नदी में अत्यधिक सिल्ट के जमाव के कारण तटबंध के प्रभावित होने का खतरा बना रहता है. 07 जुलाई को 03 लाख 93 हजार 715 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज होने से नदी की सूरत बिगड़ गयी. अंदर के गांवों में हाहाकार मच गया. लोग अपनी उपज और मवेशियों को बाहर निकालने लगे. सावन और भादो की बारिश अभी बाकी है. उसके बाद होने वाले कटाव से इन्हें इनके घर के नदी में विलीन होने की चिंता सताती रहेगी. बस, यही तो है कोसी की कहानी.पेयजल का अभाव, शौचालय जाने में भी परेशानी
पूर्वी व पश्चिमी कोसी तटबंध के बीच जिले के लगभग 100 गांव आज भी बसे हैं. सुरक्षा बांध बनने के कारण तटबंध के बसे कुछ गांव बाढ़ से पूरी तरह सुरक्षित हो गए हैं. लगातार व अत्यधिक बारिश के बाद हर साल कोसी बराज से अत्यधिक मात्रा में पानी का डिस्चार्ज होता है और तटबंध के बीच बाढ़ का पानी फैल जाता है. अंदर बसे लोगों के घरों में पानी घुस जाता है. वहां बनी सड़कों पर पानी चढ़ जाता है. खेत-खलिहान डूब जाते हैं. लोगों को आवागमन की परेशानी हो जाती है तो मवेशियों के चारे की दिक्कत हो जाती है. लोगों को पेयजल और शौचालय की परेशानी हो जाती है. जलजनित बीमारियों से भी ये ग्रसित होते हैं. हालांकि सरकार द्वारा निर्धारित की गई बाढ़ की अवधि एक जून से 15 अक्टूबर के बीच ये अलर्ट होते हैं और अधिकतर लोग नदी में पानी बढ़ने से पहले ही अपने मवेशियों को बाहर ऊंचे स्थलों पर पहुंचा देते हैं. अमूमन जब तक इनके चूल्हे में पानी नहीं घुसता है, तब तक ये घर नहीं छोड़ते हैं. चूल्हे में पानी घुसने के बाद ये या तो अपने सगे-संबंधियों के यहां चले जाते हैं या फिर तटबंध पर जाकर शरण लेते हैं. घर व सामान का लोभ और ममत्व इन्हें घर छोड़ने नहीं देता है. प्रारंभिक स्थिति में ये चौकी पर चौकी पर चढ़ा उसी पर गैस चूल्हा जला भोजन बनाते हैं और बर्दाश्त करने की अंतिम क्षमता तक जीवन यापन का प्रयास करते हैं. बाढ़ की अवधि के दौरान उनके आवागमन का एकमात्र साधन नाव ही होता है. गैस सिलेंडर समाप्त होने के बाद वे नाव से ही दूसरा सिलेंडर मंगवाते हैं और घर की देख रेख करते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है