Supaul News : सुपौल के सैकड़ों वीर सपूतों ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान देश के लिए दी थी जान

सुपौल की धरती पर सैकड़ों ऐसे सपूत हुए जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया. भारत के स्वतंत्रता दिवस पर देश उन्हें याद कर रहा है. हालांकि जिलेवासियों की चाहत रही है कि उन वीरों का स्मारक बने, उनकी प्रतिमा स्थापित हो. ताकि आनेवाली पीढ़ियां उन्हें देख सके. उनकी जीवन गाथा से प्रेरणा ले सके.

By Sugam | August 14, 2024 7:02 PM

Supaul News : शंकर, सुपौल. देश की आजादी के 77 साल पूरे हो गये हैं. देश का स्वतंत्रता दिवस भारतवासियों द्वारा धूमधाम से मनाया जा रहा है. साथ ही देश के उन वीर सपूतों को भी याद किया जा रहा है, जिन्होंने अपने प्राणों की बलि दी. सर्वस्व न्योछावर कर भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलायीथी. इसमें सुपौल जिले के भी सैकड़ों वीर सपूत शामिल थे. कहते हैं कोसी की धरती क्रांतिकारियों से भरी पड़ीथी. गुलामी की बेड़ी को तोड़ने के लिए जब क्रांति की मशाल जलायी गयी थी, तो कोसी के इन वीर बांकुरों ने भी फिरंगियों के विरुद्ध हुंकार भरी थी. इनमें पंडित राजेंद्र मिश्र उर्फ राजा बाबू, खूबलाल मेहता, शिव नारायण मिश्र, चंद्र किशोर पाठक, गंगा प्रसाद सिंह, शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, लहटन चौधरी आदि नाम शामिल हैं. उन्होंने अंग्रेजों की यातनाएं भी सही, लेकिन अपने कर्तव्य पथ से कभी नहीं डिगे.

सिक्का गर्म कर लाल बाबाजी का शरीर दागा, गर्दन भी मरोड़ी

कर्णपुर गांव निवासी शिव नारायण मिश्र उर्फ लाल बाबाजी ने राष्ट्र के नाम अपना जीवन न्योछावर कर दिया. कहते हैं कोसी क्षेत्र में नमक आंदोलन उन्हीं के नेतृत्व में शुरू किया गया था. लाल बाबाजी स्वाधीनता आंदोलन के विशेष दूत थे. वे सुभाष के संदेशों को गांव-गांव तक पहुंचाया करते थे. अंग्रेजों ने उन्हें बड़ी यातनाएं दी. उनके पूरे शरीर को सिक्का गर्म कर दाग दिया. उनकी गर्दन भी मरोड़ दी, जो जीवन पर्यंत कभी सीधी नहीं हो सकी. लाल बाबाजी की सादगी व स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.

15 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े चंद्रकिशोर पाठक

कर्णपुर के ही चंद्रकिशोर पाठक 15 वर्ष की उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गये थे. उन्होंने नमक आंदोलन में भी भाग लिया. 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया. इस दौरान उन्हें तीन वर्ष की सजा दी गयी. जेल में उनकी काफी पिटाई की गयी. उनके हाथ की हड्डी टूट गयी. उन्हें इलाज के लिये अस्पताल जाना पड़ा. जात-पात व छुआछूत का भी उन्होंने विरोध किया और अंतरजातीय शादी की. स्व पाठक 1948 से 1955 तक सोशलिस्ट पार्टी में रहे. फिर 1955 में कांग्रेस में शामिल हुए. 1980 में वे सहरसा जिला परिषद अध्यक्ष चुने गये. जबकि 1984 में हुए चुनाव में वे सहरसा लोकसभा क्षेत्र से सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. 02 जुलाई 1998 को उनका निधन हो गया.

लहटन चौधरी को अगस्त क्रांति में हुई 12 वर्ष की सजा

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व बिहार सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे स्व लहटन चौधरी का भी स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान रहा. उनका जन्म सहरसा के मुरली बसंतपुर में 1916 में हुआ था. जन्म के एक साल बाद ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी. इसके बाद वे अपने मौसा के यहां कर्णपुर चले गये. वे 1930 में नमक सत्याग्रह देखने अपने गांव के स्कूल से पहुंचे थे. यहां बरैल के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह के नेतृत्व में कुछ लोग परसरमा होते कर्णपुर पहुंचे थे. इस दौरान शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, खूबलाल मेहता सहित अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया. स्व चौधरी सेवा संघ नामक संस्था से जुड़ कर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे. अगस्त क्रांति में उन्हें 12 वर्ष की सजा सुनायी गयी.

इन सपूतों का भी रहा योगदान

इनके अलावा कुलानंद मल्लिक, अच्युतानंद झा, सुखदेव झा, शिवनंदन झा, महेंद्र पाठक, रामप्रताप मंडल, रसिकलाल धानुक, यमुना प्रसाद सिंह, हीरालाल भगत, रामेश्वर खां, लखीचंद चौधरी, फुलेश्वर सिंह, सोमी मंडल, शैलेश मिश्र, महानंद झा, कृष्णकांत झा, विश्वंबर मिश्र, कुशेश्वर मल्लिक, त्रिवेणी प्रसाद सिंह, इंद्रानंद लाल दास, साजेंद्र मिश्र, सुरेश्वर झा, तेज नारायण पाठक, केश्वर सिंह, अनंत चौधरी, जयराम मिश्र, बमभोला चंद्र, रामजी चौधरी, रामेश्वर सिंह, स्वरूप नंदन मिश्र, जुगेश्वर झा, बौकू कामत, तारणी प्रसाद सिंह, ठीठर मंडल, चंद्र नारायण सिंह, बतहन साफी, रामफल यादव, रामचंद्र मिश्र, युगल किशोर सिंह, सोमी मंडल, श्रीलाल चौधरी आदि सुपौल के अनेक सपूतों ने भारत माता की आजादी के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया.

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