संजीव, भागलपुर. शुक्रवार को साढ़े तीन बजे शहर के बौंसी पुल के पास रेलवे ट्रैक गुलजार था. ट्रैक के किनारे बसी झोपड़पट्टी के बड़े-बूढ़े, बच्चे, महिलाएं रेलवे ट्रैक पर गप में मशगूल थे. बीच-बीच में पड़ रहे फुहारे के आनंद के बीच गपगोष्ठी जारी थी. 70 वर्षीय गणेश बीड़ी सुलगाने और 60 वर्षीय सलिला अपने पोते-पोतियों को संभालने में लगी थी. क्या हालचाल है के चर्चा के बीच अचानक ट्रेन के व्हिसल की तेज आवाज ने चौंका दिया.
घबरा कर हमने देखा कि एक ट्रेन भागलपुर रेलवे स्टेशन की ओर से आ रही है, हम तत्काल आसपास देखने लगे, पर रेलवे ट्रैक पर बैठे लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ता नहीं दिखा. इंजन से ड्राइवर कभी हाथ हिलाता दिखा तो कभी तेज व्हिसल मारता, पर जबतक ट्रेन नजदीक नहीं आ गयी ट्रैक छोड़ने में किसी ने तेजी नहीं दिखायी.
मानों कोई ट्रेन नहीं कोई बैलगाड़ी गुजर रही हो. उनकी निश्चिंतता का कारण जानने की कोशिश की तो वहां बैठे गणेश ने बताया कि उनके बाप-दादा यहीं रहे और अब उनकी उम्र भी ढलान पर है. अब तो ट्रेन की सिटी लोरी का काम करती है और पटरियों की आवाज संगीत का. कहते हैं कि यही जीवन है. कुछ मिला तो खुशी, न मिला तो हंसी.
झोपड़पट्टी में रहनेवाले पुरुष शहद उतारने का काम करते हैं. सलीला कहती हैं कि यहां की महिलाएं कोई काम इसलिए नहीं कर पातीं कि रेलवे ट्रैक किनारे घर होने के कारण उन्हें बच्चों को संभाल कर रखने की मजबूरी है.
स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य नागरिक को बेहतर जीवनस्तर प्रदान करना है. इसके तहत गरीबों को किफायती आवास देने की बात भी कही गयी है. मंत्रालय ने यह भी कहा है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट स्लम क्षेत्रों को बेहतर नियोजित क्षेत्रों में बदलेगा, जिससे शहर की वास-योग्यता बढ़ेगी.
यह मिशन रोजगार उत्पन्न करेगा और विशेषकर गरीबों व वंचितों की आय बढ़ायेगा. इस बात का उल्लेख मंत्रालय ने स्मार्ट सिटी मिशन के दिशा-निर्देशों के बिंदु संख्या 2.6 में किया है. फिर इनकी जगह यहां कहां है, यह बड़ा सवाल है.
भीखनपुर गुमटी नंबर दो की झोपड़पट्टी उस जगह पर बसी है, जहां बस्ती के बीच तक ट्रेनें हर दिन दिशा बदलने के लिए लायी जाती हैं. यह स्थान ट्रेन का आखिरी स्टॉपेज है. बस्ती के लोग बताते हैं कि हर दिन दो से चार ट्रेन यहां तक आती हैं और फिर लौट जाती हैं.
ट्रेन के आने का कोई वक्त नहीं होता है. जब ट्रेन आ रही होती है, तो लोग ट्रैक से हट जाते हैं और जैसे ही ट्रेन वापस चली जाती है, महिला, पुरुष व बच्चे फिर से ट्रैक पर. लोगों का कहना है कि अब तो इसकी आदत सी हो गयी है.
लाजपत पार्क के पास झोपड़पट्टी में रहनेवाले लोगों को तत्कालीन डीएम अंशुली आर्या ने दाउदवाट में रहने को जगह मुहैया करायी थी. गंदी बस्ती योजना से वहां 71 घर बना कर दिये गये. बाद में सड़क, बिजली और आंगनबाड़ी केंद्र भी मिले. लेकिन किसी को भी पर्चा नहीं मिला.
19 अगस्त 2013 का दिन लोग कभी नहीं भूल सकते. मां कात्यायनी देवी के मंदिर में पूजा करने जा रहे 28 श्रद्धालुओं की मौत धमारा रेलवे स्टेशन पर राजरानी एक्सप्रेस ट्रेन से कटकर हो गयी थी. ये श्रद्धालु रेलवे ट्रैक पार कर रहे थे.
Posted by Ashish Jha