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लुप्त होने के कगार पर है घाघरा नदी

हाजीपुर : प्रशासनिक उपेक्षा एवं लोगों में सामूहिक जिम्मेवारी की घटती प्रवृत्ति के कारण लुप्त होने के कगार पर है उत्तर बिहार की प्रमुख नदी घाघरा. वैशाली जिले में लालगंज, भगवानपुर, हाजीपुर, देसरी, सहदेई आदि प्रखंडों से गुजरते हुए महनार प्रखंड में वाया नदी में मिलती है, जो आगे जाकर गंगा नदी में मिल जाती […]

हाजीपुर : प्रशासनिक उपेक्षा एवं लोगों में सामूहिक जिम्मेवारी की घटती प्रवृत्ति के कारण लुप्त होने के कगार पर है उत्तर बिहार की प्रमुख नदी घाघरा. वैशाली जिले में लालगंज, भगवानपुर, हाजीपुर, देसरी, सहदेई आदि प्रखंडों से गुजरते हुए महनार प्रखंड में वाया नदी में मिलती है, जो आगे जाकर गंगा नदी में मिल जाती है.

आरंभिक दिनों में यह नदी जिले में सिंचाई के प्रमुख साधन के रूप में प्रयुक्त होती थी और बरसात में जिले के अधिकांश हिस्सों से जल निकासी का प्रमुख साधन थी. कृषि कार्य हेतु आवश्यकता पड़ने पर गंडक नदी से आवश्यक जल का वितरण होता था, जो इसके बहाव के पूरे क्षेत्र में नदी की दोनों किनारों की हजारों एकड़ जमीन की सिंचाई का प्रमुख साधन थी.

किसानों के लिए काफी उपयोगी होने एवं जलनिकासी के सामूहिक हित से जुड़े होने के बावजूद अंगरेजों ने नदी में पड़नेवाले जमीन का अधिग्रहण नहीं किया और पूरी नदी रैयती जमीन रह गयी. रैयती जमीन होने के कारण कभी इस नदी की सफाई नहीं हुई. फलत: मिट्टी भरते-भरते पूरी नदी उथरी हो गयी और अब केवल बरसात के दिनों में ही इसमें पानी दिखता है.

फलत: सिंचाई के लिए अब पूरी तरह निर्थक हो चुकी यह नदी आजादी के सातवें दशक तक केंद्र व राज्य सरकार लगातार किसानों के बेहतरी के लिए योजनाएं बनाती रही, लेकिन किसी ने घाघरा की सुधी नहीं ली और उसकी भूमि का अधिग्रहण नहीं किया.

हाल के दिनों में जमीन की कीमत में आयी ज्यामीतिय तेजी और लोगों में सामूहिक हितों की अनदेखी की बढ़ती प्रवृत्ति ने इसके स्वरूप को पूरी तरह बिगाड़ दिया और अब यह जलनिकासी के साधन के रूप में भी निष्प्रभावी सिद्ध हो रही है.

अपेक्षाकृत अधिक जनसंख्या घनत्ववाले इस जिले में जैसे-जैसे घर बनाने की वास योग्य जमीन की कमी होती गयी, लोगों ने नदी के पाट को भर-भर कर घर बनाना प्रारंभ कर दिया तो कई जगह लोगों ने मिट्टी भर कर नदी को भीठ के रूप में बना कर बगीचा लगा दी. अपने पूरे बहाव क्षेत्र में इस नदी के पाट में सैकड़ों घर बन गये और सैकड़ों एकड़ जमीन भर कर घर बनाने की तैयारी की जा रही है, क्योंकि कोई व्यक्ति सार्वजनिक हित में अपनी जमीन खाली छोड़ने को तैयार नहीं है.

नदी के उथरा होने और पाट सीमटने का दुष्परिणाम जिले के नागरिक वर्ष 2007 में भुगत चुके हैं. तथापि न तो किसी राजनीतिक सामाजिक संगठन या किसी नागरिक ने इसके संरक्षण की मांग उठायी ओर न ही जिला प्रशासन ने ऐसी पहल की.
यदि प्रशासन एवं नागरिक सचेत नहीं हुए ते आनेवाले दिनों में जलनिकासी की भारी समस्या का सामना करना पड़ेगा और तब हल आसान नहीं होगा.
– कुमार हरिभूषण –

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