UGC ने पीएचडी के नियमों में बदलाव किया है. अब रिसर्च पेपर की अनिवार्यता को यूजीसी ने खत्म कर दिया है. यूजीसी के चेयरमैन प्रो एम जगदीश कुमार ने प्रभात खबर को बताया कि नये नियम में यह कहा गया है कि अब पीएचडी थीसिस सबमिट करने से पहले जर्नल्स में रिसर्च पेपर पब्लिश कराना अनिवार्य नहीं है. पीएचडी में रिसर्च पेपर की अनिवार्यता खत्म कर दी गयी है. प्रो कुमार ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि पीएचडी स्कॉलर पीयर रिव्यू जर्नल्स में रिसर्च पेपर पब्लिश कराना छोड़ दें. जब आप डॉक्टरेट डिग्री के बाद करियर में आगे बढ़ेंगे तो जर्नल में छपे रिसर्च पेपर आपकी प्रोफाइल में वैल्यू एड करेंगे.
उन्होंने कहा कि पीएचडी गाइडलाइन में बदलाव करके यह बताने की कोशिश की है कि सभी विषयों को एक ही नजर से देखना और उनके लिए समान अप्रोच रखना जरूरी नहीं है. कंप्यूटर साइंस में पीएचडी कर रहे कई स्कॉलर अपना रिसर्च पेपर जर्नल में प्रकाशित कराने की बजाय कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत करना पसंद करते हैं.
संशोधित नियमों के अनुसार चार साल के अंडर ग्रेजुएट कार्यक्रमों के बाद पीएचडी कार्यक्रमों में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स को एक साल की मास्टर डिग्री करनी अनिवार्य है, जबकि पारंपरिक तीन साल की यूजी डिग्री के स्टूडेंट्स को दो साल की मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद ही पीएचडी में एडमिशन मिल सकता है. इसके साथ रिसर्च की गुणवत्ता और जांच के लिए रिसर्च स्टूडेंट्स को छह माह में एक बार एक शोध सलाहकार समिति के सामने प्रस्तुत होना पड़ता था और अपने कार्य के मूल्यांकन और आगे के मार्गदर्शन के लिए एक रिपोर्ट पेश करनी होती थी, लेकिन अब उन्हें प्रत्येक सेमेस्टर में ऐसा करना होगा.
अब मास्टर ऑफ फिलॉसफी के स्कॉलर को किसी एक सम्मेलन या संगोष्ठी में कम-से-कम एक शोध पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य था. वहीं, पीएचडी के लिए फाइनल थीसिस जमा करने से पहले किसी पीयर-रिव्यू जर्नल में कम-से-कम एक रिसर्च पेपर प्रकाशित करना और दो पेपर को प्रस्तुत करना अनिवार्य था. इस नये नियमों की जानकारी सभी यूनिवर्सिटियों को दे दी गयी है.
रिपोर्ट: अनुराग प्रधान