सारण में आस्था के केंद्र रहे हैं गोपालगंज के ये पांच धार्मिक स्थल, जानें कहां कौन सी मनोकामना होती है पूरी
धार्मिक मान्यता लोकरंग से जा ही जुड़ते हैं. गोपालगंज की सबसे प्रमुख धर्मस्थली थावे मंदिर, सिर्फ आस्था का केन्द्र नहीं बल्कि गोपालगंज ही नहीं बिहार के एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्रों में शुमार हो गयी है. चैत नवरात्रि के थावे मेले की रंगत में लोकसंस्कृति की सुनहरी झलक साफ दिखती है.
गोपालगंज. बिहार-यूपी की सीमा और गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा भोजपुरी भाषी जिला गोपालगंज मध्यकाल में चेर राजाओं और अंग्रेजों के समय हथुआ राज का केंद्र रहा. थावे स्थित मां सिंहासनी मंदिर, बेलबनवां हनुमान मंदिर, गणेश स्थान मांझा में गणेश मंदिर, दिघावा दुबौली धनेश्वर महादेव मंदिर, बउरहवा शिव धाम हथुआ, पुरानी किला हथुआ, ऐतिहासिक गोपाल मंदिर हथआ, देवीगंज नकटो भवानी बरौली, लच्छीचक में राजा भूरिश्रवा द्वारा स्थापित शिव मंदिर, विजयीपुर में भदसी वन, रमजिता में कर्तानाथ महादेव मंदिर यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल है. पटना से 144 किमी दूर गोपालगंज रेल और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है. गोपालगंज के लिए सबसे नजदीक एयरपोर्ट पटना है, वैसे गोरखपुर एयरपोर्ट से भी यहां आया जा सकता है.
बिहार के सांस्कृतिक केन्द्रों में शुमार है गोपालगंज
धार्मिक मान्यता लोकरंग से जा ही जुड़ते हैं. गोपालगंज की सबसे प्रमुख धर्मस्थली थावे मंदिर, सिर्फ आस्था का केन्द्र नहीं बल्कि गोपालगंज ही नहीं बिहार के एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्रों में शुमार हो गयी है. चैत नवरात्रि के थावे मेले की रंगत में लोकसंस्कृति की सुनहरी झलक साफ दिखती है. थावे वाली भवानी के प्रकट होने की जो कथा है, उसमें एक रजवाड़े नहस नहस होने की भी बात आती है. और थावे मंदिर के आसपास उसके अवशेष साफ देखे जा सकते हैं. लेकिन जो मुक्कमल मैाजूद हैं.
1. हथुआ गोपाल मंदिर जहां दर्शन से खत्म होता है क्लेश
हथुआ के ऐतिहासिक गोपाल मंदिर जहां भव्य मंदिर में स्थापित राधे कृष्ण की दर्शन करने के लिए यूपी, बिहार सहित कई राज्यों से लोग आते हैं.मान्यता है कि एक बार दर्शन करने वालों के घर में क्लेश खत्म हो जाता है. शक्तिपीठ थावे के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु हथुआ के गोपाल मंदिर, पुरानी किला आदि का भ्रमण करते हैं. इसके बावजूद भी हथुआ गोपाल मंदिर को पर्यटक का दर्जा नहीं मिला है. हालांकि बिहार न्याय बोर्ड पर्षद के अधीन मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था है. वही मंदिर के परिसर में तालाब तथा 108 गुंबज आकर्षण का केंद्र है.वहीं स्थानीय लोगों के द्वारा भी हथुआ गोपाल मंदिर को पर्यटक स्थल के रूप में कई बार मांग की जा चुकी है.
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2. पर्यटन स्थल में विकसित हो रहा कर्तानाथ महादेव मंदिर
सासामुसा अपने इतिहास व धार्मिंक मान्यताओं को समेटे दियारा के कछार पर बसे कर्तानाथ धाम पर्यटन के क्षेत्र में विकसित हो रहा. महादेव की मंदिर आस्था का केंद्र है. बिहार पर्यटन विभाग की ओर से यहां लगभग आठ करोड़ की लागत से विकसित किया जा रहा.दियारा का इलाका भव्य बनने लगा है. यहां से काफी नजदीक सिपाया पॉलीटेक्नीक कॉलेज, सैनिक स्कूल, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि विज्ञान केंद्र है. छात्रों के लिए यह स्थल आकर्षण का केंद्र होगा. भठवां मोड पर रमजिता के लिए बड़ा गेट का भी निर्माण अंतिम दौर में है. हाइवे से गुजरने वालों को भी कर्तानाथ धाम लुभाएगा. बता दे कि आज से हजारों वर्ष पूर्व गंडकी(नारायणी) वर्तमान रामेश्वर शिव मंदिर मंदिर कर्तानाथ धाम के पास ही बहती थी. बाबा कर्तानाथ की एक तरुण तपस्वी के रूप में गोपालगंज के पश्चिमी सीमा पर बहने वाली छोटी गंडकी के किनारे से भ्रमण करते हुए पहुंचे. मात्र एक लंगोट धारी कर्ता बाबा के शरीर पर यज्ञोपवीत होने के कारण ब्राह्मण शरीर का होना निश्चित था. तपस्या में लीन तपस्वी की आभा लोगों को आकृष्ट कर रही थी. उनके द्वारा यहां मंदिर की स्थापना की गयी. उनके यज्ञ से गंडक नदी अपना धारा बदली.
3. पर्यटकों का मन मोह रहा बेलबनवां हनुमान मंदिर
गोपालगंज के कुचायकोट प्रखंड का बेलबनवां में स्थित ऐतिहासिक हनुमान मंदिर लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र है. बेलबनवां हनुमान मंदिर में आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं हनुमान जी पूरा करते है. यह मंदिर इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि यहां के महंत स्व नागा बाबा अयोध्या राम मंदिर के लिए कानूनी जंग भी लड़े. देश के उप प्रधानमंत्री रहे लाल कृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल, उमा भारती जैसे नेता हनुमान जी के शरण में आ चुके है. बेलबनवां मंदिर में प्रत्येक शनिवार व मंगलवार को भक्तों की भीड़ होती है. मंदिर के महंथ जय प्रकाश दास ने बताया कि मंदिर को पर्यटन के स्प में विकसित करने के लिए लगातार कोशिश जारी है. उधर जिलाधिकारी डॉ नवल किशोर चौधरी ने बताया कि हनुमान मंदिर बेलबनवा के लिए प्रशासन के स्तर पर भी होमवर्क किया जा रहा. जल्दी ही वहां दिव्यता दिखने लगेगा.
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4. हजारों वर्षों से आस्था का केंद्र है गणेश स्थान मांझा के गणेश मंदिर
फुलवरिया के गणेश स्थान मांझा गांव सदियों से लोक आस्था व विरासत का केंद्र रहा है. हजारों वर्षों से भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना व दर्शन प्रतिदिन भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है. सावन में अहले-सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद जलाभिषेक कर मन्नते मांगतें है. गणेश स्थान मांझा में नेपाल व उड़ीसा, झारखंड, उत्तर प्रदेश के बनारस, अयोध्या के अलावे बिहार के विभिन्न जिलों से श्रद्धालु पहुंचकर भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना कर लाभान्वित होते आ रहे हैं. श्रद्धालुओं में भगवान श्री गणेश की आस्था को लेकर परम स्नेही भक्ति की मन गंगा जैसी बहती है. जिसका उदाहरण मंदिर के पुजारी विश्वनाथ तिवारी ने बताया कि जो श्रद्धालु पहुंच कर मन्नते मांगते हैं उनकी भगवान श्री गणेश जी मन्नते पूर्ण करते हैं. हैं. सावन मास में दूर-दराज से दुकानदार पहुंचकर अपने कला का प्रदर्शन कलात्मक वस्तुओं को निर्मित कर आम लोगों के बिक्री के लिए तरसाते है. यहां शादी-विवाह के अवसरों के साथ साथ अपने-अपने घरों के ड्राइंग रूम के सजावट की वस्तु खरीदने के लिए लोग मेले में आकर्षित होते है. जिले के एकमात्र भगवान श्री गणेशपूरी मंदिर में श्रद्धालुओं का श्रद्धा देखने को मिलता है.
5. महाभारत का साक्षी भदसी वन के गर्भ में छिपा है इतिहास
गोपालगंज में महाभारत की जंग में शामिल महाराजा भूरिश्रवा की तपोभूमि भदसी वन साक्षी के रूप में अपने गर्भ में इतिहास को समेटे है. गोपालगंज जिला मुख्यालय से लगभग 55 किमी दूर दक्षिण पश्चिम दिशा में विजयीपुर प्रखंड के अहियापुर में स्थित इस ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षण की जरूरत है. इसी स्थान पर राजा भूरिश्रवा तपस्या करते थे. भदसी वन सिर्फ नाम का फैले इस जंगल में एक से बढ़ कर एक औषधीय पौधे भी उपलब्ध हैं, जिनका राजा भूरिश्रवा के काल से होने के प्रमाण हैं. महाभारत काल में राजा भूरिश्रवा प्रतिदिन यहां से कुरुक्षेत्र में जाकर महाभारत की जंग लड़ी. कौरवों के सेनापति रहे राजा भूरिश्रवा बैठकर साधन करते थे, उसके अवशेष आज भी मौजूद हैं.