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बिहार से गुजरनेवाली ट्रेनों में खड़े होने तक की जगह नहीं, जानें सफर करने को क्या-क्या सहन कर रहे हैं लोग

छठ के बाद लौटने के लिए ट्रेनों में भीड़ चल रही है. इससे पटना जंक्शन पर अनारक्षित टिकटों की बिक्री सामान्य दिनों की अपेक्षा 25 से 30% बढ़ गयी है. बिहार से गुजरनेवाली तमाम ट्रेनों में खड़े होने तक की जगह नहीं है. कोई चादर बांध कर डिब्बे में लटका हुआ है तो कोई शौचालय में पूरा सफर तय करने को मजबूर है.

पटना. छठ के बाद लौटने के लिए ट्रेनों में भीड़ चल रही है. इससे पटना जंक्शन पर अनारक्षित टिकटों की बिक्री सामान्य दिनों की अपेक्षा 25 से 30% बढ़ गयी है. रेलवे ट्रेनों में बैठने की क्षमता से कहीं अधिक जनरल टिकट बेच रहा है. ऐसे में बिहार से गुजरनेवाली तमाम ट्रेनों में खड़े होने तक की जगह नहीं है. कोई चादर बांध कर डिब्बे में लटका हुआ है तो कोई शौचालय में पूरा सफर तय करने को मजबूर है.

पिछले तीन दिनों में मिला 1.38 करोड़ का राजस्व

रेलवे के सूत्र ने बताया कि पिछले तीन दिनों में पटना जंक्शन पर 1.55 लाख अनारक्षित टिकट काउंटर से कटे हैं, जिससे 1.38 करोड़ का राजस्व मिला. सामान्य दिनों में 36 से 38 हजार तक अनारक्षित टिकट कटते हैं. इनमें लोकल के अलावा लंबी दूरी के भी टिकट शामिल हैं. सामान्य दिनों में लगभग 38 लाख राजस्व प्राप्त होता है. लेकिन, मंगलवार को लगभग 47 हजार अनारक्षित टिकट कटे, जिससे लगभग 42 लाख रुपये राजस्व की प्राप्ति हुई. बुधवार को लगभग 52 हजार अनारक्षित टिकट कटने से रेलवे को 47 लाख रुपये राजस्व मिला. गुरुवार को 56 हजार अनारक्षित टिकट कटे. इससे लगभग 49 लाख राजस्व की प्राप्ति हुई.

चादर को बांध कर बनायी सीट

छठ पर्व संपन्न होने के तीन दिन बाद भी ट्रेनों में काफी भीड़ चल रही है. पूजा स्पेशल ट्रेन चलाने के बावजूद लंबी दूरी की नियमित ट्रेनों में सेकेंड क्लास की बात तो दूर स्लीपर में ठूंस कर यात्रा करना मजबूरी है. दिल्ली से कामाख्या जानेवाली ब्रह्मपुत्र मेल में टिकट कन्फर्म नहीं होने पर जेनरल कोच में चादर को बांध कर सीट बना डाली. न्यू फरक्का जा रहे राजू कुमार ने बताया कि पहले आठ घंटे खड़े रहे. बरदाश्त नहीं होने पर चादर के एक छोर को सामान रखनेवाली जगह व दूसरे छोर को लोहे में बांध कर सीट बनायी. इसके बाद उसमें बैठ कर सफर कर रहे हैं. पटना जंक्शन पर शाम साढ़े चार बजे ट्रेन के पहुंचने तक एक बार भी बाथरूम नहीं गये हैं. घर वापस जाना जरूरी था. टिकट कन्फर्म नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में जुगाड़ लगानी पड़ी.

स्लीपर में सीट, पर नहीं मिली सोने की जगह

मालदा टाउन जानेवाले कमल कुमार का स्लीपर में कन्फर्म सीट होने पर भी रात में सोने के लिए जगह नहीं मिली. उनकी सीट पर लोगों के बैठने से उन्हें भी बैठना पड़ा. पूछने पर बताया कि जेनरल बोगी से भी बदतर हालत है. मालदा टाउन रात तीन बजे पहुचेंगे.

16 घंटे से आ रहे बैठ कर

सिलीगुड़ी जानेवाले रामविलास ने बताया कि स्लीपर में सीट होने पर भी बड़ी मुश्किल से सीट मिली. 16 घंटे से बैठे हैं. बाथरूम जाने में भी दिक्कत है. उसमें लोग घुसे हुए मिले.ट्रेन में कोई ऐसी जगह नहीं बची है जहां कोई सीधा खड़ा भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि इससे बेहतर व्यवस्था तो इस देश में जानवरों को ले जाने की रही है.

विक्रमशिला एक्सप्रेस में शौचालय में रहा कब्जा

भागलपुर से आनंद विहार जानेवाली ट्रेन के शौचालय में यात्रियों का कब्जा रहा. बड़हिया में ट्रेन में सवार नुनु बाबू ने बताया कि दिल्ली जाना है. जेनरल कोच में ठसमठस है. अंदर नहीं जा सकते. शौचालय में खड़े हैं. लगता है इसमें ही जाना पड़ेगा. स्लीपर में भी जेनरल कोच जैसी स्थिति रही. एक-एक सीट पर पांच से छह लोग एडजस्ट कर गये.

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