Golghar Trip: बिहार राज्य न केवल भारत बल्कि विश्व में अपने ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है. इसका इतिहास करीब 3000 सालों से भी ज्यादा पुराना है. इन प्राचीन स्थलों में एक गोलघर (Golghar) भी है, जो करीब 336 साल पुराना ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया वस्तुकला का एक अद्भुत नमूना है. यह पटना के पश्चिमी किनारे पर गांधी मैदान के पास स्थित है. इस गोलघर को अंग्रेज़ों द्वारा 1770 में पटना में आए भयंकर अकाल के बाद 1,37,000 टन अनाज भंडारण के लिए बनाया गया था. आज यह ऐतिहासिक इमारत एक पर्यटन स्थल बन गयी है. आप जब भी पटना आएं तो गोलघर की सैर जरूर करें, जानें इसके पीछे का दिलचस्प इतिहास
जानें क्या है गोलघर का इतिहास
बिहार के गौरवशाली इतिहास और आधुनिक पटना की पहचान बने ‘गोलघर’ का निर्माण 1786 में कराया गया था. वर्ष 1770 में भयंकर सूखे से लगभग एक करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हुए थे. तब तत्कालीन गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने अनाज के भंडारण के लिए गोलघर निर्माण की योजना बनाई थी. ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने फौज के अनाज भंडारण के लिए इस गोल ढांचे का निर्माण 20 जनवरी, 1784 को प्रारंभ करवाया था. यह निर्माण कार्य 20 जुलाई, 1786 को संपन्न हुआ. कहा जाता है कि यह ऐतिहासिक गोलघर लगभग 235 साल प्राचीन हो चुका है और आज भी संरक्षित है.
गोलघर बनाने का उद्देश्य क्या था
गोलघर को क्यों बनवाया गया था इसके पीछे बेहद ही दिलचस्प कहानी है. कहा जाता है कि लगभग 1770 के आसपास बिहार राज्य भयंकर सूखे के दौर से गुजर रहा था. इस भयंकर सूखे में लगभग करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हुए थे. करोड़ों लोग शहर को छोड़कर चले भी गए थे. इस भयानक दौर के बाद उस समय के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने गोलघर के निर्माण की योजना बनाई ताकि अनाज को स्टोर कर जा सकें.
गोलघर की खासियत
इस घर में 140,000 टन अनाज रखा जा सकता है. यह गोलघर 125 मीटर चौड़ा और 29 मीटर ऊंचा है. इसकी खासियत है कि इसमें एक भी स्तंभ नहीं है. इसकी दीवारें 3.6 मीटर मोटी हैं. गोलघर में ऐसे तो ईंटों का प्रयोग हुआ है लेकिन इसके शिखर पर लगभग तीन मीटर तक ईंट की जगह पर पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है. कहा जाता है कि मजदूर एक ओर से अनाज लेकर गोलघर के शीर्ष पर पहुंचते थे और वहां बने दो फीट सात इंच व्यास के छिद्र में अनाज डालकर दूसरी ओर की सीढ़ी से उतरते थे. वैसे बाद में इस छिद्र को बंद कर दिया गया. 145 सीढियों को तय कर गोलघर के ऊपरी सिरे पर पहुंचा जा सकता है. यहां से शहर के एक बड़े हिस्से खासकर गंगा तट के मनोहारी दृश्य को देखा जा सकता है.
वास्तु-कला
गोलघर की वास्तु-कला की सबसे खास बात यही है कि ब्रिटिश काल में बना होने के बाद भी इसकी संरचना प्राचीन भारत के बौद्ध स्तूपों के जैसी है. इसका आकार मधुमक्खी के छत्ते के जैसा बनाया गया था.इसकी इसी अर्ध-गोलाकार सरंचना के कारण इसका नाम “गोलघर” पड़ा. गोलघर अपने आप में ही अनोखी इमारत है. गोलघर के अंदर एक ही आवाज 27-32 बार गूँजतीं है. इसके आकार के कारण इसकी तुलना मोहम्मद आदिल शाह के मकबरे से भी की जाती है. गोलघर की ऊंचाई 29 मीटर , नींव 125 मीटर और इसकी दीवारें 3.6 मीटर मोटी है जो की अनाज को नमी से बचाने में काफी सहायक हुआ करतीं थीं. गोलघर में एक भी खंभे का न होना इसे वास्तु-शिल्प का एक अद्भुत उदाहरण बनाता है.
गोलघर टिकट प्राइस
कुछ समय पहले तक गोलघर आने के लिए कोई एंट्री फी नहीं हुआ करती थी पर अब आपको 5 रुपये देने पड़ेंगे, और अगर आप लेजर और लाइट शो देखना चाहतें हैं तो तो आपको प्रति व्यक्ति 25 रुपये देने पड़ेंगे. विद्यार्थियों के लिए ये फी केवल 15 रुपये है. यदि आप लेजर और लाइट शो का टिकट लेते हैं तो आपको 5 रुपये का टिकट लेने की कोई जरूरत नहीं है.
टाइमिंग
गोलघर पर्यटकों के लिए सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है. सोमवार को यह बंद रहता है.