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Bihar news: यूक्रेन के विश्वविद्यालय फीस के लिए बना रहे छात्रों पर दबाव, मुश्किल में मेडिकल के छात्र

यूक्रेन (Ukraine University) से युद्ध के कारण पढ़ाई छोड़कर वापस लौटे उत्तर बिहार के छात्रों का कहना है कि युद्ध बंद नहीं हो रहा है. अभी वे वापस जाकर पढ़ाई नहीं कर सकते. एमबीबीएस में ऑनलाइन पढ़ाई का कोई महत्व नहीं है.

यूक्रेन के विश्वविद्यालयों (Ukraine University) से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों की मुश्किलें अपने देश वापस लौटने के बाद भी कम नहीं हुई है. युद्ध की वजह से पांच महीने पहले घर लौटे बिहार सहित देश के अन्य राज्यों के छात्रों पर संबंधित विश्वविद्यालय और कॉलेज की ओर से 15 अगस्त तक फीस जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है.

मुश्किल में MBBS के छात्र

बताया जा रहा है कि फीस जमा नहीं करने पर निष्कासित कर देंगे. छात्रों को इस बात की चिंता है कि पांच महीने हो गए, लेकिन अब तक भारत सरकार की ओर से कोई भी कदम नहीं उठाया गया है, जिससे उनकी आगे की पढ़ाई सुचारू रूप से चल सके. इसको लेकर मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, चंपारण सहित बिहार के विभिन्न जिलों के मेडिकल छात्रों के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से जुटे छात्रों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में पांच दिवसीय भूख हड़ताल करके सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया था.

राज्य स्तर पर आंदोलन की तैयारी कर रहे छात्र

यूक्रेन से वापस लौटे छात्र अब राज्य स्तर पर आंदोलन करने की तैयारी कर है. सीतामढ़ी के धनुषी निवासी मनोज कुमार के पुत्र आदित्य गौरव (नीट 2020 में 521 अंक) व कृष्णनंदन किशोर के पुत्र शिवम कुमार (नीट 2020 में 519अंक) के साथ ही अलग-अलग जगहों से सैकड़ों मेडिकल छात्र हड़ताल में शामिल हुए. छात्र आदित्य गौरव ने बताया कि यदि सरकार और एनएमसी जल्द से जल्द फैसला नहीं देती है, तो देश के सभी राज्यों की राजधानी में आंदोलन शुरू होगा. छात्र ने कहा कि हम छात्रों की मांग बस यही है कि हमें भारत के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करने के लिए दाखिला दे दिया जाए. इसमें ऐसे तमाम छात्र है जिनका नीट का नंबर 500 से अधिक है.

‘वापस यूक्रेन जा नहीं सकते, बर्बाद हो जाएगा कॅरियर’

यूक्रेन से युद्ध के कारण पढ़ाई छोड़कर वापस लौटे उत्तर बिहार के छात्रों का कहना है कि युद्ध बंद नहीं हो रहा है. अभी वे वापस जाकर पढ़ाई नहीं कर सकते. एमबीबीएस में ऑनलाइन पढ़ाई का कोई महत्व नहीं है. हमारे देश में डॉक्टर की कमी है. यदि भारत में दाखिला मिलता है तो उनको पढ़ाई में सुविधा मिलेगी. उनका कहना है कि वे इस समय काफी खराब मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं. यूक्रेन या विदेश जो भी छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं, वे पैसे की कमी के कारण जाते हैं. उनके पास इतना पैसा नहीं होता कि भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस का बोझ उठा सकें.

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