सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसल बर्बाद
– बाढ पीड़ितों को जीवन यापन की सताने लगी चिंता
सुपौल. जिले में हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है. बाढ़ की चपेट में आने से हजारों घर नदी में समा गये. तटबंध के भीतर हजारों एकड़ में लगी धान की फसल नष्ट हो गयी है. जिस कारण किसानों को जीवनयापन की चिंता सताने लगी है. किसानों ने बताया कि जिस जगह पर उनलोगों का घर था वहां नदी की तेज धारा प्रवाहित हो रही है. अब वे लोग दूसरे ऊंचे स्थान पर घर तो बना लेंगे, लेकिन साल भर भोजन की समस्या उनलोगों के समक्ष रहेगी. प्रशासन बाढ़ राहत व फसल क्षति का जितना मुआवजा देगी. उससे उनलोगों का घर परिवार मुश्किल हो जाता है.
बाढ़ के पानी में उनकी गृहस्थी, उनके सपने और उनकी उम्मीदें बह गयी. अब जब पानी धीरे-धीरे उतरने लगा है, तो उन परिवारों के सामने एक बड़ी चुनौती जिंदगी को फिर से शुरू करने की है. गांव की सड़कों पर चारों ओर मलबे और टूटे हुए घरों के अवशेष दिखाई देते हैं. लोग अपने बर्बाद हो चुके घरों के बीच खड़े होकर आसमान की ओर ताकते हैं. प्रलयकारी बाढ़ में सब कुछ गंवा चुकी बुधनी देवी ने रुधे गले से कहा कि सब कुछ चला गया. अब बस सोच रही हूं कि बच्चों को कैसे पालूंगी. दुख सिर्फ मकान या सामान का नहीं है, बल्कि उन भावनाओं का है जो इन दीवारों में बसती थी. लोग न केवल अपने घरों को फिर से बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, बल्कि अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश में जुटे हैं. बच्चों की पढ़ाई, खेती-बाड़ी, रोजी-रोटी सब कुछ बर्बाद हो चुका है. किसानी से अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले किसान दिनेश ने बताया कि खेती ही एकमात्र सहारा थी. अब न जाने कैसे आगे बढ़ेंगे. फसल तो बर्बाद हो ही चुका है. साथ ही खेतिहर जमीन होकर अब नदी का प्रवाह हो रहा है. वहीं कुछ खेतों में बालू का ढेर जमा हो चुका है. जहां किसी प्रकार की फसल लगाना मुश्किल है. बताया कि बैंक से लोन लिया था, उसे चुकाने की चिंता अलग से है. कोसी मइया के शांत होने के बाद लोगों की आंखों में उम्मीद की एक छोटी सी किरण दिख रही है. वे जानते हैं कि जिंदगी कठिन है, लेकिन उसे जीने का जज्बा और संघर्ष की ताकत उनसे कोई नहीं छीन सकता.
पूर्वी कोसी तटबंध व एनएच बना बाढ़ पीड़ितों का शरण स्थली
खुले में शौच करने को मजबूर हैं बाढ़ पीड़ित
बाढ़ पीड़ितों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है. सैकड़ों लोग अपने घरों से बेघर हो गए हैं. जहां तहां रहने को मजबूर हैं. जहां बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है. जिससे पीड़ित लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है शौचालय की अनुपलब्धता है. वहीं पीने का पानी की भी समस्या लोगों के समक्ष है. हालांकि पानी घटने बाद पानी में डूबे चापाकल अब दिखने लगा है. लेकिन चापाकल से साफ पानी नहीं आ रहा है. बाढ़ प्रभावित इलाकों में शौचालयों के नष्ट हो जाने या गंदे पानी में डूबने के कारण लोग मजबूरी में खुले में शौच करने पर मजबूर हैं. इससे न केवल स्वच्छता की समस्या उत्पन्न हो रही है, बल्कि गंभीर स्वास्थ्य संकट का भी खतरा बढ़ रहा है. खुले में शौच करने से क्षेत्र में बीमारियों के फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. बाढ़ के कारण पहले से ही पानी दूषित हो चुका है. ऐसे में खुले में शौच करने से जलजनित रोगों का खतरा और बढ़ जाता है. हैजा, दस्त, और टाइफाइड जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बना हुआ है. पीड़ित परिवारों का कहना है कि उन्हें न तो साफ पानी मिल रहा है और न ही शौचालय की सुविधा, जिससे स्थिति और गंभीर होती जा रही है.
पीड़ितों के बीच राहत सामग्री का हो रहा वितरण
जिला प्रशासन की ओर से पीड़ित परिवार का सूची तैयार किया गया है. सूची के आधार पर पीड़ित परिवारों के बीच राहत सामग्री का वितरण किया जा रहा है. लेकिन पीड़ित परिवारों का कहना है कि उनलोगों को गृह क्षति का मुआवजा जल्दी मिल जाता तो, अपना आशियाना खड़ा करने में सहूलियत होती. बाढ़ में कई सड़कें हो गयी ध्वस्ततटबंध के भीतर कई कच्ची व पक्की सड़कें ध्वस्त हो गयी है. जहां अब भी नदी की धारा बह रही है. एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. पानी घटने के कारण उक्त स्थल पर नाव का भी परिचालन नहीं हो रहा है. जिस कारण लोग कीचड़युक्त पानी होकर आवागमन करने को विवश हैं.
बाढ़ पीड़ितों का कैंप लगाकर बनायी जा रही सूची
बाढ़ आपदा कार्यालय से मिली जानकारी अनुसार स्थलीय निरीक्षण व स्थानीय जनप्रतिनिधि की मदद से बाढ़ पीड़ितों की सूची तैयार की जा रही है. जिन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली हर प्रकार की सुविधा मुहैया करायी जायेगी.
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