Supaul News : कोसी की धारा बदलने के साथ बदल जाता है घर का पता

फिर से बाढ़-कटाव का मौसम आ गया है. कोसी बराज से पानी छोड़े जाने के बाद लोग भयभीत हैं. सुपौल जिले में कटाव की जद में आये घरों के लोग दिन में खुद का घर तोड़ते हैं. रात में रतजगा करते हैं.

By Sugam | July 3, 2024 6:08 PM

Supaul News : राजीव कुमार झा, सुपौल. कोसी बराज से एक सप्ताह पहले 02 लाख 39 हजार क्यूसेक पानी छोड़े जाने के कारण किशनपुर, सरायगढ़ प्रखंड और सुपौल के कोसी तटबंध के अंदर बसे दर्जनों पंचायतों के लोगों को एक बार फिर से बाढ़-कटाव का डर सताने लगा है.पीड़ित लोगों की जुबां पर एक बार फिर व्यथा गीत कोसी सन बेदर्दी जग में कोय नय… आ गया है.

आधा दर्जन बार उजड़ चुका है ढोली गांव

सरायगढ़ प्रखंड के पास एक ऐसा गांव है, जो आधा दर्जन बार उजड़ चुका है. गांव का नाम है ढोली. यहां के लोग हरेक साल कोसी मैया से गुहार लगाते हैं कि इस बार माफ कर दो मैया. कितनी बार उजाड़ोगी. ढोली जैसे एक दर्जन गांव हैं कोसी इलाके में. कोसी ऐसी नदी है जो हरेक साल अपनी धारा बदल लेती है और इसी के साथ लोगों का जीवन बदलता रहता है. उनका बासडीह बदल जाता है. बर-बार उजड़ने और बसने का दर्द लेकर जीना इनकी नियति बन गयी है. इस साल यदि उनका पता कोसी तटबंध के पूरब है, तो अगले साल उनका पता कोसी तटबंध के दक्षिणी छोर पर हो जाता है. ये गरीब नहीं हैं. इनके पास इतने पैसे रहते हैं कि वे पक्का मकान बना सकें, लेकिन कोसी को क्या कच्चा, क्या पक्का. जब नदी रौद्र रूप धारण करती है, तो सब कुछ लील जाती है. पूरा गांव गायब हो जाता है. ये गांव 10-15 साल बाद बाहर आते हैं, ऐसे में पक्का मकान बनाना एक रिस्की काम है. कई परिवार ऐसे हैं जिन्होंने 50 साल में 15 से 20 बार तक बासडीह बदला है, यानी एक जगह से विस्थापित होकर दूसरी जगह और दूसरी से तीसरी जगह गये हैं. इस पूरे इलाके में यातायात की व्यवस्था लचर है.सड़कें हैं नहीं हैं. यहां के लोगों को कभी नाव पर तो कभी पैदल चलना पड़ता है, ऐसे में भवन निर्माण सामग्रियों को इन गांवों तक ले जाना भी कम दुष्कर कार्य नहीं है. ऐसा नहीं कि ट्रक या ट्रैक्टर से लाकर ईंट, बालू या छड़ सीधे अपने दरवाजे पर उतार पाएंगे. लोग आज भी यहां मिट्टी और फूस के घरों में रहना पसंद करते हैं.

गांव छोड़ 10 साल से बांध पर रह रहे पीड़ित

सुपौल जिले के सरायगढ़ प्रखंड की ढोली पंचायत के बलथरवा गांव के वार्ड नंबर 11 निवासी कमल साह बताते हैं कि 10 साल पहले हम सपरिवार गांव में खुशी से जीवन-यापन करते थे, लेकिन कोसी की कुदृष्टि ने ऐसा जख्म दिया कि रात में घर छोड़ खेत, खलियान छोड़कर बांध पर आना पड़ा. गांव की चर्चा होते ही कमल साह के आंखें नम हो गयी. सहदेव पासवान, राम प्रसाद सरदार, अनिता देवी, कुशेश्वर राम सहित दर्जनों परिवार बांध पर 10 साल से शरण लेकर किसी तरह परिवार के साथ जीवन यापन कर रहे हैं.

खुद घर तोड़ रहे पीड़ित, कहा-डर लगता है कि इस बार क्या होगा

डर सता रहा है कि अगर बाढ़ आ गयी, तो हम लोग कहां पर पनाह लेंगे. वर्षों से बाढ़ की मार झेल रहे दियारा के लोग शापित जीवन जीने को मजबूर हैं. जनप्रतिनिधियों से विकास के नाम पर सिर्फ आश्वासन ही मिला है. हर साल बाढ़ आती है, राहत और बचाव का कार्य चलता है, लेकिन बाढ़ के खत्म होते ही सब लोग भूल जाते हैं. ऐसा लगता है कि बाढ़ की समस्या का कोई स्थायी हल सरकार के पास है ही नहीं. इन सबके बीच झेलना तो गरीब जनता को ही पड़ताहै.
-अनीता देवी, कोसी पीड़िता
जब घर कटा तो सपरिवार गांव में सोये हुए थे. अचानक हल्ला होने पर सपरिवार गांव छोड़कर बांध पर आ गये. तब से यहीं घर बनाकर रह रहे हैं. ग्रामीणों ने बताया कि मॉनसून के समय लोग तटबंध के अंदर रात में नहीं सोते हैं.कारण रात होते ही कोसी नदी का कटाव तेज हो जाता है. हमेशा यह डर लगता है कि कब मेरे घर की बारी आ जाएगी.
-राम प्रसाद साह, सरायगढ़
हम लोगों ने घर जो बनाया है, वह मजदूरी करके बनाया था. मैं पंजाब में रहकर मजदूरी करता था. वहां से पैसे कमा कर आया और यहां पर घर बनाया था, लेकिन अब अपने से ही घर तोड़ने को मजबूर हैं.
– कमल साह, सरायगढ़
कोसी से कटवा चालू है, हर मिनट पर यहां घर कोसी में समा रहा है. तीन-चार सालों से कोसी में कटाव हो रहा है. हमेशा कटाव का डर बना रहता है.
-अरहुलिया देवी, सरायगढ़

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