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गौरैया को बचाने में लगा है बिहार यह गांव, पक्षियों पर नजर रखने को लगा रखे हैं सीसीटीवी कैमरे

कभी हर घर की सदस्य कहलाने वाली पक्षी गौरैया अब विलुप्त होने की स्थिति में है. शहरों और गांवों में सुविधाभोगी समाज में अब गौरैयों के लिए कोई जगह नहीं बची है. ऐसे में एक इंसान ने इन पक्षियों के संरक्षण की जिम्मेदारी बीते 10 वर्षाें से उठा रखी है.

गया. कभी हर घर की सदस्य कहलाने वाली पक्षी गौरैया अब विलुप्त होने की स्थिति में है. शहरों और गांवों में सुविधाभोगी समाज में अब गौरैयों के लिए कोई जगह नहीं बची है. ऐसे में एक इंसान ने इन पक्षियों के संरक्षण की जिम्मेदारी बीते 10 वर्षाें से उठा रखी है.

बोधगया के निसखा गांव में रहने वाले तंजील-उर-रहमान बीते दस साल से गौरैयों का संरक्षण कर रहे हैं. अपने घर व आसपास के क्षेत्र में इन्होंने 150 से अधिक घोंसले तैयार किये हैं. इनके अलावा पेड़ों पर भी घोंसले बनाये गये हैं, जहां हजारों की संख्या में गौरैया रहती हैं.

नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर पक्षियों और जानवरों की स्टोरी को देख कर प्रभावित हुए तंजील ने 10 साल पहले झारखंड में नौकरी छोड़ कर गया अपने घर आ गये. यहां उन्होंने गौरैयों के संरक्षण की योजना बनायी और काम में लग गये.

वर्तमान में उनसे प्रभावित होकर उनका पूरा गांव इस पक्षी के संरक्षण में लगा है. गांव में पक्षियों के मारने पर पूरी तरह से रोक है, सीसीटीवी कैमरे लगा कर निगरानी की जाती है.

दो घोंसलों से की थी शुरुआत

तंजील बताते हैं उनके गांव में एक कुआं था, जिसमें कुछ गौरैयों ने घोंसला बना रखा था. एक बार उन्होंने देखा कि गौरैये घोंसले से बाहर आये, तो कुएं के अंदर गिर गये. इसके बाद तंजील ने खुद से दो घोंसला तैयार किया. उन्होंने देखा कि गौरैया उसमें आ कर रहने लगी.

तंजील का उत्साह बढ़ा, उन्होंने कुछ और घोंसले बनाये. इसी तरह धीरे-धीरे 150 से अधिक घोसलें तैयार कर लिए. घर के अंदर से लेकर बाहर बागीचे में घोंसले तैयार किये. उन्होंने बताया कि शुरुआत में कुछ एक गौरैया आती थी, लेकिन अब इनकी संख्या हजारों में पहुंच गयी हैं.

ये गौरैया अपने घोंसले व आसपास के पेड़ों पर रहती हैं. उन्होंने बताया कि पास के कुछ गांव के लड़कों ने एयर गन से इन पक्षियों पर निशाना भी बनाया. पूरे गांव ने इसका विरोध किया, इसके बाद से अब कोई गौरैयों का शिकार नहीं करता.

पहले हुआ विरोध, अब मिल रहा समर्थन

तंजील ने जब गौरैयों के संरक्षण के लिए शुरुआत की, तो उनके घर के ही लोगों ने विरोध किया. परिवार को लगा कि यह क्या बेकार के काम शुरू किया गया है. लेकिन, तंजील ने इसकी परवाह नहीं की. धीरे-धीरे जब घर के आंगन में गौरैयों की संख्या बढ़ने लगी और उनकी चहचहाट होनी लगी, तो घर के लोगों को भी अच्छा लगने लगा.

तंजील बताते हैं कि अब तो उनके साथ पूरा परिवार इन पक्षियों के रहने व खाने की व्यवस्था करने में लगा रहता है. इतना ही नहीं पूरे गांव के भी लोगों का सहयोग मिलने लगा. गांव के लोग भी तंजील के इस अभियान के साथ जुड़ गये हैं और सभी मिल कर पक्षियों का संरक्षण कर रहे हैं.

हर जीव को जिंदा रहने का हक : तंजील

तंजील-उर-रहमान कहते हैं कि ऊपर वाले ने दुनिया बनायी है, तो हर जीव को जीने का हक दिया है. गौरैया को भी हक है कि वह भी इस दुनिया में रहे. इसी सोच के साथ मैंने यह शुरुआत की. गौरैया का होना पर्यावरण को संतुलित रखने व मानव जीवन के लिए बहुत आवश्यक है. मैंने तय कर रखा है कि अपना पूरा जीवन इस प्रजाति की पक्षी के संरक्षण में व्यतीत करूंगा. उनकी मौजूदगी सुकुन देती है.

Posted by Ashish Jha

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