बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्य सभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि शिक्षक अभ्यर्थियों को फिर एक बार ठगा जा रहा है. 2019 में टीइटी और एसटीइटी उत्तीर्ण छात्रों को एक और परीक्षा देनी पड़ेगी. नियोजित शिक्षकों को सरकारी कर्मी बनने के लिए भी पुनः परीक्षा देनी पड़ेगी. अब हर विद्यालय में पुराने वेतनमान, नियोजित शिक्षक और नयी नियमावली के तहत बहाल सरकारी शिक्षक यानि कुल तीन प्रकार के शिक्षक होंगे. इतना भद्दा मजाक शिक्षक अभ्यर्थियों के साथ कृपया मत कीजिए.
बता दें कि सोमवार को राज्य कैबिनेट की हुई बैठक में शिक्षक नियुक्ति नियमावली को मंजूरी मिल गयी. इसके तहत प्रदेश में प्राथमिक से लेकर हायर सेकेंडरी तक के स्कूलों में शिक्षक का पद अब ‘विद्यालय अध्यापक’ कहा जायेगा. इस पद पर नियुक्ति के लिए नियमावली को हरी झंडी मिल गयी है. इस पद पर सीधी भर्ती लिखित परीक्षा के आधार पर राज्य सरकार द्वारा अधिकृत आयोग के जरिये होगी. अब बिहार में संविदा पर शिक्षक नियुक्ति न हो कर राज्य सरकार के कर्मचारी (स्थायी कर्मचारी ) के रूप उनकी नियुक्ति होगी. कोई भी अभ्यर्थी इस पद के लिए तीन बार परीक्षा दे सकेगा.
इससे पहले सुशील मोदी ने राज्य में इसी 15 अप्रैल से शुरू होने वाली जातीय गणना पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए अपील की है कि राज्य सरकार इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने का भरोसा दिलाये. उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना कराने का निर्णय भाजपा की साझेदारी वाली एनडीए सरकार का था, लेकिन इसे लागू करने में देरी हुई. अब लोगों को इसमें सहयोग करना चाहिए.
मोदी ने कहा कि इससे पहले सरकार ने नगर निकाय चुनाव में ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए आनन-फानन में अति पिछड़ा वर्ग आयोग बना कर रिपोर्ट मांग ली थी, लेकिन वह रिपोर्ट निकाय चुनाव बीतने के बाद भी सार्वजनिक नहीं की गयी. जब ऐसी रिपोर्ट कोई गोपनीय दस्तावेज नहीं, तब अति पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को जारी क्यों नहीं किया गया? उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना की रिपोर्ट का भी हस्र ऐसा न हो, इसके लिए सरकार को स्पष्ट घोषणा करनी चाहिए.
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मोदी ने कहा कि कर्नाटक में भी जातीय जनगणना करायी गयी थी, लेकिन किसी सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया. 2011 में केंद्र सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जनगणना करायी थी. उसकी रिपोर्ट में इतनी त्रुटियां और विसंगतियां पायी गयी कि उसे सार्वजनिक नहीं किया गया.