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आमदनी से बहुत अधिक स्पीड में बढ़ रही है खेती की लागत, किसानों की आय कैसे हो दोगुनी

पीएम मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का जो वादा किया था उसको पूरा करने के लिए एक साल ही बचा है़ बिहार सरकार के अथक प्रयास से किसानों की आमदनी बढ़ रही है, लेकिन लागत उससे भी अधिक रफ्तार में बढ़ी है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 12, 2021 8:39 AM

अनुज शर्मा, पटना. पीएम मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का जो वादा किया था उसको पूरा करने के लिए एक साल ही बचा है़ बिहार सरकार के अथक प्रयास से किसानों की आमदनी बढ़ रही है, लेकिन लागत उससे भी अधिक रफ्तार में बढ़ी है. स्थिति यह है कि किसान की औसत पारिवारिक आय से खर्च अधिक है. बिहार सबसे कम सालाना कृषक आय वाला प्रदेश है.

यहां किसान की सालाना आय 45,317 रुपये है. लागत और मुनाफा में अनुपातिक अंतर न रहने से ऐसा हो रहा है. बिहार के किसान देश के अन्य राज्यों के किसानों की तुलना में सबसे गरीब हैं. केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत के किसान परिवारों की औसत आय 6426 रुपये प्रतिमाह है. वहीं , बिहार के किसान परिवारों की औसत मासिक आय सबसे कम सिर्फ 3558 रुपये है, इसके विपरीत खर्च 5485 रुपये मासिक है.

कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि किसानों की लागत को कम करने और आय को दोगुना करने के लिए सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है. किसानों को अधिक- से -अधिक लाभ पहुंचाया जा रहा है. सिंचाई के लिए अलग से फीडर, जैविक कॉरिडोर, बिना जुताई खेती की तकनीकी विकसित की गयी है़

जुताई पर 269 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ा

राज्य में एक साल में डीजल का रेट बढ़ने से एक जुताई का खर्चा ही 269 करोड़ रुपये अतिरिक्त बढ़ गया है़ राज्य में कुल बुआई क्षेत्र 75.25 लाख हेक्टेयर है़ एक हेक्टेयर में एक जुताई पर औसतन करीब बीस लीटर खर्च आता है. 12 जुलाई,2020 को पटना में डीजल की कीमत 77.82 रुपये प्रति लीटर थी़ 11 अगस्त, 2021 को यह कीमत 95.57 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गयी है.

राज्य के कुल आच्छादित खेत की एक जुताई पर ही करीब 15 करोड़ लीटर डीजल खर्च हो जा रहा है़ यह एक साल में एक हेक्टेयर पर एक जुताई का खर्च ही 357. 60 रुपये महंगा हो गया है. सिंचाई का खर्च प्रति हेक्टेयर 25 लीटर डीजल और जोड़ लिया जाये, तो यह राशि करीब 600 करोड़ से ऊपर पहुंच जा रही है.

आमदनी सात हजार बढ़ी, लागत छह हजार

खेती में बढ़ती लागत किसानों की आय को कैसे खा रही है इसका उदाहरण नालंदा जिले के चंडी ब्लाॅक के गांव अनंतपुर निवासी संजय समझाते हैं. दो फसल लेने वाले संजय को तीन एकड़ 23 डिसमिल खेत है. सिंचाई का साधन बिजली से होने के कारण अब वह तीन फसल उगाते हैं. उनका कहना था कि एक साल में लागत डेढ़ गुना हो गयी है़

2020 में एक एकड़ धान पर दस हजार रुपये खर्च आया था़ इस बार 16 हजार लागत लग गयी़ मुनाफा 22 हजार से बढ़ कर मात्र 29 हजार ही हुआ़ जुताई हजार रुपये से बढ़ कर 1600 में हुई. मजदूर ने रोपनी 100 रुपये की जगह 160 रुपये में की़ पेस्टीसाइट कंपनी कुछ महीने के अंतराल पर ही कीमतें बढ़ा दे रही है. लगातार फसल होने से उपज अच्छा नहीं मिल पाता़ बाजार के रेट भी नहीं मिल पाते़

Posted by Ashish Jha

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