कौशिक रंजन, पटना. बिहार प्रशासनिक सेवा (बिप्रसे) के कई पदाधिकारियों पर सेवाकाल के दौरान किसी- न- किसी आरोप को लेकर निलंबन या ट्रैप या अन्य तरह की कार्रवाई होती रहती है, परंतु शुरुआती स्तर पर निलंबन या ट्रैप या सेवा बाधित करने से संबंधित अन्य किसी तरह की कार्रवाई होने के बाद विभागीय सुनवाई या कार्रवाई सालों तक शुरू नहीं होती है.
नियमानुसार, किसी पदाधिकारी पर कोई आरोप लगने के बाद 180 दिनों में विभागीय कार्रवाई पूर्ण कर लेनी है. इसके बाद अगर वे दोषी पाये जाते हैं, तो उन पर उचित कार्रवाई की जाये या उन्हें दोष से मुक्त कर दिया जाये.
इस अवधि में उन्हें निलंबन भत्ता या वेतन के कटे हुए हिस्से का भुगतान होगा, परंतु ऐसा होता नहीं है. सालों से इनके मामले सुनवाई के इंतजार में लंबित पड़े रहते हैं.
वर्तमान में बिप्रसे के 109 पदाधिकारी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ अब तक विभागीय सुनवाई या कार्रवाई शुरू ही नहीं हुई है या सालों से चल रही है.
इनमें नौ पदाधिकारी ऐसे हैं, जिन्हें निलंबित हुए करीब एक साल होने को है, परंतु अब तक इनके खिलाफ विभागीय सुनवाई शुरू ही नहीं हुई है. इससे इनका निलंबन भत्ता बंद है.
गया के शेरघाटी के तत्कालीन डीसीएलआर को नौ साल पहले ट्रैप के एक मामले के बाद निलंबित कर दिया गया था. निलंबन अवधि के दौरान इनकी तैनाती मुजफ्फरपुर जिला में कर दी गयी, परंतु वर्तमान में नौ साल से लगातार उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई चल ही रही है.
अब तक उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई पूरी नहीं होने से न तो उनका निलंबन समाप्त हुआ है और न ही उन्हें कोई दंड ही मिला है. इस तरह से सूबे में करीब 100 पदाधिकारी ऐसे हैं, जिनकी सुनवाई सालों से चल ही रही है.
Posted by Ashish Jha