प्रवीण कुमार चौधरी, दरभंगा. लनामिवि के एपीजे अब्दुल कलाम आजाद वीमेंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एपीजेएकेडब्ल्यूआइटी) के को-एजुकेशन के तौर पर स्वरूप परिवर्तन व परीक्षा के लिये आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के हवाले करने की कवायद को झटका लग गया है. संस्थान के संस्थापक कुलपति सह सलाहकार परिषद के सदस्य प्रो. राजमणि प्रसाद सिन्हा ने इसके विरोध में इस्तीफा देने का प्रस्ताव विवि को भेज दिया है.
नारी शिक्षा के प्रति समर्पित डब्ल्यूआइटी को को-एजुकेशन के रूप में परिवर्तित करने के खिलाफ अपना मंतव्य भी कुलपति को भेजा है. कहा है कि इसमें अगर बदलाव होता है, तो न केवल संस्थान का स्वरूप बदल जाएगा, बल्कि इसकी स्थापना का उद्देश्य ही समाप्त हो जाऐगा. कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह से कहा है कि ”अब विश्वविद्यालय आपके मार्गदर्शन में है. अनुरोध करना चाहता हूं कि इसे को-एजुकेशन का केंद्र बनाना उचित नहीं है.
यदि ऐसा होता है तो कृपया मेरी असहमति को नोट करें और डब्ल्यूआइटी सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में मेरा इस्तीफा स्वीकार करें.” कहा है कि डब्ल्यूआइटी के स्वरूप बदलने का निर्णय बिहार सहित मिथिला के हित में बिल्कुल नहीं होगा. संस्थान की स्थापना के पीछे हर गांव से एक लड़की को इंजीनियर बनाने का सपना था. बिहार में आज भी तकनीकी शिक्षा के मामले में लड़कियां काफी पीछे है. लड़कों के लिए बिहार में कॉलेज की कमी नहीं है. इसे केवल लड़कियों के लिए ही समर्पित रखना चाहिए.
संस्थान को एकेयू के हवाले किये जाने पर कहा है कि आप (कुलपति) वर्तमान में एकेयू के प्रभारी हैं, जो बिहार के इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों की परीक्षा बहुत कम बुनियादी ढांचे के साथ आयोजित कर रहा है. प्रो. सिंहा खुद एकेयू के विभिन्न निकायों के सदस्य थे. इसकी वर्तमान स्थिति की जानकारी है. एकेयू को डब्ल्यूआइटी की परीक्षा सौंपने में देरी करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि एलएनएमयू का परीक्षा विभाग एकेयू से बेहतर है. एकेयू को सौंपने से परीक्षा में देरी हो सकती है, जिससे छात्राओं को भारी नुकसान हो सकता है.
डॉ कलाम के परम मित्र व देश को तेजस लड़ाकू विमान देने वाले रक्षा वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ मानस बिहारी वर्मा संस्थान के पहले निदेशक बने थे. उनके नेतृत्व में संस्थान आगे बढ़ा. जीवन के अंतिम समय तक वे इसके मैनेजिंग काउंसिल के सदस्य बने रहे.
डब्ल्यूआइटी के 16 साल के सफर में ग्रामीण क्षेत्रों की सैकड़ों लड़कियां इंजीनियर बनकर सफलता की राह पर आगे बढ़ी. ये लड़कियां आज महानगरों में अपनी क्षमता का दम दिखा रही हैं. संस्थान का अगर स्वरूप बदला तो नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य को बड़ा झटका लगेगा. देश सात महिला प्रौद्योगिकी संस्थान में बिहार से इसे एकमात्र महिला प्रौद्योगिकी संस्थान होने का गौरव प्राप्त है.
संस्थान के स्वरूप में परिवर्तन के निर्णय के खिलाफ विभिन्न छात्र संगठनों ने भी मोर्चा खोल दिया है. छात्र संगठनों का कहना है कि किसी कीमत पर संस्थान के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं होने दिया जाएगा.
बता दें कि 2004 में पटना से हरनौत की रेल यात्रा में बिहार के सभी कुलपतियों के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने बातचीत की थी. उसी क्रम में मिथिला विवि के तत्कालीन कुलपति प्रो. राजमणि प्रसाद सिन्हा ने उन्हें दरभंगा में महिला प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना के अपने विजन से अवगत कराया था.
प्रस्ताव सुन डॉ कलाम काफी खुश हुए और सहयोग का भरोसा दिया. इसके बाद विश्वविद्यालय ने प्रोजेक्ट तैयार किया. एआइसीटीई से सितंबर 2004 में स्वीकृति मिली. इसके बाद राष्ट्रपति भवन में भेंट के दौरान डॉ कलाम ने कुलपति प्रो. सिन्हा को वल्लम (तमिलनाडु) में संचालित लड़कियों के इंजीनियरिंग कॉलेज का भ्रमण करने को कहा.
विवि की टीम वल्लम गई और वहां के संस्थान का भ्रमण कर दरभंगा में डब्ल्यूआइटी की नींव डाली. 30 दिसंबर 2005 को बतौर राष्ट्रपति डॉ कलाम ने दरभंगा आकर इसका उदघाटन किया था. आज यह संस्थान डॉ कलाम के नाम से जाना जाता है.
Posted by Ashish Jha