बिहार में जातीय जनगणना पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट तैयार, जानिए कौन सा दिन हुआ तय और क्या है पूरा मामला..
बिहार में जातीय आधारित गणना से जुड़ी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी. सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. अब शुक्रवार को इससे जुड़े याचिका की सुनवाई होगी. जानिए किसने दायर की याचिका और क्या है पूरा मामला..
Caste Based Census In Bihar: बिहार में जातीय जनगणना से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हामी भर दी है. अब इस मामले की सुनवाई हो सकेगी. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार यानी 13 जनवरी का दिन इस मामले की सुनवाई के लिए तय किया है.
संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया
बता दें कि बिहार सरकार प्रदेश में जाति आधारित गणना करवा रही है. इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. पहले चरण का काम शुरू हो चुका है. वहीं राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की गयी थी. इस याचिका में जातीय गणना को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया गया है.
भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताया..
सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की गयी है उसमें याचिकाकर्ता नालंदा निवासी अखिलेश कुमार हैं. जिन्होंने इस याचिका में आरोप लगाया है कि जाति आधारित गणना संबंधी अधिसूचना भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है. अखिलेश कुमार ने अपने अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा के जरिये जनहित याचिका को दायर किया है.
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दायर याचिका में ये आग्रह..
बिहार में जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिका में ये आग्रह किया गया है कि जारी अधिसूचना को रद्द किया जाए और इस काम में लगाए गये अधिकारियों को फौरन इस काम के लिए आगे बढ़ने से रोका जाए. आरोप लगाया गया है कि छह जून, 2022 को जारी अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है.
जातीय जनगणना को असंवैधानिक बताया
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की गयी है उस याचिका में ये भी आरोप लगाया गया है कि यह अधिसूचना गैर कानूनी, मनमानी, अतार्किक और असंवैधानिक है. संविधान में विधि के समक्ष समानता और कानून के समान सरंक्षण का हवाला देते हुए अनुच्छेद 14 के उल्लंघन का दावा किया गया है.
नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने जिक्र किया..
याचिका दायर करने वाले नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने अपनी याचिका में कहा हैकि अगर जाति आधारित सर्वेक्षण का घोषित उद्देश्य उत्पीड़न की शिकार जातियों को समायोजित करना है, तो देश व जाति आधारित भेद करना तर्कहीन व अनुचित है. इनमें से कोई भी भेद कानून में प्रकट किये गये उद्देश्य के अनुरूप नहीं है.
Published By: Thakur Shaktilochan