संजय कर्ण, झंझारपुर. अंचल में इटवापट्टी नामक एक ऐसा राजस्व गांव है, जहां एक भी घर नहीं है. गांव में अगर कुछ है तो सिर्फ भगवान विष्णु का मंदिर. यह कोई भूल या अंचल कर्मियों की लापरवाही नहीं है. बल्कि यह हकीकत है. अंचल कार्यालय के अभिलेख में सालों से इस गांव का जिक्र है.
1901 में हुए पहले सर्वे में भी इस गांव का जिक्र है. आज भी इसका वही स्वरूप है. बताया जाता है कि 1885 में तालाब की खुदाई के दौरान भगवान विष्णु की एक प्रतिमा मिली थी, जिसे गांव में स्थापित किया गया था. बाद में एक मंदिर भी बना दिया गया. तबसे आज तक वही स्थिति है. राजस्व विभाग ने इसे बेचिरागी गांव के रूप में जिक्र किया है.
बगल के गांव के रहने वाले मंदिर के पुजारी नूनू शरण झा कहते हैं कि 1885 में हररी गांव के प्यारे झा ने तालाब की खुदाई करायी थी. खुदाई में भगवान विष्णु की मूर्ति निकली थी, जिसे स्थापित किया गया. कालांतर में मंदिर का भी निर्माण कराया गया है. हररी गांव निवासी अशोक कुमार झा, चौरा महरैल निवासी पंकज चौधरी की मानें तो मूर्ति काले पत्थर की है.
प्रखंड मुख्यालय से करीब छह किमी दूर इटवापट्टी गांव का इतिहास काफी पुराना है. राजस्व विभाग की संचिका से मिली जानकारी के अनुसार इस गांव का जिक्र पहले सर्वे से ही किया गया है. इसमें इटवापट्टी को बेचिरागी राजस्व गांव के रूप में दर्ज किया गया है. झंझारपुर के सीओ कन्हैया लाल ने कहा कि इस गांव में एक मंदिर व सड़क है. मंदिर में स्थापित दुर्लभ प्रतिमा की जानकारी संबंधित विभाग को भेजी जा चुकी है. नक्शा के अनुसार इस गांव में आने वाली एकमात्र सड़क का जिक्र है, जो मलिछात व हररी गांव से होते हुए इटवापट्टी तक मिलती है.
अभिलेख व नक्शे के अनुसार इटवापट्टी गांव 855 एकड़ जमीन में फैला है. गांव की अधिकांश जमीन अगल-बगल के गांव के लोगों का है, जिसमें वे खेती होती है. सबसे अधिक जमीन हररी गांव की बतायी जा रही है. गांव के उत्तर में हररी गांव है, दक्षिण में मलिछात, पूरब में ताजपुर व पश्चिम में कर्णपुर गांव है. ( सभी राजस्व गांव : हजारों की आबादी) यह गांव अंधराठाढ़ी प्रखंड के चनौरागंज पंचायत की सीमा पर स्थित है.
1901 में हुए सर्वे में गांव का नाम अंकित है. जानकारों की मानें तो इस गांव का वजूद 400 साल पुराना है. संभावना जतायी जा रही है कि सदियों पहले इस गांव में लोगों का बास रहा होगा. अशोक झा, पंकज चौधरी बताते हैं कि जिस समय अंधराठाढ़ी रेल लाइन का निर्माण हो रहा था उस समय इटवापट्टी में खुदाई में पुराने कुएं के टुकड़े निकले थे.
इसकी न तो सही से खुदाई की गयी और न ही इसका इतिहास लोगों के सामने आ सका. पर आशंका जतायी जा रही है कि किसी महामारी या प्राकृतिक आपदा के मारण गांव का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा. यहां रहने वाले लोग कहां चले गये या उनका वंशज कहां पर हैं इसकी जानकारी किसी को नही है.
Posted by Ashish Jha