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जूड़शीतल में बासी खाना खाने की अनूठी परंपरा, मिथिलावासी मनाते हैं नये वर्ष के रूप में

जुड़शीतल के पावन पर्व में वर्षभर खाना पकाने वाले चूल्हे को भी इस दिन आराम दिया जाता है. मिथिलांचल वासियों के घरों में इस दिन चूल्हा नहीं जलाने की भी अनोखी परंपरा रही है. जुड़शीतल पर्व में दिन व रात्रि भोजन के सारे व्यंजन एक दिन पूर्व की रात्रि में ही बना लिया जाता है.

मिथिला में प्रकृति की पूजा अलग-अलग रूपों में की जाती है. जुड़शीतल भी मिथिला की संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व है. यह पर्व मैथिली पंचांग के मुताबिक मेष संक्रांति के एक दिन बाद मनाया जाता है. इस दिन को मिथिलावासी नूतन वर्ष के रूप में मनाते हैं. यह अनूठा पर्व प्रेम एवं आस्था का प्रतीक है. यह पर्व पांच अप्रैल को सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जायेगा. घर के बड़े-बुजुर्ग विशेषकर महिलाएं इस दिन अपने परिवार समेत पास-पड़ोस के बच्चों को स्नेहसिक्त शीतल जल को अंजलि से माथे पर थपथपा कर सुख-शांति, दीर्घायु एवं जीवन में शीतलता का आशीर्वाद देती हैं. फिर मिथिलावासी सुखी मिट्ठी से एवं मिट्टी और पानी मिश्रित कीचड़ में धुरखेल खेलते है. इसमें लोग एक-दूसरे को कीचड़ लगाते हैं. इस अवसर पर लोग अपने स्वर्गवासी माता-पिता व पूर्वजों के स्मृति स्थल पर जल चढ़ाते हैं.

जुड़शीतल में बासी भोजन करने की परंपरा

पंडित राकेश झा ने बताया कि जुड़शीतल के पावन पर्व में वर्षभर खाना पकाने वाले चूल्हे को भी इस दिन आराम दिया जाता है. मिथिलांचल वासियों के घरों में इस दिन चूल्हा नहीं जलाने की भी अनोखी परंपरा रही है. जुड़शीतल पर्व में दिन व रात्रि भोजन के सारे व्यंजन एक दिन पूर्व की रात्रि में ही बना लिया जाता है. इस पर्व में ख़ास परंपरा है कि इस दिन कुलदेवी एवं भगवती को बासी भात का भोग लगाया जाता है. इस दिन विशेषकर रूप से रातभर पानी में भिगोया हुआ बासी भात, कढ़ी-बड़ी, दाल की पूड़ी, सहजन की सब्जी, बासी पकौड़े व प्रकृति से जुड़ते हुए आम की चटनी को जुड़ायेल भोजन के रूप ग्रहण किया जाता है. इस दिन पेड़-पौधे की जड़ों में भी पानी दिया जाता है. मिथिलांचल का यह लोकपर्व आदिकाल से चला आ रहा है.

स्नेहसिक्त जल

गंगाधर झा ने बताया कि सतुआन की रात में शुद्ध एवं पवित्रता से भरे हुए जल काे मिट्टी के घड़े, तांबा के पात्र या शंख में ढक कर रख दिया जाता है, जिसे स्नेहसिक्त जल कहते हैं. फिर जुड़शीतल के दिन प्रात:काल की बेला में बड़े-बुजुर्ग सभी के ऊपर तथा चारों ओर जल का छिड़काव करते हैं. पुरातन परंपराओं के अनुसार बासी जल के छींटे से पूरा घर व आंगन शुद्ध व पवित्र हो जाता है. इससे घर-गृहस्थी में शांति व उन्नति मिलती है तथा आपसी स्नेह, अपनत्व, आपसी जुड़ाव में भी वृद्धि होती है.

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र व सिद्ध योग में सत्तुआनी आज

ग्रहों के अधिपति सूर्यदेव वैशाख कृष्ण नवमी 14 अप्रैल को उत्तराषाढ़ नक्षत्र व सिद्ध योग में मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य का यह गोचर हिंदू धर्मावलंबियों के लिए खास महत्व रखता है. सूर्य के मेष राशि में गोचर से इसे मेष संक्रांति कहा जाता है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग में सतुआनी का पर्व मनाया जायेगा. इसके साथ ही विगत एक माह से चला आ रहा खरमास भी इस दिन समाप्त हो जायेगा.

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बंगला नववर्ष 1430 भी शुरू हो जायेगा

ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि वैशाख कृष्ण नवमी को बनारसी पंचांग के अनुसार शुक्रवार की शाम 04:47 बजे वही मिथिला पंचांग के अनुसार शाम 05:26 बजे अश्विनी नक्षत्र की उपस्थिति में सूर्य मीन राशि से मेष राशि में गोचर करेंगे. इसी दिन से बंगला नववर्ष 1430 भी शुरू हो जायेगा. इस दिन सूर्यदेव की कृपा पाने एवं पितरों को संतुष्ट करने के लिए सत्तू, गुड़, चना, पंखा, सजल घट, आम, ऋतु फल एवं अन्य दान का विशेष महत्व है. मेष राशि स्थित सूर्य में सत्तू एवं जल पूर्ण पात्र दान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. सूर्य के मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही ग्रीष्म ऋतु का आरंभ हो जाता है.

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