कहां गयीं दो दर्जन चिट फंड कंपनियां
हाजीपुर : चिट फंड कंपनियों व नन बैंकिंग कंपनियों पर हो रही छापेमारी के बावजूद लोगें से पैसा जमा करवाने में प्रजातंत्र की जननी वैशाली का जिला मुख्यालय, हाजीपुर भी अछूता नहीं रहा. चिट फंड कंपनियों का जाल जब 1992 में बीछना शुरू हुआ था उस समय भी नगर के गुदरी बाजार स्थित सोनी अलंकार […]
हाजीपुर : चिट फंड कंपनियों व नन बैंकिंग कंपनियों पर हो रही छापेमारी के बावजूद लोगें से पैसा जमा करवाने में प्रजातंत्र की जननी वैशाली का जिला मुख्यालय, हाजीपुर भी अछूता नहीं रहा. चिट फंड कंपनियों का जाल जब 1992 में बीछना शुरू हुआ था उस समय भी नगर के गुदरी बाजार स्थित सोनी अलंकार कॉम्प्लेक्स में जेवीजी कंपनी ने अपना कार्यालय खोल कर अपना कारोबार शुरू किया था.
तब दैनिक, मासिक, सावधि जमा के लुभावने स्कीम चालू किये गये थे. लोगों को तीन वर्ष में दोगुना तथा 10 वर्ष में पांच गुणा करने का सब्जबाग दिखाया गया था. वर्ष 1998 आते-आते इस कंपनी का पांव गांवों तक फैल चुका था, लेकिन जब निवेशकों को भुगतान का समय आया तो धीरे-धीरे एजेंट लापता होने लगे और फिर कंपनी ने रातों रात अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया.
वर्ष 1992-98 तक जिले में जेवीजी फिनांस, जेवीजी फूड लिमिटेड, जेवीजी सिक्यूरिटी लिमिटेड, जेवीजी लीजिंग लिमिटेड, जेवीजी रीयेल इस्टेट, कैसियॉन, पॉलिएक्टिव फिनांस लिमिटेड, डॉल्फिन इकॉनोमी लिमिटेड ने काम कर लोगों का काफी रुपया लूटा.
इन कंपनियों के एजेंट 25 से 30 प्रतिशत कमीशन के चक्कर में पड़ कर लोगों से पैसा जमा करवाये, लेकिन जब ये कंपनियां भागीं तो इनके कार्यालयों पर ताला लटक गया जो अभी तक बंद हैं. लोगों ने इस मामले में थाने से लेकर न्यायालय तक प्राथमिकी दर्ज करवायी, लेकिन इन कंपनियों के भागने से एजेंटो को परेशानी हुई. एजेंटों को अपनी जमीन बेच कर पैसा देना पड़ा.
कुछ एजेंट घर छोड़ कर भाग गये जो अभी तक वापस नहीं आये, लेकिन अधिकतर लोगों का पैसा डूब गया. लोग इन नामी कंपनियों द्वारा सताये जाने को भुले भी नहीं थे कि नगर के राजपूत नगर में चल रही इंडिया डॉट कॉम ने अपना कारोबार एक दुकान में शुरू किया. इस चिट फंड के मालिक भारतीय स्टेट बैंक के शाखा प्रबंधक विनोद श्रीवास्तव राजपूत नगर से प्रत्येक घर से लगभग पांच लाख रुपये लेकर भाग निकले.
यह कंपनी लोगों को कम समय में पांच गुना पैसा वापस करने का आश्वासन देकर पैसा जमा लेती थी और विश्वास में लेने के लिए ब्रांडेड कंपनियों के टीवी, फ्रि ज आधा से कम दाम पर बेचा करती थी. कंपनी के भाग जाने के बाद इसके मालिक किसी दूसरे राज्य में अपना ट्रांसफर करा लिये.
कंपनी का कार्यालय औद्योगिक थाने ने सील कर दिया था, लेकिन किराया का मकान होने के कारण कुछ दिनों बाद खुल गया. अगर पुलिस चाहती तो इसके मालिक विनोद श्रीवास्तव को गिरफ्तार कर सकती थी, लेकिन उसने इसकी जरूरत नहीं समझी. कोई कंपनी रियल इस्टेट, तो कोई बकरी पालन, प्लांटेशन जैसे अनेक तरह के कामों को दिखा कर लोगें का पैसा ठगने का काम करती हैं.
जिले में काफी समय बाद नया सवेरा लोगों की मेहनत की कमाई की मोटी रकम लेकर भागा है. नया सवेरा के मालिक के पुराने जानकारा लोग बताते हैं कि यह व्यक्ति पटना में काफी वर्षो पहले सवेरा लाइजिंग एंड इंवेस्टमेंट एवं फिनांस नामक कंपनी चलाता था. उसके बाद शहर में 2005 के आसपास अर्थ ट्रस्ट सवेरा एक साथी के नाम से कंपनी चलाता था.
यह भी प्रयाग ग्रुप तथा सारधा ग्रुप की तर्ज पर सवेरा ग्रुप का मालिक बन चुका था. वहीं नगर के गुदरी बाजार में लगभग दो दर्जन लोगों ने मिल कर व्यावसायिक संगठन नामक कंपनी खोला था, जिसमें शहर के लोगों से काफी पैसा जमा कराया गया और भुगतान के समय सभी पार्टनर भाग निकले. इस मामले में अभी तक कुछ लोगों का पैसा नहीं मिल पाया.
इस मामले में कई मामले न्यायालयों में लंबित चल रहे हैं. शहर के मुख्य जगहों पर इस तरह की नन बैंकिंग कंपनियां जो लोगें का पैसा जमा करा कर चंपत हो जाती हैं, इसकी जानकारी जिला प्रशासन के आला अधिकारियों को होने के बावजूद भी इनके संचालकों के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाये जाने से लोगों की मेहनत की कमाई डूब जाती है. सेबी के नियमों को देखे तों ऐसी कंपनियों से जुड़े लोगें को शीघ्र गिरफ्तार करने का निदेश दिया गया है, लेकिन यहां कुछ नहीं हो पाता है.
राज्य में तेजी से चिट फंड कंपनियों के भागने के क्रम में राज्य की आर्थिक अपराध इकाई के आइजी ने सभी जिलों के पुलिस कप्तानों को प्रयाग ग्रुप, बियर्ड, सारधा ग्रुप समेत अन्य नन बैंकिंग कंपनियों के बारे में सूचना उपलब्ध कराने के लिए कहा था, लेकिन नगर के गांधी चौक स्थित डॉ एचएन गुप्ता कॉम्प्लेक्स में संचालित हो रही स्वर्ण भैली, विश्वामित्र तथा नगर के राजेंद्र चौक पर स्थित नया सवेरा के कार्यालयों में कार्रवाई की गयी होती तो जिले के गरीब लोगों का पैसा नहीं डूबता.
जिले में कितनी नन बैंकिंग कंपनियां अपना काम कर रही हैं, इसका पता भी जिला प्रशासन को नहीं है. जिले से सबसे पहले देसरी प्रखंड के पटेल चौक स्थित बियर्ड इंफ्रा नामक कंपनी भागी थी ओर सबसे अंत में जिले के लोगों की मोटी रकम लेकर नया सवेरा नामक चिट फंड कंपनी भाग निकली. कल कंपनी के कर्मचारियों के भाग जाने के बाद पुलिस उसके खिलाफ कुछ करने के बावजूद कोई आवेदक द्वारा लिखित शिकायत नहीं किये जाने के कारण उसके संचालक के विरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी.
बिहार की 182 कंपनियों ने रिजर्व बैंक को लाइसेंस के लिए आवेदन दिया था, लेकिन जब आरबीआइ ने उनकी तहकीकात की तो कंपनियों का कोई अता पता नहीं चला, जिसमें जिले की सोलह कंपनियां शामिल थीं जो आज भी जिले के कुछ प्रखंडों में काम कर रही हैं.
– राहुल अमृत राज –