छपरा. शहरी क्षेत्र में एयर क्वालिटी 159 तक चला गया है. वहीं ग्रामीण क्षेत्र में गुणवत्ता अभी संतोषजनक स्थिति में है. 200 तक एक्यूआइ सामान्य श्रेणी में है. हालांकि गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों व नवजात बच्चों के लिये हवा की यह क्वालिटी संवेदनशील श्रेणी में आती है. ऐसे में हवा की शुद्धता नहीं होने से वातावरण में ऑक्सीजन की भी कमी होने की आशंका बनी हुई है.
विदित हो कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में मरीजों के ऑक्सीजन लेवल में आयी कमी से हर कोई चिंतित व परेशान नजर आया था. सरकार भी ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित कराने को लेकर लगातार प्रयास कर रही है. लेकिन प्रकृति में मौजूद प्राणवायु में लगातार हो रही कमी तथा आसपास के पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने को लेकर स्थानीय स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है.
शहर में बढ़ी संख्या में कमर्शियल भवनों का निर्माण हो रहा है. जिससे इलाके के पेड़ पौधों को काटना पड़ रहा है. वहीं पेड़ो के कटने का सिलसिला तो जारी है लेकिन शहर की खत्म होती ग्रीनरी को बढ़ाने का प्रयास भी अधूरा है. रिहायशी इलाकों में ताजी हवा मिलना मुश्किल हो रहा है. अमृत योजना के तहत शहर के प्रमुख जगहों पर ग्रीन पार्क व ग्रीन जोन निर्माण का कार्य भी अधूरा पड़ा है. ऐसे में लोगों को शुद्ध हवा व स्वस्थ्य वातावरण के लिये भी रोजाना संघर्ष करना पड़ रहा है.
जिले में अधिकतर वाहन पर्यावरण मानकों जैसे बीएस-6 के अनुकूल नहीं हैं. जिससे पूरे शहर की हवा प्रदूषित हो रही है. आंखों में जलन, अधिकतर समय बाहर रहने पर सर्दी जुकाम जैसी समस्या, सांस लेने में तकलीफ आदि कई बीमारियां अपेक्षाकृत बढ़ रही हैं. शहर में बढ़ रहे इस प्रदूषण से बच्चों व वृद्धों को अधिक खतरा है. वायु गुणवत्ता सूचकांक की अगर बात करें तो यह अस्वास्थ्यकर श्रेणी में आयेगा. जो संवेदनशील लोगों के लिए हानिकारक है.
छपरा जैसे शहर में यह आवश्यक है कि अलग-अलग चौक चौराहों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक का बोर्ड लगाया जाये. साथ ही उनका समय-समय पर मूल्यांकन भी हो. उसे लोगों के समक्ष रखा जाये ताकि लोग इसके कुप्रभाव को समझ सकें. विभिन्न प्रकार के स्लोगन के माध्यम से नागरिकों को इस तरह की पर्यावरणीय समस्या के बारे में अवगत और जागरूक कराना आवश्यक है.
शहर में बढ़ते प्रदूषण से रोकथाम के लिए अमृत योजना के तहत ग्रीन पार्क का निर्माण हुआ है. जिला स्कूल कैंपस के पीछे 76 लाख की लागत बने रहे इस पार्क में सैकड़ो की संख्या में हरे-भरे पेड़ पौधे लगाने तथा सुन्दर व आकर्षक फूल लगाकर इसे स्मार्ट पार्क के रूप में विकसित किये जाने का कार्य 2018 में ही पूरा कर लेना था. हालांकि अभी तक यह कार्य पूरा नहीं हो सका है. दो वर्ष पूर्व बालू मिलने में हो रही परेशानी की बात कह कर कार्य को रोक दिया गया था. जिसके बाद से ही यहां निर्माण कार्य पेंडिंग पड़ा है.
वैसे शहर जिन्हें स्मार्ट सिटी का दर्जा नही मिल सका है वहां अमृत योजना के तहत ग्रीन जोन का निर्माण किया जाना है. जिससे शहर की हरियाली बरकारा रह सके साथ ही शहर की प्राकृतिक सौन्दर्यता भी बनी रहे. इस पार्क में वैसे फूल-पौधे भी लगाये जाने हैं जो प्रदूषण नियंत्रण में सहायक हों. पार्क में टाइल्स लगाने और ट्री जोन बनाने का कार्य तो हो चुका है लेकिन पेड़-पौधे व अन्य व्यवस्थाओं के उपलब्ध नही होने के कारण इस कैम्पस में ताला लटका रहता है.
शहर के रिहायशी बाजारों व मुहल्लों में कचरे के ढेर में आग लगा देना आम बात हो गयी है. आग फैलने से धुंआ फैलता है. जिससे भौतिक पर्यावरण ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य को भी काफी नुकसान होता है. कचरा में प्लास्टिक समेत अन्य कई हानिकारक पदार्थ शामिल रहते हैं. जिनके जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बनमोनोऑक्साइड ,नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे जहरीले गैस निकलते हैं.
जो वायु को प्रदूषित करते हैं. वहीं बाजारों व मुहल्लों में कचरा जलाने से दुर्घटनाओं की आशंका भी बनी रहती है. कचड़े से उठता धुंआ शहर की आबोहवा में घुल कर लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है. लोगों में सांस से सम्बंधित बीमारियां हो रहा हैं.
मानकों के अनुसार 0 से 50 अच्छी, 51 से 100 संतोषजनक, 101 से 200 सामान्य (संवेदनशील लोगों के लिए अस्वास्थ्यकर) 201 से 300 खराब, 301 से 400 बहुत खराब तथा 401 से 500 गंभीर श्रेणी में आता है. हालांकि अभी जिले में औसत गुणवत्ता का सूचकांक 100 की श्रेणी में है. पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वायु गुणवत्ता सूचकांक को प्रारंभ किया गया था.
यह सामान्य जन को उनके आसपास के क्षेत्र की वायु की गुणवत्ता के बारे में बताता है. इसे ‘एक नंबर- एक रंग -एक व्याख्या’ के नाम से भी जाना जाता है. जिसमें छह अलग-अलग रंगों से वायु प्रदूषण के स्तर को बताया जाता है. इसमें पीएम 2.5 , पीएम 10, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सीसा जैसे आठ प्रदूषकों को शामिल कर वायु की गुणवत्ता परखी जाती है.
शहर के गांधी चौक, भिखारी राय चौक, नगरपालिका चौक, बस स्टैंड, गुदरी बाजार जैसे क्षेत्रों में निर्माण कार्य चल रहा है. वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर चल रहे वाहनों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. वहीं वनक्षेत्र की बात करें तो सारण में करीब 40 प्रतिशत इलाके वन क्षेत्र है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकतर इलाकों में अभी भी कृषि योग्य भूमि मौजूद है.
विगत 10 सालों में 20 से 30 फीसदी वन क्षेत्र व खेती वाले भूमि पर निर्माण होने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ा जरूर है. ऐसे में जिस प्रकार पेड़ों की कटाई हो रही है. यदि उसी अनुपात में पौधों को लगाकर उसका संरक्षण नहीं किया गया तो आने वाले समय में प्राकृति में एक बड़ा असंतुलन देखने को मिलेगा.
वायु प्रदूषण के कारण स्वांस रोगियों की संख्या बढ़ रही है. छपरा सदर अस्पताल से मिले आंकड़ों के मुताबिक बीते छह माह में 200 ज्यादा ऐसे मरीज आये हैं जो स्वांस रोग से ग्रसित थें. इसमें से बच्चों की संख्या अधिक थी. सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ रामइकबाल प्रसाद ने बताया कि जिस प्रकार शहरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण का ग्राफ बढ़ा है उससे 40 वर्ष के उम्र के प्रायः सभी लोगों को स्वांस रोग की थोड़ी बहुत समस्या शुरू हो सकती है.
15 साल से कम के बच्चों में ब्रोंकाइटिस तथा स्नोफीलिया जैसी बीमारी का खतरा बना हुआ है वहीं जन्मजात बच्चों में निमोनिया तथा फेंफड़ो के संक्रमण की परेशानी बढ़ रही है.
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आंखों में जलन व ड्राइनेस की समस्या
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धूल व धुंआ के कारण नेत्र रोग की भी समस्या बढ़ी है.
ज्यादातर आई डिजिट वायु प्रदूषण के कारण ही हो रहे हैं. पेट्रोल के धुएं और सड़कों पर उड़ने वाली धूल सीधे लोगों के आंखो में प्रवेश करती है. लगातार धूल पड़ने के कारण आंखो की उपरी परत में ड्राइनेस आ जाता है और आंखो में जलन तथा आंख में खुजली आदि की समस्या बढ़ने लगती है. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है.
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– शहर में कुल वार्ड- 45
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– शहर की आबादी- 3 लाख
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– धूल व धुंआ से प्रभावित मुहल्ले- 23
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– ग्रीन जोन- 00
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– ग्रीन पार्क- 01 (निर्माणाधीन)
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– एयर क्वालिटी- 159
नगर आयुक्त संजय कुमार उपाध्याय कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में बढ़ रहे प्रदूषण के ग्राफ को कम करने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं. पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिये अमृत योजना के तहत ग्रीन जोन का निर्माण हो रहा है. शहर से बाहर डंपिंग जोन बनाया गया है. प्रमुख चौक-चौराहों पर ग्रीन जोन का निर्माण जल्द शुरू होगा. कचरा जलाने वालों पर कार्रवाई होगी.
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ रामइकबाल प्रसाद ने कहा कि वायु प्रदूषण से गंभीर बीमारियों का खतरा बना हुआ है. पिछले कुछ वर्षों में स्वांस रोग से पीड़ितों की संख्या बढ़ी है. बच्चों में भी इसका असर देखने को मिल रहा है. वायु प्रदूषण आंखों को भी प्रभावित करता है. आंखो में सीधे प्रवेश कर रहा धुंआ और धूल उपरी परत को ड्राई कर देता है. जिसके आंख की रौशनी पर असर पड़ता है.
Posted by Ashish Jha