अमिताभ श्रीवास्तव, पटना सिटी : वैश्विक आपदा की मार व सरकार के निर्देश के इंतजार में दुर्गापूजा की तैयारी आरंभ नहीं हो सकी है. बड़ी देवी जी मारूफगंज व महाराजगंज पूजा समिति ने वर्तमान स्थिति को देखते हुए फैसला लिया है कि मूर्ति नहीं बैठायी जायेगी. कलश स्थापन, दुर्गा सप्तशती के पाठ व भगवती की फोटो रख कर पूजा-अर्चना की जायेगी. स्थिति यह है कि दुर्गा पूजा में अब महज डेढ़ माह का समय रह गया है. ऐसे में मूर्ति निर्माण के लिए दूसरे प्रांतों से आने वाले मूर्तिकार भी इस दफा नहीं आयेंगे. हालांकि बड़ी देवी जी मारूफगंज में पूजा-अर्चना के लिए पश्चिम बंगाल से आने वाले पुजारी आयेंगे. वहीं देवी स्थान कलश स्थापन के साथ पूजा-अर्चना का विधान करेंगे.
बड़ी बहन मारूफगंज बड़ी देवी जी में दुर्गा पूजा की तैयारी नहीं हो रही है. यहां पर 202 वर्षों से श्री बड़ी मारूफगंज में बांग्ला पद्धति से देवी के पूजा का विधान है. श्री बड़ी देवी जी प्रबंधक समिति मारूफगंज के अध्यक्ष अनिल कुमार व उपाध्यक्ष संत लाल गोलवारा बताते हैं कि वर्ष 1818 से बड़ी देवी जी की पूजा मंडी के व्यापारियों की ओर से की जाती रही है. इन लोगों ने बताया कि 1818 से पहले यहां बंगाली परिवार की ओर से देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना आरंभ की गयी थी. मंडी के व्यापारियों के सहयोग से पूजा आरंभ हुई. यहां बंगाली परिवार की ओर से ही बांग्ला पद्धति से पूजा का अनुष्ठान कराया जाता है. देवी प्रतिमा के निर्माण के लिए पश्चिम बंगाल से कारीगर आते हैं. इस दफा कारीगर नहीं आ रहे हैं. यहां पुरोहित आकर पूजा-अर्चना करेंगे, सप्तमी को होने वाले दरिद्र नारायण भोज का आयोजन नहीं होगा.
बड़ी देवी जी महाराजगंज को भी मारूफगंज बड़ी देवी जी की छोटी बहन के तौर पर मान्यता है. महाराजगंज बड़ी देवी जी प्रबंधक समिति के अध्यक्ष सह पूर्व पार्षद प्रमोद गुप्ता बताते हैं कि यहां पर भी लगभग डेढ़ सौ वर्षों से भी अधिक समय से पूजा होती आ रही है. लेकिन वैश्विक आपदा की वजह से कलश स्थापन के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ होगा. मूर्ति निर्माण के लिए कोलकाता से आने वाले कारीगर को नहीं बुलाया गया है. सरकार के निर्देश पर आगे फैसला लिया जायेगा. खोईछा की अदला-बदली मामले में अध्यक्ष ने बताया कि बड़ी देवी जी मारूफगंज की पूजा समिति के सदस्यों से विचार करने के बाद वर्षों से चली आ रही पौराणिक व धार्मिक परंपरा के मुताबिक मिलन स्थल शेख बूचर के चौराहा पुरानी सिटी कोर्ट के पास विदाई बेला चार से पांच लोगों की उपस्थिति में यह रस्म निभायी जा सकती है.
posted by ashish jha