Supaul News : मछली पालन से समृद्ध हो रहा सुपौल

पेन कल्चर व बायोफ्लॉक तकनीक मछली उत्पादकों के लिए वरदान साबित हो रहा है. सुपौल जिले में 223 सरकारी व 03 हजार निजी तालाब हैं. इनमें 18 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है.

By Sugam | June 30, 2024 6:37 PM

Supaul News : विकास कुमार, सुपौल. मछली उत्पादन के लिए अपनी पहचान स्थापित करने वाले सुपौल जिले में मछली उत्पादन व खपत में काफी अंतर है. जिले में 223 सरकारी तालाब व लगभग 03 हजार निजी तालाब हैं. इसमें लगभग 18 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. जबकि जिले में एक साल में इससे कहीं ज्यादा मछली की खपत होती है. उत्पादन और खपत में गैप होने से घरेलू बाजारों में आंध्र प्रदेश व बंगाल की मछलियों का दबदबा रहता है. जानकारों की मानें तो कोसी में बाढ़ और अतिवृष्टि के कारण भी मछली उत्पादन को बड़ा झटका लगता है. अगर जल अधिग्रहण वाले इलाके में पेन कल्चर व बायोफ्लॉक तकनीक से मछली उत्पादन किया जाये, तो उत्पादन व खपत की इस खाई को जल्द ही पाटा जा सकता है.बायोफ्लॉक तकनीक से ऐसी मछलियों का उत्पादन किया जाता है, जो पानी में ठोस कण की सांद्रता व खराब गुणवत्ता वाले पानी को बर्दाश्त कर सके.बायोफ्लॉक पद्धति द्वारा झिंगा, तिलपिया, कॉमनकार्प, पंघास व मांगुर उपयुक्त प्रजाति है.

चलाये जा रहीं कई योजनाएं

सुपौल जिले के मत्स्यजीवियों(मछुआराें) के लिए केंद्र प्रायोजित व राज्य प्रायोजित अनेकों योजनाएं धरातल पर लायी गयी हैं. ताकि मछली उत्पादन के साथ मछुआरों की आर्थिक स्थिति मजबूत की जा सके. केंद्र प्रायोजित प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 31 योजना कार्यरत है. इसमें से 2023-24 में जिले को सात योजना आवंटित की गयी. इसमें नया तालाब निर्माण, बायोफ्लॉक तालाब का निर्माण, आर्द्र भूमि में मत्स्य फंगुलिकाओं का संचय, मत्स्य पालन हेतु लघु बायो फ्लॉक का अधिष्ठापन, आइस प्लांट/कोल्ड स्टोरेज का निर्माण, जिंदा मछली विक्रय केंद्र का निर्माण व लघु फीड मिल शामिल हैं. इन योजनाओं के तहत सभी लाभुकों को 40 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक सब्सिडी का प्रावधान किया गया है.

सरकार देती है 70 फीसदी अनुदान

मुख्यमंत्री आत्मनिर्भर सात निश्चय योजना टू के तहत सुपौल जिला में तीन योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है. इसमें मुख्यमंत्री समेकित चौर विकास योजना, निजी तालाबों के जीर्णोद्धार व जलाशय मत्स्यिकी विकास योजना शामिल हैं. इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य में बड़े पैमाने पर उपलब्ध निजी चौर भूमि को मछली पालन हेतु विकसित करना है. इस योजना में अन्य वर्ग को 50 प्रतिशत तथा अतिपिछड़ा, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को 70 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है. निजी क्षेत्र के ऐसे तालाब, जिसमें जीर्णोद्धार की आवश्यकता है, उसकी उड़ाही कर जलधारण क्षमता को बढ़ाना है, ताकि मछली उत्पादकता व उत्पादन में वृद्धि हो सके. इस योजना में अन्य वर्ग को 30 प्रतिशत तथा एससी-एसटी को 40 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है. वहीं जलाशय विकास योजना के तहत राज्य के जलाशयों में संचय आधारित मत्स्य प्रग्रहण व आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर जलाशय के मत्स्य उत्पादन व उत्पादकता को बढ़ावा दिया जायेगा. इस योजना में सरकार के द्वारा 70 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था की गयी है.

मत्स्य पालकों के लिए वरदान साबित हो रही बायोफ्लॉक तकनीक

देश व प्रदेश की बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ पोषक युक्त प्रोटीन खाद्य पदार्थों की मांग भी बढ़ती जा रही है. पोषण व प्रोटीन खाद सुरक्षा में मत्स्य व मत्स्य उत्पाद की अहम भूमिका रही है.बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करना तालाब की अपेक्षा बहुत ही सुगम है. इस तकनीक से मछली पालन में कम जगह व कम पानी में ही अधिक सघनता के साथ मछली उत्पादन की जा सकती है. इससे प्रति यूनिट जल की आवश्यकता बढ़ जाती है. इस तकनीक से जैव सुरक्षा, सस्ता मत्स्य आहार उत्पादन, प्रदूषण का कम खतरा व बेहतर जल-जमीन की उपयोगिता आदि जैसे अनेक लाभकारी फायदे के कारण मत्स्य उत्पादकों के बीच यह काफी लोकप्रिय हो रहा है. बायो फ्लॉक विधि से प्लास्टिक टैंक में भी मछली पालन किया जा सकता है. इसमें 06 से 08 लाख रुपये सालाना कमाई हो सकती है. इसको बढ़ावा देने के लिए सरकार बायोफ्लॉक टैंक अधिष्ठापन योजना के तहत 50 से 75 फीसदी तक अनुदान भी देती है. तालाब ही नहीं घर के छत पर भी इस विधि से मछली पालन का कार्य किया जा सकता है. विभाग द्वारा मछली पालन के लिये अनुदान के साथ-साथ प्रशिक्षण की भी सुविधा मुहैया करायी जाती है.बायोफ्लॉक की एक यूनिट के लिए 08.50 लाख की लागत आती है. इस पर सामान्य जाति के लिए 50 प्रतिशत व एससी-एसटी के लिए 75 प्रतिशत अनुदान मिलता है.

बायोफ्लॉक का उद्देश्य

बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा कम जगह व कम पानी में अधिक मत्स्य उत्पादन कर सुपाच्य प्रोटीन के साथ-साथ स्वरोजगार का असीम अवसर प्रदान करना है. इस पद्धति में पाली जाने वाली मछलियों में पंगेशियस, देशी मांगुर, सिंघी, झिंगा, तिलापिया, कॉमनकार्प, पंगास, कैटफीस आदि शामिल हैं. इनका बाजार मूल्य व खपत अन्य मछलियों की अपेक्षा अधिक होती है. इससे मछली पालकों की आमदनी पर सीधा असर पड़ताहै.

कहते हैं जिला मत्स्य पदाधिकारी

अब तक जिले में 08 मत्स्यजीवियों द्वारा बायोफ्लॉक तकनीक से मछली उत्पादन किया जा रहा है. उन्हें सरकार द्वारा जारी अनुदान की राशि भी दी गयी है. विभाग का प्रयास रहता है कि जो भी मत्स्यजीवी मछली पालन के क्षेत्र में कार्य करते हैं, उनको हर संभव योजना का लाभ दिया जायेगा.
-शंभु कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी

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