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शिशुआकोल में बकरा नदी का कटाव तेज, नदी में विलीन हो रही उपजाऊ भूमि

अररिया : कुर्साकांटा प्रखंड क्षेत्र से होकर बहने वाली बकरा नदी की विनाशलीला से परेशान शिशुआकोल, डहुआबाड़ी, तीरा, खुटहरा समेत दर्जनों गांव के लोग हर वर्ष बकरा नदी की कहर से दो चार होते रहे हैं. लेकिन जनता के नुमाइंदा बकरा नदी किनारे बसे नदी के कटान से पीड़ित परिवार की सुधि लेना भी शायद मुनासिब नहीं समझते.

By Prabhat Khabar News Desk | September 14, 2020 1:58 AM

अररिया : कुर्साकांटा प्रखंड क्षेत्र से होकर बहने वाली बकरा नदी की विनाशलीला से परेशान शिशुआकोल, डहुआबाड़ी, तीरा, खुटहरा समेत दर्जनों गांव के लोग हर वर्ष बकरा नदी की कहर से दो चार होते रहे हैं. लेकिन जनता के नुमाइंदा बकरा नदी किनारे बसे नदी के कटान से पीड़ित परिवार की सुधि लेना भी शायद मुनासिब नहीं समझते. बार-बार गुहार के बाद भी सुधि नहीं लेता देख शिशुआकोल के ग्रामीणों का सब्र टूट गया.

रविवार को ग्रामीण आक्रोशित होकर बकरा नदी के जट पर जमा होकर प्रदर्शन करने लगे. प्रदर्शनकारियों में शामिल ग्रामीण तिलकेश्वर पासवान ने बताया कि बकरा नदी जब मौजूदा कटाव स्थल से लगभग एक किलोमीटर दूर थी. तभी से परेशान ग्रामीण जनप्रतिनिधियों समेत आपदा प्रबंधन विभाग, जल संचयन विभाग व जिला पदाधिकारी पत्र के माध्यम से समाचार पत्रों के माध्यम से अवगत कराता रहा.

आलम यह है कि कटाव को लेकर कोई मुकम्मल उपाय तक नहीं किया जाना कटाव पीड़ित ग्रामीणों की सुध तक नहीं लिया गया. उन्होंने बताया कि बीते वर्ष 2019 में बरसात का मौसम आते ही जब बकरा की विनाशलीला ने सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन को जब नदी में समा गया. तब परेशान ग्रामीणों ने सबंधित पदाधिकारी को सूचित किया गया तब जाकर कटाव को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग अररिया द्वारा बैम्बू स्टेपिंग की गयी जो 2020 के कटान ने बैंबू स्टेपिंग को बहा ले गया.

उन्होंने बताया कि यदि समय रहते कटान का कोई मुकम्मल उपाय नहीं किया गया तो ना केवल सैकड़ों एकड़ उपजाउ भूमि नदी में विलीन हो जायेगा. वहीं दर्जनों परिवार घर से बेघर होने को मजबूर होंगे. वहीं वार्ड संख्या 12 के वार्ड सदस्य श्रीकुमार पासवान ने बताया कि नदी का कटान को लेकर बीडीओ व सीओ समेत अन्य वरीय पदाधिकारियों को अवगत कराया गया. लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही साबित हुआ.

ग्रामीणों का कहना कि बकरा नदी कटान से परेशान ग्रामीण अपनी वेदना कहे तो किससे सुने तो कौन. उन्होंने बताया कि जिस उपजाऊ जमीन से पैदावार हुये अनाज से परिवार के भोजन की व्यवस्था होती थी वहां आज बालू भरा है या नदी बहती है. जिसके कारण इस कोरोना काल में भी नदी किनारे बसे ग्रामीण मजदूर जान जोखिम में डालकर अन्य प्रदेश जा रहे हैं. ताकि परिजनों को दो वक्त की रोटी व बच्चों का पठन पाठन हो सके.

posted by ashish jha

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