पटना. देश के सबसे तेजी से बढ़ रहे एयरपोर्टों में से एक पटना एयरपोर्ट भी है. इसी साल छठ के मौके पर यहां रिकार्ड यात्रियों की आवाजाही हुई है. यदि कोरोना की तीसरी लहर नहीं आयी तो अगले वर्ष के अंत तक यहां यात्रियों की संख्या 50 लाख सालाना को पार करने की संभावना है.
इतने तेजी से बढ़ रहे पैसेंजर लोड को संभालने के लिए लगभग 800 करोड़ खर्च करके वर्तमान से सात गुना बड़ा आलीशान और अत्याधुनिक टर्मिनल भवन बन रहा है, जिसकी क्षमता सात लाख की बजाय 80 लाख यात्रियों की आवाजाही लायक होगी. लेकिन, रनवे छोटा का छोटा ही रहेगा.
इसके विस्तार की कई योजना बनी, पर जगह की कमी के कारण किसी को मंजूरी नहीं मिली और न ही आगे इसकी आगे गुंजाइश दिख रही है. ऐसे में मध्यम आकार के विमानों के लैंडिंग और टेकऑफ में परेशानी आगे भी जारी रहेगी, जबकि बड़े विमान भविष्य में भी यहां उतर नहीं पायेंगे.
पटना एयरपोर्ट पर तीन तरफ से विमान उतरने की सुविधा है, लेकिन अलग अलग तरफ से लैंडिंग की अलग-अलग समस्याएं हैं. रनवे की कुल लंबाई 6800 फुट है, लेकिन इस्तेमाल लायक लंबाई कम है. पश्चिम की तरफ से उतरने पर केवल 5500 फुट का लैंडिंग रनवे मिलता है.
इसके कारण उस तरफ से उतरने पर पायलट को तेज ब्रेक लगाना पड़ता है. रनवे का ग्रिप बेहतर होने से ब्रेक लग जाता है, लेकिन विमान के हिचकोले खाने के कारण पायलट व यात्रियों दोनों के पसीने छूट जाते हैं.
जू की तरफ से उतरने पर पायलट को 6400 फीट का लैंडिंग रनवे मिलता है, लेकिन फनल एरिया में सचिवालय टावर के आने के कारण विमान के बायें डैने के उससे टकराने की आशंका बनी रहती है. जू के बड़े पेड़ों के कारण भी परेशानी होती है. हालांकि अब कटाई के द्वारा इसे कुछ हद तक नियंत्रित किया गया है.
फुलवारी की तरफ से लैंड करने पर रेलवे लाइन बाधक बनता है. इसके कारण विमान अपना चक्का समय पर नहीं खोल पाते हैं क्योंकि इसके रेलवे लाइन के ओवरहेड वायर से टकराने की आशंका बनी रहती है. देर से चक्का खुलने के कारण लैंडिंग चुनौतीपूर्ण हो जाती है और पायलट को पूरी सर्तकता बरतनी पड़ती है.
पटना एयरपोर्ट के रनवे पर लगा इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम कैट वन अपने उद्देश्य को ठीक तरह से पूरा नहीं कर पा रहा है. यहां रनवे पर लगा लोकलाइजर और ग्लाइडिंग पाथ 1000 मीटर से कम विजिबिलिटी रहने पर काम नहीं कर पाता है.
इसके कारण सर्दियों में बहुत परेशानी होती है जब घने कोहरे और धुंघ के कारण विजिबिलिटी घट कर 800 मीटर तक आ जाती है. यहां भी दिल्ली की तरह कैटेगरी थ्री का आइएलएस लगना चाहिए, जिसके इंस्ट्रूमेंट इतने मजबूत हैं कि 50 मीटर की विजिबिलिटी में भी विमान उतर सकते हैं.
रनवे विस्तार नहीं होने की वजह जगह की कमी है. एक तरफ चिड़ियाघर तो दूसरी तरफ रेलवे लाइन के कारण विस्तार की गुंजाईश नहीं है. कैट थ्री लैंडिंग इंस्ट्रूमेंट सिस्टम को लगाने के लिए रनवे के बाद भी कम से कम 900 मीटर लंबी और 60 मीटर चौड़़ी जमीन चाहिए, जिसकी व्यवस्था यहां नहीं संभव है.
कोरोना से पहले 33 फीसदी सालाना वृद्धि दर के साथ हवाई यात्रियों की संख्या आगे बढ़ रही थी. कोरोना के कारण लगभग डेढ़ वर्ष तक इसकी रफ्तार बंद या बेहद धीमी रही. लेकिन पिछले दो माह से यह फिर से तेजी से बढ़ रही है.
Posted by Ashish Jha