नवहट्टा. 14 पंचायतों वाला यह प्रखंड दो भागों में बंटा हुआ है. पहला तटबंध के बाहर का भाग तो दूसरा तटबंध के भीतर है. दोनों भागों के लिए एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, एक हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर और दो एपीएचसी है. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चार डॉक्टर, 16 एएनएम सहित कुल 30 कर्मचारी प्रतिनियुक्त हैं. वहीं चंद्रायन के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में एक डॉक्टर, दो एएनएम सहित कुल नौ कर्मी प्रतिनियुक्त हैं. चंद्रायन और बकुनिया दोनों एपीएचसी में एक-एक डॉक्टर और एक-एक एएनएम प्रतिनियुक्त हैं. चंद्रायन का हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर रेफरल अस्पताल हुआ करता था. जिसका भवन जर्जर और खतरनाक हो चुका है. इसे हाल ही में वेलनेस सेंटर घोषित कर दिया गया. तटबंध के भीतर एपीएचसी सिर्फ गिनती गिनाने के लिए हैं. यहां न तो डॉक्टर या कोई अन्य सुविधा ही उपलब्ध हैं. सीएचसी चिकित्सा पदाधिकारी संजीव कुमार सिंह ने बताया कि सभी तरह की आवश्यक दवा एवं 30 बेड उपलब्ध हैं.
सौरबाजार. प्रखंड मुख्यालय स्थित 30 शय्या वाले नवनिर्मित भवन में चल रहा सौरबाजार पीएचसी संसाधन की कमी से जूझ रहा है. पर्याप्त बल के अभाव में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी से ड्रेसिंग का कार्य लिया जाता है. मालूम हो कि दो लाख 13 हजार की आबादी के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए उपलब्ध पीएचसी में एक मात्र नियमित डॉक्टर के अलावे तीन नियोजित डॉक्टर के भरोसे उपचार किया जाता है. पदस्थापित एकाध नियमित नर्स को छोड़कर नियोजित नर्स के ही जिम्मे आपातकालीन व्यवस्था देखी जाती है. फलस्वरूप इलाज की औपचारिकता पूरी कर सदर अस्पताल के लिए रेफर कर दिया जाता है. नियमित डॉक्टर के रूप में पदस्थापित प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ प्रियरंजन भास्कर इन दिनों अधिकांश समय कोविड-19 की जांच में ही होते हैं. इन्हें कई अन्य महकमों के भी दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है.
पतरघट. सरकार के लाख कोशिशों के बावजूद सरकारी बाबुओं की मनमर्जी के कारण पीएचसी की स्थिति सुधरने की बजाए दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है. डेढ़ लाख से अधिक की आबादी को बेहतर स्वास्थ सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एकमात्र पीएचसी में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. यह पीएचसी रेफर अस्पताल बनकर रह गया है. दस कमरे के पीएचसी में तीन कमरे के छतों से पानी का रिसाव हो रहा है. दस बेड वाले पीएचसी में मात्र चार डॉक्टर कार्यरत हैं. जबकि नर्स 22 है. महिला चिकित्सक का पद लंबे समय से रिक्त है. प्रधान सहायक लगभग दो साल से प्रतिनियोजन पर मधेपुरा मेडिकल कॉलेज में कार्यरत हैं. इमरजेंसी सेवा में तत्काल किसी भी मरीज का प्राथमिक उपचार कर बेहतर इलाज के लिए बाहर रेफर कर दिया जाता है.
सोनवर्षाराज. प्रखंड क्षेत्र में पीएचसी के अलावा छह एपीएचसी एवं 22 एचएससी हैं. लेकिन क्षेत्र के 21 पंचायतों के अलावा सीमावर्ती बनमा ईटहरी पंचायत के लगभग आधी आबादी सोनवर्षाराज स्थित पीएचसी पर ही निर्भर है. क्षेत्र स्थित अब भी कई ऐसे एपीएचसी हैं. जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है तो कई एचएससी अपने होने की उपस्थिति मात्र दर्ज करा रहा है. ऐसे में छोटे-छोटे स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को लेकर लोगों को या तो ग्रामीण व निजी चिकित्सक के भरोसे या फिर कई परेशानियों को झेलने के दौर से गुजरने के बाद जिले के सरकारी अस्पताल का सफर तय करना होता है. पीएचसी में 11 चिकित्सक, 25 नर्स, छह ऑक्सीजन सिलेंडर, एक एंबुलेंस उपलब्ध हैं. हालांकि महिला चिकित्सक के नहीं होने से महिला मरीजों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
सत्तरकटैया. पीएचसी से सीएचसी का दर्जा प्राप्त कर चुके पंचगछिया में सीएचसी भवन का हाल ही में डीएम द्वारा उदघाटन किया गया. अब पंचगछिया पीएचसी 30 बेड का अस्पताल बन गया है. जो नए भवन में शिफ्ट हो गया है. लगभग पांच एकड़ की जमीन में फैले पीएचसी मैदान का घेराबंदी कार्य भी शुरू हो गया है. लेकिन चिकित्सकों की कमी अभी तक दूर नहीं हुई है. प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को छोड़कर सिर्फ दो एमबीबीएस डॉक्टर कार्यरत हैं. जिन पर 14 पंचायतों की करीब दो लाख आबादी निर्भर रहती है. इस प्रखंड के बिहरा एवं कटैया में दो एपीएचसी संचालित हैं. जिसमें आयुष चिकित्सकों की साप्ताहिक ड्यूटी लगायी गई है. सप्ताह में एक से दो दिन चिकित्सक आते हैं. बाकी दिन एएनएम के भरोसे ही चलता है. सहरसा-सुपौल मुख्यमार्ग के करीब होने के कारण पीएचसी में दुर्घटनाग्रस्त मरीजों का आना लगा ही रहता है. जिसे संसाधन एवं चिकित्सकों की कमी के कारण अक्सर सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. इस अस्पताल में परिवार नियोजन के अलावे कोई अन्य सर्जरी नहीं होती है. पीएचसी में ऑक्सीजन सिलिंडर तो हैं, लेकिन उसमें हमेशा ऑक्सीजन की कमी बनी रहती है.
posted by ashish jha