बिहार में जाति गणना पर रोक लगाने वाली याचिका पर आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गयी. सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. वहीं अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त को की जाएगी. याचिकाकर्ता ने पटना हाइकोर्ट से जाति गणना पर लगी रोक को हटाने वाले फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
बता दें कि बिहार में जाति गणना पर रोक लगा दी गयी थी. जिसपर पटना हाइकोर्ट ने बीते 1 अगस्त को फैसला सुनाया और उस रोक को हटा लिया. राज्य सरकार को राहत मिली और इस आदेश के तुरंत बाद सर्वे का काम शुरू कर दिया गया. हाईकोर्ट ने जाति आधारित गणना के खिलाफ आए तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया है. वहीं राज्य सरकार ने सभी जिलों को आदेश दे दिया कि सर्वे का स्थगित काम फौरन शुरू किया जाए. जिसके बाद युद्धस्तर पर काम शुरू कर दिए गए.
वहीं पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. हालांकि बिहार सरकार को ये आशंका थी कि पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है इसलिए बिहार सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दिया था. सरकार ने ये कदम विशेष अनुमति याचिका दाखिल होने की संभावना को देखते हुए उठाया था.
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बिहार सरकार की ओर से जो कैविएट दाखिल किया गया था उसमें अदालत से आग्रह किया गया था कि सरकार का पक्ष सुने बिना इस मामले में कोई आदेश नहीं दिया जाए. बिहार सरकार की ओर से मनीष सिंह इस मामले में पक्ष रख रहे हैं. वहीं पटना हाईकोर्ट से आए फैसले के विरोध में नालंदा के अखिलेश कुमार सिंह एवं अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. जिसपर सुनवाई आज हुई है और सुप्रीम कोर्ट ने अगली तारीख इस मामले की सुनवाई के लिए दी है.
गौरतलब है कि बिहार में जाति आधारित गणना राज्य सरकार अपने खर्च पर करवा रही है. केंद्र सरकार ने जाति गणना पर साफ इनकार कर दिया था. वहीं बिहार में भाजपा का कहना है कि वो जाति गणना के खिलाफ नहीं रही. बता दें कि 27 फरवरी 2020 को जाति गणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा में पारित किया गया था. 23 अगस्त 2021 को फिर नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव व भाजपा समेत 11 दलों के नेता पीएम मोदी से मुलाकात किए थे और जाति गणना कराने की मांग की थी.
1 जून को जाति गणना के लिए सर्वदलीय बैठक कराई गयी थी. 2 जून को नीतीश कैबिनेट ने फैसला लेकर 500 करोड़ का फंड इसके लिए दिया था. वहीं 7 जनवरी 2023 को जाति गणना के पहले चरण का काम शुरू हो गया. 4 मई 2023 को पटना हाईकोर्ट ने इसपर अंतरिम रोक लगा दी थी और 3 जुलाई को विस्तार से सुनवाई का निर्देश दिया था. 5 मई को सरकार ने इंटरलोकेट्री आवेदन दायर किया और यह 9 मई को खारिज हो गया. 11 मई को बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट मूव कर गयी और एसएलपी दायर किया. जहां 18 मई 2023 को कोर्ट का आदेश बदलने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया था. बीते 3 जुलाई को पटना हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई थी और 7 जुलाई को सुनवाई पूरी हुई थी. अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
बताते चलें कि पटना हाईकोर्ट ने हाल में जो फैसला सुनाया है वो 101 पन्नों का है. जिसमें सरकार के पक्ष में कुछ मजबूत बातें भी कही गयी हैं. फैसले में जज ने लिखा कि राज्य सरकार को यह सर्वे कराने का पूरा अधिकार है. यह काम वह कानून के दायरे में और अपने अधिकार के तहत करा रही है. वहीं निजता के हनन के विषय पर लिखा गया कि इससे किसी के निजता का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है. सरकार राज्य की जनता के हित में ही यह करा रही है. जनता की आर्थिक स्थिति के अनुसार सुविधा उपलब्ध करा सके, ये इसलिए सरकार करा रही है. वहीं डाटा संग्रहित रखने और उजागर नहीं करने का भी निर्देश दिया है.
इधर, जाति गणना को लेकर बिहार में सियासी घमासान मचा है. महागठबंधन का आरोप है कि भाजपा जाति गणना नहीं होने देना चाहती है. जानबूझकर सर्वे के काम में अडंगा लगाया जा रहा है. जबकि भाजपा का कहना है कि सर्वदलीय बैठक में वो भी शामिल रहे और जब ये तय हुआ तब वो सरकार में ही थे.