एनिडेस्क एप डाउनलोड करा साइबर अपराधी लगा रहे हजारों-लाखों का चुना
भभुआ सदर : कोरोना वायरस के चलते बदल रहे दौर के कारण साइबर अपराधियों ने भी ठगने का अब नया हथकंडा अपनाना शुरू कर दिया है. साइबर अपराधी एटीएम कार्ड के पिन, पासवर्ड और फोन पर ओटीपी की सहायता से लोगों को नहीं ठगते हैं. बल्कि खुद को बैंकिंग एप के अधिकारी बता कर लोगों को हजारों और लाखों का चूना लगा रहे हैं.
भभुआ सदर : कोरोना वायरस के चलते बदल रहे दौर के कारण साइबर अपराधियों ने भी ठगने का अब नया हथकंडा अपनाना शुरू कर दिया है. साइबर अपराधी एटीएम कार्ड के पिन, पासवर्ड और फोन पर ओटीपी की सहायता से लोगों को नहीं ठगते हैं. बल्कि खुद को बैंकिंग एप के अधिकारी बता कर लोगों को हजारों और लाखों का चूना लगा रहे हैं. इस दौरान फोन करनेवाले ठग लगे हाथ लोगों को साइबर अपराधी से बच कर कार्य करने की नसीहत भी दे रहे हैं. जब तक बैंकिंग ग्राहक कुछ अधिक समझ पाने की कोशिश करते है, तब तक फोन पर और गूगल पे के अधिकारी बता और मोबाइल पर एनिडेस्क नामक एप डाउनलोड करा कर उनका सारा डेटा लेकर खाते से पैसा गायब कर दे रहे हैं.
केस स्टडी 01
शहर के वार्ड 12 निवासी अभिषेक कुमार का किसी भी प्रकार से उनका ट्रांजेक्शन करने के दौरान पांच हजार रुपये गूगल पे में फंस गया. इसके बाद उनके पास गूगल पे के टॉल फ्री नंबर पर कॉल नहीं लगने पर इंटरनेट से सर्च करने के बाद उन्हें नंबर मिला. इस पर कॉल करने के बाद उन्हें एक एकाउंट नंबर पर पैसा भेजने की बात कहने लगे. जब उस विषय में साइबर अपराधी से पूछा गया, तो टोटल एमाउंट रिफंड करने की बात कही. इस पर शक होने के बाद उन्होंने कॉल काट दिया और जानकारी नहीं देने के चलते उनकी गाढ़ी कमाई बच गयी.
केस स्टडी 02
अखलासपुर गांव निवासी प्रवीण सिंह से भी साइबर अपराधियों ने मोबाइल पर खुद एप डाउनलोड करा कर उसके एकाउंट से डाटा चोरी करने का प्रयास किया. इसके बाद उन्होंने इंटरनेट डाटा को डिस्कनेक्ट कर दिया. इसके बाद वे साइबर अपराधी के शिकार होने से बच गये.
लॉक डाउन के कारण बंद है कस्टमर प्वांइट पर सर्विस
दरअसल, कोरोना और लॉकडाउन के कारण गूगल पे और फोन पे बैंकिग एप ने कस्टमर प्वांइट पर सर्विस देना बंद कर दिया है. इधर, इसका गलत फायदा उठा कर साइबर अपराधियों ने गूगल पर एड चला रखा है. इसमें पैसा रिफंड होने के लिए मदद के नाम पर कॉल करने की बात कहा जाता है. कॉल करने के तुरंत बाद दूसरे नंबर से कॉल आता है. उधर से कस्टमर केयर की तर्ज पर हेल्प करने की बात की जाती हैं. इसके बाद अपराधी वर्तमान में खाता में बैलेंस की जानकारी पूछते हैं, जिस डिजीट में खाता में बैलेंस है. उतना डिजीट में कोड के नाम पर राशि को खाता पर भेजने की बात करते हैं. इसके अलावा अपराधी एक मोबाइल एप के माध्यम से सारा डाटा लेकर इसका शिकार बनाते हैं.
जानकारी के साथ प्रलोभन देते हैं अपराधी
जानकारी के अनुसार, ऑनलाइन लेने देन में कई बार नेटवर्क की समस्या के कारण ग्राहक का पैसा अटक जाता है. ऐसे में ग्राहक कस्टमर केयर में शिकायत करते हैं. इसके बाद कुछ घंटा पर कंपनी द्वारा पैसा रिर्टन किया जाता है. ऑनलाइन खरीदारी करने और गूगल व फेसबुक से जुड़े रहने की वजह से इसकी जानकारी साइबर अपराधियों को लग जाती है. इसके बाद साइबर अपराधी पहले उक्त नंबर को डिटेक्ट कर लाखों के कार या मोबाइल मिलने के प्राइज या अन्य तरह के प्रलोभनों वाले मैसेज भेजते है. मैसेज पढ़ने के बाद साइबर अपराधी वैसे लोगों के मोबाइल नंबरों पर फोन कर जानकारी के साथ प्रलोभन देते है, जो उनके जाल में फंसते है उनके खाते से रकम निकाल लिये जाते है.
जागरूक रहने की जरुरत
इस मामले में थानाध्यक्ष भभुआ रामानंद मंडल ने बताया कि साइबर अपराधियों से बचने की जरूरत है. साइबर अपराध को रोकने के लिए साइबर क्राइम से जुड़े पुलिस अधिकारी सक्रिय है. वैसे भी कोई भी बैंक या ऑनलाइन कंपनी लोगों से उनके बैंक खातों की जानकारी नहीं मांगती. इससे बचने के लिए जागरूकता भी फैलायी जाती है.
posted by ashish jha