Supaul News : सुपौल. कोसी नदी को यूं ही ”बिहार की शोक” नहीं कहा जाता. इस साल भी नदी ने अपने रौद्र रूप से हजारों परिवारों को उजाड़ दिया है. 56 साल बाद 28 सितंबर को तबाही की रात रही. प्रशासन के लाख जतन के बाद भी अपने घर-द्वार छोड़ गांव से नहीं निकलनेवाले बाढ़ पीड़ितों को आखिरकार कोसी की हुंकार के आगे नतमस्तक होना पड़ा. रात के अंधेरे में कल-कल करती कोसी जब लोगों के घर पहुंचने लगी, तो लोग बाल-बच्चों को लेकर इधर-उधर भागने लगे. जिन्हें जहां मौका मिला वे वहीं ठहर गये.
सुबह होते ही चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल
कल तक जहां लोगों का आशियाना नजर आ रहा था. आज वहां कोसी की तेज धारा बह रही थी. पूर्वी कोसी तटबंध फ्लड टूरिज्म प्वाइंट बन चुका था. हर कोई इस दृष्य को अपने मोबाइल में कैद कर रहा था. बच्चे भूख से बिलख रहे थे. बूढ़े अपने जवान बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. नयी-नवेली दुलहन अपने संबंधी से बात कर आंसू बहा रही थी. इसी बीच एक बुजुर्ग विशुनदेव सिंह ने कहा कि यही है जिंदगी. 78 साल में पहली बार देवी देवता को छोड़ गांव से बाहर आना पड़ा और वह भी ऐसे समय, जब कोई किसी का सहारा नहीं. 1968 में आयी प्रलयंकारी बाढ़ को हमने नजदीक से देखा. उस वक्त ऐसी त्रासदी नहीं थी. यह अलग बात है कि उस वक्त इतनी जनसंख्या भी नहीं थी. लेकिन अपनी जिंदगी में पहली बार कोसी का ऐसा रौद्र रूप देखा. वहीं रंजन देवी ने कहा की रात 12 बजे अचानक घर में पानी फैलने लगा. जब तक कुछ समझ पाते तब तक पानी का वेग बढ़ने लगा. बाल-बच्चे को लेकर किसी तरह रात के अंधेरे में निकलकर तटबंध पर शरण लिये हुए है. कोसी नदी के जलस्तर में अचानक हुई वृद्धि ने सैकड़ों परिवारों की जिंदगी को उथल-पुथल कर दिया है. जिलों के कई गांवों में बाढ़ का पानी घुसने से घर-बार छोड़कर लोगों को सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ाहै. रातोंरात आयी इस आपदा ने लोगों को बेबस और लाचार कर दिया है. 60 वर्षीय गीता देवी कहती हैं, रात को सब कुछ ठीक था. लेकिन सुबह उठे तो घर में घुटनों तक पानी भरा था. न खाने का ठिकाना है, न रहने की कोई जगह बची थी.
पीड़ितों की आंखों में आंसू व माथे पर चिंता की लकीरें
प्रलयकारी बाढ़ की वजह से छोटे-छोटे बच्चे भूखे थे. जिन्हें बस भगवान का ही सहारा दिख रहा था. गीता देवी की तरह ही कई और परिवार अपने डूबे हुए आशियाना के पास खड़ेथे. उनकी आंखों में आंसू व माथे पर चिंता की स्पष्ट लकीर दिख रही थी. कोसी की विनाशकारी बाढ़ ने न केवल उनकी जमीन और फसलें बर्बाद की है, बल्कि उनके सपनों और उम्मीदों को भी पानी में डुबो दिया है. कोसी नदी ने तबाही का वो मंजर पेश किया है, जिसने सैकड़ों परिवारों की जिंदगी को बर्बाद कर दिया है. हर साल की तरह इस साल भी कोसी के उफान ने गांवों को जलमग्न कर दिया, और एक बार फिर कई लोग बेघर हो गए हैं. तटवर्ती इलाकों में कोसी ने अपनी विकराल धारा से खेतों, घरों और लोगों की उम्मीदों को बहा ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
शिविर में बढ़ने लगी पीड़ितों की भीड़
प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों में राहत शिविर तो बनाए हैं, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं. शिविरों में भीड़ बढ़ती जा रही है, और खाने-पीने के सामान की कमी महसूस हो रही है. बच्चे, बुजुर्ग और बीमार लोग सबसे अधिक परेशान हैं.पीड़ितों का कहना है, सरकार से राहत तो मिल रही है, लेकिन हमारे नुकसान की भरपाई कौन करेगा? हमारी फसलें खत्म हो गयीं, हम फिर से कब अपने पैरों पर खड़े हो पाएंगे. ये उन्हें नहीं पता है.
कोसी की शीतलता व सूर्य देव की तपिश से बेबस हुए पीड़ित
एक ओर कोसी की शीतलता तो दूसरी तरफ सूर्य देव की तपिश, दोनों बाढ़ पीड़ितों की परीक्षा ले रहे हैं. लेकिन बाढ़ पीड़ित भी हार मानने को तैयार नहीं हैं. खुले आकाश के नीचे बैठे शिवा देवी कहती है कि अब कितनी परीक्षा लेगी कोसी मईया. सब कुछ लेने के बाद भी अगर सकुन नहीं मिला तो अब ऊपर ही ले चलो. शिवा के आंखों से निकल रही आंसू सबकुछ तबाह हो जाने की गवाही दे रहा था. सीने से लगाये बच्चे भूख से बिलख रहे थे. कोसी के पानी में चीनी मिलाकर शिवा अपने बच्चों को पीला रही थी. इसी बीच फोन आया तो जवाब दिया कब आ रहे हैं. पति से बात करने के बाद शिवा के चेहरे पर थोड़ा बहुत सुकून दिख रहा था.
साल भर की मेहनत एक रात में बह गयी
तटबंध के भीतर चारों ओर सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा है. कल तक जहां लोगों का आशियाना व खेतों में लहलहाती फसल नजर आ रही थी. आज वहां कोसी की धारा बह रही है. लेकिन हर ओर फैली तबाही के बीच कुछ लोगों के दिलों में अब भी उम्मीद की किरण बाकी है. हमारी जिंदगी नदी के भरोसे है, लेकिन हमें यकीन है कि एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा. यह कहते हुए मंगली देवी की आवाज रुंधगयी.बैरिया गांव के किसान देव शंकर, जिनकी आंखों में अभी भी दर्द और बेबसी की परछाई झलक रही है. कहते हैं कि साल भर की मेहनत एक ही रात में पानी में बह गयी. मेरी जमीनें, मेरे सपने सबकुछ खत्म हो गया. अब न जाने कब फिर से खेती कर पाऊंगा, और न जाने कैसे अपने बच्चों को पाल पाऊंगा. यह दर्द सिर्फ देवशंकर का नहीं है. ऐसे सैकड़ों किसानों की मेहनत और आशाएं इस बाढ़ के साथ बह गयीं. फसलें खत्म हो गयीं, और जमीनें जलमग्न हैं. कोसी की तेज धारा ने न सिर्फ लोगों के घर उजाड़ दिए, बल्कि उनकी आजीविका का भी सर्वनाश कर दिया है.
रातों रात उजड़ गये गांव
रात के अंधेरे में आयी बाढ़ ने गांवों को लील लिया. लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले ही उनके घरों में पानी घुस गया. सुपौल के एक छोटे से गांव की गीता देवी बताती हैं, “रात को बच्चे सो रहे थे. अचानक पानी घर के अंदर आ गया. हम लोग जैसे-तैसे बच्चों को उठाकर बाहर निकले. अब हमारे पास कुछ नहीं बचा, न घर, न खाने का सामान.” गीता देवी की बात सुनकर वहां खड़े दूसरे लोग भी अपने आंसू नहीं रोक पाये. गांवों में हर ओर केवल तबाही का मंजर है.
घटने लगा पानी तो सताने लगी भयानक तबाही की चिंता
सुपौल. कोसी नदी के डिस्चार्ज में कमी से भले ही अभियंता व प्रशासनिक अधिकारी राहत की सांस ले रहे हों. लेकिन बाढ़ पीड़ितों को पानी घटने के साथ ही आने वाली भयानक तबाही की चिंता सताने लगी है. उन्हें अभी से ही भय सताने लगा है कि पानी घटने के बाद जानलेवा कटनियां उनके पुस्तैनी घर को न निगल लें. हर साल की तरह इस बार भी कोसी का रुख लगातार बदलता जा रहा है. जब भी नदी का पानी घटता है, किनारे बसे गांवों में कटाव की आशंका बढ़ जाती है. तटबंध के अंदर बसे लोगों के लिए यह समय बेहद तनावपूर्ण नजर आ रहा है. पहले बाढ़ ने लोगों के आशियाना व खेतों में लगी फसलों को अपना निवाला बना लिया. अब बचा खुचा उम्मीद को कटाव की चिंता सताने लगी है. रामेश्वर यादव का कहना है, जब भी नदी का पानी घटता है, हमें अपनी जमीन खोने का डर सताने लगता है. पिछले साल मैंने अपनी आधी जमीन कटाव में खो दी थी. इस साल भी वही डर हमें निगल रहा है. स्थानीय लोग अभी से ही सरकार से अपील कर रहे हैं कि जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए जाएं. ताकि उनका जीवन और आजीविका सुरक्षित रह सके. जल संसाधन विशेषज्ञों का मानना है कि कोसी नदी का कटाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. लेकिन इसका प्रभाव कम करने के लिए तटबंध और अन्य उपाय किए जा सकते हैं. नदी के प्रवाह को नियंत्रित करना मुश्किल है. लेकिन समय पर कार्रवाई से गांवों को कटाव से बचाया जा सकता है. कोसी के पानी का घटाव एक ओर राहत लाता है, तो दूसरी ओर लोगों की जमीन और घरों के खोने का खतरा बढ़ा देता है. ग्रामीणों की यह पीड़ा हर साल दोहराई जाती है. अब वे सिर्फ एक उम्मीद में हैं कि इस बार कटाव की यह मार उन्हें उजाड़ न दे.
कोसी की चुनौती और सरकार की विफलता
कोसी का हर साल का यह कहर सरकार और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है. वर्षों से बाढ़ की समस्या से जूझ रहे लोग अब निराश हो चुके हैं. बाढ़ से निबटने के लिए बनाये गये तटबंध और योजनाएं हर साल नाकाफी साबित हो रही हैं. लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर कब तक उन्हें इस प्राकृतिक आपदा का शिकार बनना पड़ेगा. लेकिन इस तबाही के बीच, लोगों के दिलों में अभी भी उम्मीद की एक किरण बाकी है. हमारा सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन हम फिर से उठ खड़ेहोंगे. यह कहते हुए एक बुजुर्ग किसान ने उम्मीद जतायी. कोसी की इस विनाशकारी गाथा ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकार और समाज इस तबाही को रोकने के लिए कभी ठोस कदम उठा पाएंगे, या हर साल की तरह फिर एक नयीगाथा लिखी जायेगी?
कोसी बराज की सड़क पर पसरा पानी, वीडियो देख सहमे लोग
कोसी बराज पर शनिवार को लोगों की भीड़ जमा रही. कोसी के उग्र रूप का लोग वीडियो बनाते दिखे. सोशल मीडिया पर भी यह खूब वायरल हुआ. जैसे-जैसे शाम ढला लोगों की चिंता बढ़ती गयी. दरअसल, शाम तक 05 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जा चुका था. अब रात काटना लोगों को भारी दिख रहा था. रात में संकट गहराने का भय लोगों के अंदर था. इस बीच कोसी बराज का एक वीडियो वायरल हुआ. जिसमें कोसी बराज के सड़क पर पानी फैला था. लोगों को इस बात का डर सताने लगा कि बराज पर पानी अब इस कदर बढ़ चुका है कि बाहर सड़क पर पहुंच गया.
पानी उतरा तो कचरे का दिखा अंबार
जानकारों के अनुसार, बराज के 21 नंबर स्ट्रीम के नीचे लकड़ी फंस जाने और गाद भर जाने के कारण बराज की सड़क पर कोसी का पानी हिलकोर के साथ चढ़ गया था. देर रात तक यह पानी जमा रहा. कोसी बराज पर वाहनों के परिचालन पर नेपाल सरकार ने रोक लगा दी. वहीं सुबह जब कोसी बराज से पानी उतरने लगा तो जिस सड़क पर पानी चढ़ा था वहां कचरों का अंबार दिखा जो कोसी नदी अपने साथ बहाकर लायीथी.
कोसी अपने साथ सालाना लाती है 283 मिलियन टन गाद
सुपौल. कोसी नदी सलाना करीब 283.40 मिलियन टन गाद लाती है. इस गाद के फैलाव को मापा जाये तो यह 145 मिलियन टन प्रति हजार एकड़ फीट होता है. सालाना के हिसाब से यह 2.97 मिलीमीटर होता है. 2013 में कोसी के लिए तैयार बाढ़ प्रबंधन के मास्टर प्लान के मुताबिक भीमनगर बराज से डगमारा के बीच नदी का स्लोप 0.49 मीटर/प्रति किलोमीटर से 0.45 मीटर/प्रति किलोमीटर, डगमारा से सुपौल के बीच स्लोप 0.33 मीटर/प्रति किलोमीटर से 0.3 मीटर/प्रति किलोमीटर और सुपौल से महिषी के बीच स्लोप 0.27 मीटर/प्रति किलोमीटर से 0.25 मीटर/प्रति किलोमीटर हो जाता है. 2013 को मानक वर्ष मानते हुए आईआईटी दिल्ली की एक रिपोर्ट बताती है कि 25 साल बाद नदी की पेटी चतरा से जलपापुर के बीच 10.97 सेमी, जलपापुर से भीमनगर बराज के बीच 8.86 सेमी, भीमनगर बराज से डगमारा के बीच 2.63 सेमी, डगमरा से सुपौल के बीच 7.57 सेमी, सुपौल से महिषी के बीच 9.62 सेमी, महिषी से कोपरिया के बीच 5.04 सेमी और कोपरिया से कुरसेला के बीच 1.30 सेमी हरेक साल गाद भराव से उथली हो जायेगी.
किसानों पर दोहरा कहर बरपा रही गाद
कोसी इलाके में नदी तल एवं बहु फसली जमीनों में भी 12 से 18 इंच तक जमी गाद किसानों पर दोहरा कहर बरपा रही है. जानकार बताते हैं कि अब यह गाद तटबंधों के भीतर नदी के पेट में जमा होता है. जिससे नदी उथली होती जाती है. तटबंधों के टूटने से बाढ़ आती है तो खेतों में मोटे बालू की परत बिछ जाती है. खेतों की उर्वरता समाप्त हो जाती है. जब नदियों पर तटबंध नहीं बने थे तो बाढ़ का पानी पूरे इलाके में फैलता था. दो-दस दिनों में बाढ़ का पानी उतरता तो खेतों में सिल्ट या गाद की महीन परत बिछी होती थी. वह गाद उर्वरता के गुणों से भरपूर होता था. पूरे इलाके में फैल जाने से समस्या नहीं बनता था, बल्कि खेतों की उर्वरता को बढ़ाने वाला अवयव साबित होता था.
कोसी नदी ने तीसरी बार बनाया अधिक जलस्राव का रिकॉर्ड
सुपौल. 29 सितंबर 2024 को तीसरी बार कोसी नदी ने दूसरे अधिकतम जलस्राव का रिकॉर्ड बनाया. पहली बार 56 साल पहले 1968 में कोसी का अधिकतम जल स्तर 9.13 लाख क्यूसेक व 7.88 लाख क्यूसेक रहा था. जो रिकॉर्ड अब तक बरकरार है. लेकिन 29 सितंबर की अहले सुबह कोसी ने जो नया रिकॉर्ड लिखा, वह आम लोगों को चौंकाने वाली रहा. रविवार की अहले सुबह कोसी बराज पर कोसी नदी का जलस्तर 06 लाख 61 हजार 295 क्यूसेक स्थिर अवस्था में मापा गया था. जबकि बराह क्षेत्र में शनिवार को 12 बजे रात में 05 लाख 82 हजार 950 क्यूसेक पानी स्थिर अवस्था में मापा गया. पानी का स्तर बढ़ते देख तटबंध के अंदर की बात तो दूर बाहर के लोगों की नींद भी उड़गयी. लोग अपने-अपने घरों में लाइट जलाकर बैठ ईश्वर का स्मरण करने लगे. लेकिन इसी बीच 01 बजे रात से बराह क्षेत्र में और 07 बजे सुबह से राहत भरी खबर आने लगी. इसके बाद लोगों ने राहत की सांस ली.