Supaul News : मलबरी की खेती को मिले बढ़ावा, तो सूबे में लहरायेगा कौशिकी ब्रांड रेशम का परचम
सुपौल जिले में विभाग की उदासीनता के कारण शहतूत की खेती दम तोड़ रही है. इससे रेशम कीट पालन का कारोबार खत्म हो रहा है. इससे किसान निराश हैं. रेशम कीट पालन छोड़ परंपरागत फसलों की खेती करने लगे हैं.
Supaul News : बलराम प्रसाद सिंह, सरायगढ़. सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड में राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी रेशम कीट पालन योजना दम तोड़ रही है. इससे शहतूत की खेती करने वाले किसान अब निराश होकर रेशम कीट पालन छोड़ परंपरागत फसलों की खेती करने लगे हैं. बताया जा रहा है कि कोसी का इलाका रेशम के कीमती धागों के उत्पादन को उपयुक्त है. जिले की जमीन व जलवायु दोनों ही मलबरी परियोजना के लिए बेहतर हैं. विभाग और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से जिले में रेशम कीट पालन उद्योग खत्म होने के कगार पर है. शहतूत की खेती और रेशम कीट पालन के लिए खोले गये अधिकांश नोडल सेंटर बंद हो गये हैं. इस सेंटरों पर प्रशिक्षण केंद्र भी खोला जाना था, जो अधर में लटका हुआ है.
1991 में प्रारंभ हुई थी योजना
वर्ष 1991 में सहरसा के तत्कालीन उप विकास आयुक्त संतोष मैथ्यू की पहल पर मलबरी रेशम उद्योग से संबंधित काम के लिए सुपौल, सहरसा और मधेपुरा में नोडल सेंटर खोले गये. इन जिलों में इस खेती की शुरुआत कर किसानों को बेहतर रोजगार के विकल्प सामने दिये थे. सभी नोडल सेंटर पर अधिकारियों की नियुक्ति कर उपकरण उपलब्ध कराये गये थे. लेकिन सहरसा से काट कर सुपौल को जिला बनाये जाने के बाद अधिकारियों की उदासीनता के कारण शहतूत की खेती और रेशम कीट पालन के लिए खोले गये नोडल सेंटर देखरेख के अभाव में बंद हो गये. शहतूत की खेती व रेशम कीट पालन कर रहे किसानों का कहना है कि इसके लिए पूंजी की आवश्यकता होती है. पूंजी के अभाव में अधिकांश किसान इस धंधे से नाता तोड़ चुके हैं.सैकड़ों की जगह मात्र दर्जन भर किसान आज अपने बलबूते रेशम कीट पालन कार्य से जुड़ेहैं.
जिले में खोले गये थे 27 नोडल सेंटर
जिले में 27 नोडल सेंटर खोले गये थे. इनमें सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड में 03, राघोपुर में 07, पिपरा में 07, त्रिवेणीगंज में 04, बसंतपुर में 04, छातापुर में दो केंद्र बनाये गये थे.त्रिवेणीगंज और बसंतपुर प्रखंड को छोड़ कर सभी जगह के नोडल सेंटर मृतप्राय हो गये हैं. मलबरी की खेती को बढ़ावा देने के लिए जीविका, मनरेगा और उद्योग विभाग को जिम्मेवारी दी गयी है. अगर यह विभाग इस ओर ध्यान दे तो वह दिन दूर नहीं है कि कोसी क्षेत्र मलबरी उत्पादन में अग्रणी जाना जायेगा. यहां के कौशिकी ब्रांड रेशम वस्त्र का परचम लहरायेगा. विभागों की उदासीनता के कारण सैकड़ों किसान शहतूत की खेती व उत्पादन से विमुख होकर दूसरी खेती की ओर रुख कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री ने सेवा यात्रा के दौरान लिया था कीट पालन का जायजा
09 मई 2012 को सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सेवा यात्रा के दौरान सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड के सदानंदपुर गांव पहुंच कर रेशम कीट पालन का अवलोकन किया था. कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री श्री कुमार ने कोसी मलबरी योजना की अपार संभावना को देख कर घोषणा की थी कि सदानंदपुर गांव में रेशम उद्योग स्थापित किये जायेंगे. जहां रेशम के धागों से बेशकीमती कपड़े तैयार कर देश के विभिन्न शहरों में भेजा जायेगा. इस अवसर पर खेती करने के लिए अनुदान राशि का भी वितरण किया गया. सीएम ने उद्योग विभाग के सचिव संतोष मैथ्यू को किसानों से मिल कर परियोजना तैयार करने का आदेश दिया. परियोजना तैयार भी की गयी. सचिव द्वारा किसानों को आश्वासन दिया गया कि जल्द ही रेशम उद्योग की स्थापना की जायेगी. इससे जिले भर के शहतूत किसान गदगद हो गये. परियोजना का रिपोर्ट बिहार सरकार के माध्यम से भारत सरकार को भेजा जायेगा. लेकिन मुख्यमंत्री के आश्वासन के एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कोसी मलवरी परियोजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका. यूं कहा जाये कि कोशी में रेशम चादर की छाया नहीं बढ़ सकी.
शहतूत के पत्ते हैं रेशम के कीड़े के भोजन
रेशम के कीड़े शहतूत के पत्ते का भोजन करते हैं. उसके बाद रेशम का कोकून निकलता है. इससे धागा निकाला जाता है. इसी धागे से रेशमी वस्त्र का निर्माण किया जाता है, जो बाजारों में ऊंची कीमत पर बेचा जाता है. रेशम के कीड़े पालने में महिलाएं बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं. इसके लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाओं की जरूरत होती है. वातावरण के अनुसार, रेशम के कीड़े को स्वस्थ रखने के लिए बिजली शेड निर्माण, डाला, चंद्रिका, पंपसेट आदि उपकरणों की आवश्यकता होती है.
किसानों ने कहा, सरकार दे ध्यान तो बहुरेंगे दिन
शहतूत किसान ज्ञानदेव मेहता, सुखिया देवी, ननकी देवी, जानकी देवी, सरिता देवी आदि का कहना है कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ाहै. सरकार द्वारा शहतूत की खेती के लिए पर्याप्त संसाधन मुहैया करायीजाये तो शहतूत की खेती कोसी के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. किसानों का कहना है कि इसके लिए बड़ी पूंजी चाहिए. रेशम कीट से कोकून निकलने में 04 महीने का समय लगता है. रेशम कीट पश्चिम बंगाल से लाया जाता है. एक बार में 35 से 40 हजार रुपये की पूंजी लगती है. यहां उत्पादित कोकून 500 रुपये प्रति किलो बिकता है. किसानों ने बताया कि पूर्व में रेशम उद्योग खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार प्रति किसान 25 हजार रुपये का अनुदान देती थी, जो अभी नहीं दी जा रही है. राज्य सरकार से भी कोई खास मदद नहीं मिल पा रही है. केंद्रीय रेशम बोर्ड के पूर्व सदस्य ज्ञानदेव मेहता ने उद्योग विभाग के पूर्व सचिव को आवेदन देकर रेशम कीट पालन उद्योग को पुनर्जीवित कराने की मांग की है.