Supaul news : तोरा बिनु बगिया भेल उदास

Supaul news : नौ माह पहले खोंइछा भर कर नैहर से विदा हुईं शारदा सिन्हा ने फिर से आने का वादा किया था. वह नहीं आयीं, आया तो उनके नहीं रहने का दुखद समाचार.

By Sharat Chandra Tripathi | November 6, 2024 10:15 PM
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Supaul news : हुलास की धिया (बेटी) नहीं रहीं. नौ माह पहले खोंइछा भर कर नैहर से विदा हुईं शारदा सिन्हा ने फिर से आने का वादा किया था. वह नहीं आयीं, आया तो उनके नहीं रहने का दुखद समाचार. इस समाचार के फैलते ही पूरे हुलास गांव में सन्नाटा छा गया. वह खपरैल घर, वह बाग-बगीचा… सब के सब उदास हैं. उनका गाया एक गीत है- कोयल बिनु बगिया ना शोभे राजा… ठीक वैसे ही शारदा के नहीं रहने से उनका नैहर उदास है. वह बचपन में जहां गीत का रियाज करती थीं, वह कोना-कोना रो रहा है. शारदा जी ने मैथिली में एक समदाओन (बेटी विदाई गीत) गाया था- सूतलछलियै बाबा के अंगनमा…जिसके बजे बिना गांवों में शादी-ब्याह जैसा मांगलिक कार्य पूरा नहीं माना जाता है. जब बेटी विदा होती है, तो ये गाना जरूर बजता है. अब सुपौल की शारदा दीदी चली गयीं. वह लौट कर नहीं आएंगी. बची रहेंगी, तो बस उनकी खनकती आवाज. उनके गाये समदोओन उनके नैहर के लोग सदियों तक गाते रहेंगे- सूतलछलियै बाबा के अंगनमा…अचके मेआयलडोलिया कहार…

शोक में डूबा है हुलास गांव

छठ के पारंपरिक गीत हों या विवाह के मौके पर अक्सर सुनायी देने वाले मधुर मैथिली गीत, जिसे सुनते ही जुबां पर सिर्फ एक ही नाम शारदा सिन्हा का आता है. मिथिलांचल के सुपौल जिले के राघोपुर प्रखंड स्थित हुलास गांव में जन्मी शारदा सिन्हा बिहार ही नहीं, बल्कि देश-विदेश के लोगों की जुबान पर हैं. हुलास गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि शारदा पटना में रहकर स्कूल-कॉलेज की शिक्षा लेने के क्रम में कभी-कभार छुट्टी के दिनों में अपने गांव हुलास आती थीं. यहां आम के बगीचे एवं गाछी के नीचे अपनी सखी-सहेलियों के साथ शौक से आम को अगोरने जाती थीं. इसी दौरान सखी-सहेलियों के साथ लोकगीत गाना सीखा. दिन भर बगीचे में रहतीं और खूब लोकगीत गातीं. पर, अब उनकी याद रह गयी है. उनके निधन की खबर से पूरा हुलास गांव शोक संतप्त है.

नृत्य, गायन उनकी जिंदगी का था अभिन्न हिस्सा

विलियम्स स्कूल में शुरुआती पढ़ाई के बाद बांकीपुर गर्ल्स हाईस्कूल की छात्रा रहीं शारदा सिन्हा मगध महिला कॉलेज से स्नातक कीं. इसके बाद प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से संगीत में एमए कीं. समस्तीपुर के शिक्षण महाविद्यालय से बीएड किया और पढ़ाई के दौरान संगीत साधना से भी जुड़ी रहीं. बचपन से ही नृत्य, गायन उनकी जिंदगी का अभिन्न अंग था. एक साल पूर्व बातचीत में शारदा सिन्हा अपने छात्र जीवन से जुड़ा अनुभव बता रही थीं कि एक बार भारतीय नृत्य कला मंदिर में जब वह पढ़ रही थीं, तब एक दिन ऐसे ही सहेलियों के साथ गीत गा रही थीं. इसे सुन हरि उप्पल सर छात्राओं से पूछे कि यहां रेडियो कहां बज रहा है. किसकी शरारत है कि यहां रेडियो लेकर आया है. सब ने कहा कि शारदा गा रही हैं. तब उन्होंने मुझे अपने कार्यालय में बुलाया और टेप रिकाॅर्डर ऑन कर कहा कि अब गाओ. उसके बाद गाना शुरू किया, जिसे बाद में उन्होंने सुनाया. सुन कर मुझे भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इतना अच्छा गा सकती हूं. मैंने पहली बार अपना ही गाया गाना रिकॉर्डेड रूप में सुना था.

1988 में विदेश में पहला शो

शारदा सिन्हा ने अपने गायन से देश की सीमाओं से पार जाकर मॉरीशस में भी खूब लोकप्रियता पायी. 1988 में उप राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के साथ मॉरीशस के 20 वें स्वतंत्रता दिवस पर जानेवाले प्रतिनिधिमंडल में भी वह शामिल थीं. वहां इनका भव्य स्वागत किया गया. इनके गायन को पूरे मॉरीशस में सराहा गया. शारदा सिन्हा को बचपन से ही नृत्य और गायन से लगाव था. परिजन बताते हैं कि भारतीय नृत्य कला मंदिर में नृत्य की परीक्षा के समय इनका दाहिना हाथ फ्रैक्चर हो गया. इसके बावजूद उन्होंने मणिपुरी नृत्य किया और अपनी कक्षा में प्रथम आयीं. भारतीय नृत्य कला मंदिर के ऑडिटोरियम का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधा कृष्णन आये. उस कार्यक्रम में इन्होंने मणिपुरी नृत्य पेश किया, जिसे उन्होंने काफी सराहा.

गायन में शालीनता को रखती थीं बरकरार

हुलास गांव में 1964 में पहली बार मंच पर भी गाकर रुढ़िवादी सोच को तोड़ा. परिजन बताते हैं कि इसके बाद गांव के लोग और परिजन पूछते थे कि शारदा अब कब गांव आएंगी और गाएंगी. शारदा सिन्हा के जीवन का हमेशा से यह उसूल रहा है कि वह अच्छे गाने गाएं, जो भी गाया उसमें हमेशा शालीनता का ख्याल रखा है. अच्छा गानेवाले बहुत कम गाकर भी लोगों तक पहुंच सकते हैं और लोकप्रियता पा सकते हैं. अगर किसी गाने के बोल अश्लील या अच्छे नहीं हैं, तो वह गाने से इनकार कर देती थीं. गायन में शालीनता और मिट्टी की सोंधी महक रहे यह कोशिश वह हमेशा करती रहीं.

शारदा दीदी की सादगी ही उनकी बड़ी पहचान थी

प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा के निधन के साथ ही लोक गायकी के एक युग का अंत हो गया. अपने मधुर आवाज से लोक गायकी को नयी पहचान देने वाली गायिका आखिरकार अपने प्रशंसकों को निराश छोड़ परलोक चली गयीं. इधर, काफी दिनों से बीमार रहने की वजह से कई बार उनके निधन की अफवाह भी सामने आयी, लेकिन लाखों-करोड़ों लोगों की दुआ के बीच वो अस्पताल में मौत से जंग लड़ती रहीं, लेकिन अंततः वो जिंदगी की जंग हार गयीं और संगीत के एक युग का अंत हो गया.उनके निधन की खबर सुनते ही उनके पैतृक गांव हुलास में मातमी सन्नाटा छा गया. अब भी लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि सब की चहेती और गांव में दीदी के नाम से प्रसिद्ध शारदा सिन्हा अब उनके बीच नहीं रहीं. ग्रामीण उर्मिला देवी, रेणु देवी, रेखा देवी, स्नेहलता कुमारी, शिवानी ठाकुर, किरण देवी, लवली देवी, कविता देवी, याचना कुमारी, विजय ठाकुर, शंभु ठाकुर, बसन्त ठाकर, अरुण ठाकुर, राधा ठाकुर, राघवेंद्र ठाकुर, अशोक ठाकुर, शिवशंकर ठाकुर, नरेन्द्र ठाकुर आदि लोगों ने बताया कि बीमार रहने के बावजूद इसी साल मार्च में वो हुलास आयी थीं. अपने हर जानने वालों को फोन कर बुलाया और उनसे मुलाकात कीं. उनकी सादगी ही उनकी सबसे बड़ी पहचान थी. इतने बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद भी उन्हें कभी इस बात का घमंड नहीं रहा. पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे बड़े पुरस्कार मिलने के बाद भी उसी सादगी के साथ अपने परिजनों और ग्रामीणों से मिलती थीं, जैसे वो कोई साधारण व्यक्तित्व हों. यही सादगी उन्हें असाधारण बनाती थी.

अंतिम संस्कार में भाग लेने पटना के लिए रवाना हुए भाई-भाभी

शारदा दीदी के निधन के बाद उनके पैतृक गांव हुलास में शोक है. उनके छोटे भाई डॉ पद्मनाभ शर्मा ने बताया कि वे लोग पटना गये हुए थे. लौटने के क्रम में करीब 10 बजे जानकारी मिली कि उनकी बहन शारदा सिन्हा का देहावसान हो गया है. अधिक रात होने की वजह से वह लोग रात में नहीं जा सके. बुधवार की सुबह वह लोग पटना के लिए निकलेंगे. उनकी छोटी भाभी व डॉ पद्मनाभ शर्मा की पत्नी सुमन शर्मा ने बताया कि दीदी की आखिरी इच्छा थी कि जहां उनके पति का अंतिम संस्कार किया गया था, वहीं उनका भी अंतिम संस्कार हो. इसी कारण उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली से पटना लाया जा रहा है, जहां अंतिम संस्कार किया जाएगा. अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए वे लोग भी पटना के लिए निकल रहे हैं. उन्होंने बताया कि अंतिम बार दीदी 31 मार्च को उनके लड़के की शादी में हुलास आयी थीं, जहां से वह अगले दिन ही पटना के लिए निकल गयी. पटना निकलने से पहले उन्होंने कहा था कि जल्द ही फिर यहां आकर कुछ दिन रुकेंगी. पर, किसको पता था कि मंगलवार की रात उनकी आखिरी रात होगी.

शिक्षकों व बच्चों ने दी श्रद्धांजलि

लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन पर बुधवार को उच्च माध्यमिक विद्यालय सुपौल (विलियम्स) परिसर में विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य मानिक चंद यादव की अध्यक्षता में शोक सभा का आयोजन किया गया. शोकसभा में मौजूद विद्यालय के सभी शिक्षकों ने दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. प्रभारी प्राचार्य मानिक चंद यादव ने बताया कि स्व सुखदेव ठाकुर की पुत्री शारदा सिन्हा अपने लोकगीत के लिए देश-विदेश में जानी जाती थीं. स्व ठाकुर वर्ष 1963 से 1965 तक इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पद पर रहे. इसी दौरान शारदा सिन्हा व उनके दो भाईयों का भी पठन-पाठन इसी विद्यालय में हुआ था. शारदा सिन्हा का इस विद्यालय से गहरा लगाव रहा है. इसी विद्यालय के तत्कालीन संगीत शिक्षक रघु झा के सानिध्य में ही शारदा सिन्हा ने संगीत में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की. यही कारण था कि जब कभी भी शारदा सिन्हा सुपौल आती थीं, तो विलियम्स स्कूल के बारे में जानकारी जरूर लेती थीं. कई बार इस विद्यालय में उनका आना भी होता था.

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