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बिहार विधानमंडल के समक्ष 11 जुलाई को लाखों शिक्षक करेंगे प्रदर्शन, माध्यमिक शिक्षक संघ का ऐलान

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने कहा कि बिहार सरकार जबतक राज्यकर्मी का दर्जा नहीं देगी, शिक्षक तबतक आंदोलन करेंगे. संघ ने इसको लेकर 11 जुलाई को विधानमंडल घेराव की घोषणा कर दी है.

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने विधानमंडल घेराव की घोषणा कर दी है. रविवार को संघ कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए अध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह एवं महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने इस प्रदर्शन में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ, बिहार नगर पंचायत प्रारंभिक शिक्षक संघ एवं परिवर्तनकारी शिक्षक संघों के अतिरिक्त अन्य संगठनों के भी हजारों-हजार की संख्या में भाग लेने शिक्षक 11 जुलाई को 11 बजे पटना पहुंचेंगे.

शांतिपूर्ण और अहिंसक होगा प्रदर्शन 

यह प्रदर्शन पूर्णतः शांतिपूर्ण और अहिंसक होगा. जब तक राज्यकर्मी के दर्जा की घोषणा विधानमंडल के इसी सत्र में सरकार नहीं करेगी, तब तक विधानमंडल के सदस्यों के आवास पर उस क्षेत्र के शिक्षक डेरा डालेंगे और उन पर राज्यकर्मी का दर्जा देने पर जोर डालने की आवाज को सदन के अंदर उठाने के लिए नैतिक दबाव डालेंगे.

विधानमंडल के सदस्य मुख्यमंत्री को भेज रहे समर्थन पत्र 

विधानमंडल के 100 से भी ज्यादा सदस्यों ने बिना शर्त राज्यकर्मी का दर्जा देने का लिखित समर्थन किया है और मुख्यमंत्री को भी समर्थन पत्र भेजे जा रहे हैं. इसके साथ ही साथ पंचायत स्तर से लेकर स्थानीय निकाय एवं सांसदों ने भी पूर्व से कार्यरत शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग का समर्थन किया है.

भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन

अध्यापक नियमावली- 2023 की कंडिका-8 में पूर्व से कार्यरत पंचायत एवं नगर निकाय द्वारा नियुक्त शिक्षकों को भी आयोग द्वारा विज्ञापित पदों पर नयी नियुक्ति के लिए परीक्षा में बैठने की बाध्यता निर्धारित की गयी है. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि एक ही प्रकार के विद्यालय में एक ही तरह के पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले तीन-तीन वर्गों के शिक्षक बहाल किये जायेंगे. यह नियमावली शिक्षकों के बीच भेदभाव करती है.

1.80 लाख पद हुए थे स्वीकृत, लेकिन विज्ञापन 1.70 लाख का ही

शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा कि शिक्षा विभाग ने प्रशासी पदवर्ग के द्वारा मात्र 1.80 लाख पदों की स्वीकृति प्राप्त की है, लेकिन विज्ञापन में एक लाख सत्तर हजार ही रिक्तियों को भरने के लिए आवेदन आमंत्रित किये गये है और पूर्व से कार्यरत चार लाख से अधिक शिक्षकों को भी उन्हीं रिक्तियों के विरुद्ध राज्यकर्मी के दर्जा प्राप्त करने के लिए आयोग की परीक्षा में उत्तीर्णता की शर्त रखी गयी है, जो नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है. अधिकतम 20 वर्षों एवं 16 और 17 वर्षों तक के भी नियुक्त शिक्षकों को फिर से नयी नियुक्ति का अपमानजनक, अन्यायपूर्ण आदेश देना संविधान विरोधी एवं अराजकतापूर्ण है. यह नियमावली बेरोजगारी बढ़ाने वाली है.

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