जदिया. क्रीड़ा मैदान कोरियापट्टी में आयोजित दो दिवसीय सत्संग समारोह के दौरान प्रवचनकर्ता पलटू दास ने प्रभु श्री राम एवं केवट राज गुह की कथा विस्तार से सुनाया. कहा कि भगवान श्रीराम को जब वनवास हुआ तो वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे. जो अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर है. इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयाग राज से 22 किलोमीटर दूर श्रृंगवेर पहुंचे जो निषाद राज गुह का राज्य था. यहीं पर गंगा तट पर उन्होंने केवट को गंगा पार कराने को कहा. केवट ने पहले उन्हें नीचे से ऊपर तक देखा और समझ गए ये तो प्रभु श्री राम है. श्रीराम केवट से कहते हैं मुझे उस पार जाना है नाव लाओ. इस पर केवट कहने लगा तुम्हारा मर्म में जान लिया. तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते है वह मनुष्य बना देने वाली जड़ी है. जिसके स्पर्श से पत्थर की शिला सुंदर स्त्री बन जाती है. काठ का नाव पत्थर से कठोर तो नहीं होता. मेरी नाव भी स्त्री बन जाएगी. हे प्रभु यदि तुम अवश्य ही पार जाना चाहते हो तो मुझे पहले चरण कमल पखारने के लिए कह दो. हे नाथ में चरण कमल धोकर आपलोगों को नाव पर चढ़ा लूंगा. मैं आपके कोई उतराई नहीं चाहता. मुझे आपके दुहाई और दशरथ जी की सौगंध है. लक्ष्मण भैया भले ही मुझे तीर मारे पर जब तक में पेरो को पखार न लूंगा तब तक हे कृपालु में पार नहीं उतारूंगा. केवट के प्रेम में लपेटे बातों को सुनकर श्रीराम जी जानकी और लक्ष्मण की और देखकर मुस्कुराते हुए कहा कि तू वही कर जिससे तेरी नाव न जाये. जल्दी पानी ला और पैर धो ले देर हो रही है. पार उतार दे. केवट श्री राम की आज्ञा पाकर प्रभु श्रीराम के चरण धोये और फिर उन्हें अपनी नाव में सीता लक्ष्मण सहित बैठाया. चरणों को धोकर सारे परिवार सहित स्वयं उस जल को पीकर अपने पितरों को भाव सागर से पार कर फिर आनंद पूर्वक प्रभु श्रीराम को गंगा पार ले गए. कार्यक्रम शुभारंभ गुरु वंदना से हुई.
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