गन्ने का गुड़ व हांडी की भुनाई से खास बनता है टिकारी का तिलकुट, जानें क्यों है सर्दियों में खाने की परंपरा
टिकारी के मीठे (गुड़) के तिलकुट की सोंधी महक की ख्याति पूरे बिहार में ही नहीं बिहार से बाहर के प्रांत में भी फैली हुई है. यहां की मिट्टी में उपजने वाला गन्ना(ईख) है. कुछ चुनिंदा गांव के ईख के रस से बने( गुड़) मीठा और उससे बनाये गये तिलकुट की एक अलग पहचान है.
गया. सर्दी के मौसम में टिकारी बाजार से सर्वत्र तिलकूट की सोंधी खुशबू महकती रहती है. तिल की प्रकृति गर्म होने की वजह से तिलकुट सिर्फ सर्दी के मौसम में ही बनाया जाता है. सर्दी के मौसम में नियमित रूप से तिलकुट का सेवन करने से ठंड से राहत मिलती है. कई बीमारियों से बचाव होता है. शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है.
जटिल है बनाने की प्रक्रिया
टिकारी के मीठे (गुड़) के तिलकुट की सोंधी महक की ख्याति पूरे बिहार में ही नहीं बिहार से बाहर के प्रांत में भी फैली हुई है. यहां की मिट्टी में उपजने वाला गन्ना(ईख) है. कुछ चुनिंदा गांव के ईख के रस से बने( गुड़) मीठा और उससे बनाये गये तिलकुट की एक अलग पहचान है. तिलकुट खाने में जितना स्वादिष्ट है,उसके बनाने की प्रक्रिया उतनी ही जटिल है.
क्या है बनाने की प्रक्रिया
सर्वप्रथम मीठा को तोड़कर धीमी लकड़ी की आंच पर चासनी तैयार किया जाता है, उसके बाद एक विधि के द्वारा छोटी-छोटी गोटी तैयार की जाती है. उस गोटी को मिट्टी के( हांडी) बर्तन में तिल डालकर भूना जाता है और कुछ समय के बाद उसके विशेषज्ञ कारीगर उसे चेक करते है और जब संतुष्ट हो जाते हैं, तो उसे( हांडी) बर्तन से बाहर निकाल उसे पत्थर पर कूटते हैं. चंद मिनट में तिलकुट बनकर तैयार हो जाता है, जो खाने में काफी सोंधे, मुलायम एवं स्वादिष्ट लगते हैं.
सबसे खास है टिकारी का तिलकुट
टिकारी की तिलकुट दूर से ही पहचान लिये जाते हैं क्योंकि इस तरह की बनावट अन्य जगह देखने को नहीं मिलती है. जाड़े के दिनों में टिकारी से बाहर रहनेवालों के लिए इसे बहुमूल्य सौगात माना जाता है. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति पर्व के दिन 14-15 जनवरी को तिल की वस्तु दान देना और खाने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसी मान्यता को लेकर टिकारी राज के जमाने से ही गुड़ अथवा चीनी तिलकुट बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ था.
माघ महीना तक चलता है कारोबार
शरद ऋतु के कार्तिक माह से प्रारंभ होने वाला गुड़ के तिलकुट का व्यवसाय माघ महीना तक चलता रहता है, पर 14 जनवरी मकर संक्रांति के समय मांग अधिक होती है. क्योंकि यहां के तिलकुट बिहार में ही नहीं बल्कि भारत के अन्य राज्यों में भी इसकी एक अलग पहचान है. जानकारों की यदि माने तो गुड़ के तिलकुट बनाने की शुरुआत टिकारी राज के जमाने में ही हुआ था.
टिकारी महाराज को काफी पसंद था गुड़ का तिलकुट
पुराने लोगों का कहना है कि टिकारी महाराज को गुड़ का तिलकुट काफी पसंद था. और वह इसे बनाने वाले को काफी प्रोत्साहित भी किया करते थे. तिलकुट निर्माण में उपयोग होने वाली सामग्री जैसे कि सफेद तिल, गुड के साथ अन्य सामग्री का उपयोग होता है. सफेद तिल दूसरे राज्यों की मंडी से आता है. खस्ता और खास स्वादिष्ट गुड़ के तिलकुट के स्वाद का राज अच्छे किस्म का तिल और स्थानीय क्षेत्र का बना हुआ गुड़ है.
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देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है मांग
आज भी टिकारी शहर में कई फ्लेवर के तिलकुट बनाये जाते हैं. पपड़ी तिलकुट, खोवा तिलकुट, चीनी तिलकुट व गुड़ तिलकुट बाजार में मिलते हैं. टिकारी में बने गुड़ के तिलकुट की पसंद की चर्चा आज देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हो रही है. टिकारी का तिलकूट स्वादिष्ट के साथ बेहद खस्ता होता है. इसे कई दिनों तक आसानी से रखा जा सकता है. हमारी संस्कृति में मकर सक्रांति के अवसर पर चूड़ा, दही और तिलकूट खाने की परंपरा है. उन दिनों तिलकुट की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि हो जाती है. क्योंकि कारीगर आज भी तिलकुट बनाने के लिए परंपरागत मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल करते हैं.
तिलकुट रखने के लिए होते थे विशेष्र पात्र
पूर्व में तिलकुट को रखने के लिए ताड़ के पत्तों से बना हुआ डब्बा नुमा खोना का इस्तेमाल किया जाता था,जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से उपयुक्त था एवं एक जाति विशेष के लोगों का जीविका का भी साधन था, लेकिन अब आधुनिकता की दौड़ में एवं अधिक दिनों तक तिलकुट को सुरक्षित रखने के लिए चमकदार और भड़कदार पैकेजिंग का इस्तेमाल किया जा रहा है. ताकि, हवा का ( एयर टाइट पैक) प्रवेश तिलकुट के पैकेट में न हो सके, यदि हवा का प्रवेश नहीं होने पर कम-से-कम दस दिनों तक सुरक्षित व सोंध युक्त मुलायम स्वादिष्ट बना रहता है.