विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से वर्ष 2007-8 तक में प्राप्त विविध अनुदान निर्देशानुकूल उपयोग नहीं करने पर खर्च के बावजूद आवंटित अनुदान राशि लौटानी पड़ी है. लाखों के रकम की वापसी सही खर्च के बाद भी उसकी उपयोगिता भेजने की समय सीमा का उल्लंघन के कारण करनी पड़ी है. और तो और उपयोगिता प्रपत्र तैयार करने में अपना दिमाग लगा देने पर भी यूजीसी ने अपनी अनुदान राशि वापस मांग ली है. वहीं 2012-13 में प्राप्त कुल 30 लाख 27 हजार 380 रुपये ब्याज सहित लौटने पड़े हैं. कुल मिलाकर यूजीसी की 10 वीं व 12 वीं योजनाओं के विविध मद में प्राप्त कुल 56 लाख 5,212 रुपये ग्रांट (अनुदान) और उस पर बैंक खाते में अर्जित एक लाख 15 हजार का ब्याज तक वापस लौटा दिया गया है.
इतना कुछ करने के बाद भी पश्चिम चंपारण जिला के एकमात्र पोस्ट ग्रेजुएट और ऐतिहासिक कॉलेज को मिला 12 बी का दर्जा यूजीसी ने वापस ले लिया है. इससे भी हैरत की बात यह है कि उपरोक्त अनुदान राशि की वापसी के कारक/कारण के रूप में आरोपित पूर्ववर्ती प्राचार्य, प्राध्यापक और लिपिकीय स्टॉफ में से कुल 11 आरोपितों ने वर्त्तमान प्राचार्य द्वारा खुद को गबनकारी बता नोटिस देने को अपनी मानहानि करार देते हुए अलग अलग लिगल नोटिस भेजा है. जिसके बाद से कॉलेज प्रशासन का माहौल और गरमा गया है.
प्राचार्य डॉ. सुरेन्द्र केसरी ने बताया कि एमजेके कॉलेज से वापस लिया गया 12 बी का स्टेट्स वापस नहीं लौटा तो इस ऐतिहासिक कॉलेज के परिचालन में मेरे पदस्थापन और कार्यकाल के पूर्व की गयी गलतियों का खामियाजा भुगतने के लिये कॉलेज के वर्त्तमान के करीब 12 हजार विद्यार्थी अभिशप्त होंगे. इसके साथ ही डॉ. केसरी ने यह भी बताया कि कॉलेज की शर्मनाक स्थिति को लेकर यूजीसी विधिक सलाहकार व सर्वोच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता मनोज रंजन सिन्हा ने भी एक लिगल नोटिस भेजा है. जिसमें एमजेके कॉलेज को ब्रीच ऑफ ट्रस्ट(विश्वास तोड़ने वाला) ग्रांट फंड का दुरुपयोगी और सरकारी फंड का आपराधिक उपयोग जैसे आरोप मढ़े हैं. इस सबके लिए हमारे पूर्ववर्ती जिम्मेदार हैं. बावजूद इसके जारी एक नोटिस में संबंधित के लिए लिपिकीय भूल बस ‘गबनकारी’ शब्द का उपयोग हो जाने पर कुल 11 लोगों के द्वारा भी अपनी मानहानि का अलग अलग नोटिस भेजा गया है.