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समस्तीपुर डयोढी में 136 साल से है दुर्गा आराधना की परंपरा, राज परिवार के सदस्य करते हैं तांत्रिक विधि से पूजा

करीब 136 साल पहले समस्तीपुर ड्योढ़ी नाम से प्रसिद्ध बहादुरपुर की इस डयोढ़ी पर मां दुर्गा की पूर्ण मिथिला पद्धति और तांत्रिक विधि से पूजा होती आ रही है. आसपास के गांवों में इसको लेकर काफी सारी मान्यताएं हैं.

दरभंगा. मिथिला का राज घराना तंत्र साधक रहा है. इस राजघराने में एक से एक तंत्र साधक हुए हैं. उन्हीं में से एक तंत्र साधक थे महाराजकुमार गुणेश्वर सिंह के पुत्र मोदेश्वर सिंह, जिन्हें समस्तीपुर अनुमंडल की जमींदारी मिली थी और उन्होंने बहादुरपुर में अपनी डयोढी बनायी. तभी से राजघराने के वंशज यहां पर मां दुर्गा की विशेष पूजा करते आ रहे हैं. करीब 136 साल पहले समस्तीपुर ड्योढ़ी नाम से प्रसिद्ध बहादुरपुर की इस डयोढ़ी पर मां दुर्गा की पूर्ण मिथिला पद्धति और तांत्रिक विधि से पूजा होती आ रही है. आसपास के गांवों में इसको लेकर काफी सारी मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि भक्त कभी भी यहां से खाली हाथ नहीं लौटते हैं, उनकी जो भी मनोकामना रहती है, मां दुर्गा उसे जरूर पूरा करती हैं.

शुभंकरपुर से आयी परंपरा

दरभंगा राजघराने के वंशज बाबू मोदेश्वर सिंह, महाराजकुमार गुणेश्वर सिंह के बेटे थे. गुणेश्वर सिंह की डयोढ़ी दरभंगा के शुभंकरपुर में थी. करीब 140 वर्ष पहले 1859 में मोदेश्वर सिंह को समस्तीपुर इलाके की जमींदारी मिली और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बतौर तिरहुत का डिप्टी कलेक्टर नियुक्त किया. राजघराने से अपनी हिस्सेदारी मिलने के बाद उन्हें समस्तीपुर काफी रास आया और वे यहीं के होकर रह गये. उन्होंने बहादुरपुर में अपनी ड्योढ़ी बनायी, जिसे आज भी समस्तीपुर डयोढ़ी कहा जाता है. इसी डयोढ़ी में उन्होंने शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा की पार्थिव प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की. कई पीढियों के बाद भी आज तक ये परम्परा चली आ रही है. राज और जमींदारी तो चली गयी, लेकिन इस परिवार के लोग उसी आस्था के साथ हर साल ड्योढी पर मां दुर्गा की पूजा होती है.

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बड़ी विपदा के बाद भी कभी पूजा बंद नहीं हुई

दरभंगा राजघराने के सदस्य बाबू दिनेश्वर सिंह इस संबंध में कहते हैं कि यह परंपरा शुभंकरपुर डयोढ़ी से यहां आयी है. राजघराने के सभी डयोढियों में डयोढियों में पहले दुर्गा की पार्थिव प्रतिमा स्थापित होती थी, लेकिन अब यह परंपरा कुछ डयोढियों में ही देखने को मिलती है. उन्होंने कहा कि लगभग 136 साल से हमारा परिवार यहां पार्थिव प्रतिमा स्थापित कर पूजा कर रहा है. राज और जमींदारी जाने के बावजूद बिना किसी आर्थिक सहयोग के आज भी हमारा परिवार माता की पूजा उसी आस्था से कर रहा है. सबसे खास बात है कि माता का प्रभाव यहां ऐसा है कि कई बार बड़ी विपदा के बाद भी माता की कृपा इस राजघराने पर रही और कभी भी पूजा बंद नहीं हुई.

इस ड्योढ़ी को लेकर भक्तों में खास आस्था

यहां स्थापित दुर्गा के पुरोहित पंडित राजेश झा कहते हैं कि यहां पूर्ण प्राचीन मिथिला पद्धति और तांत्रिक विधि से माता की पूजा की जाती है. यही नहीं सैकड़ों वर्ष पहले जिस विधि-विधान से पुजारी दीनबंधू बाबा ने यहां पूजा शुरू की थी, उनकी लिखी पुस्तक के अनुरुप ही वर्तमान मे भी पूजा हो रही है. जिले में माता के इस ड्योढ़ी को लेकर भक्तों में खास आस्था है. नवरात्र के मौके पर दूर दराज से श्रद्धालु यहां आते हैं. मान्यता है कि माता यहां आने वाले भक्तों की सारी मुरादें अवश्य पूरी करती हैं. इस ड्योढ़ी में महाअष्टमी की पूजा सबसे खास होती है, जिसमें हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ लगती है. बहरहाल भले ही 100 साल से अधिक का वक्त बीत गया हो, भले ही कई पीढ़ियां बदल गई हो, लेकिन राजघराने के इस ड्योढ़ी पर आज भी माता दुर्गा की पूजा उसी आस्था से होती है जो करीब 136 वर्ष पहले शुरू हुई थी.

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