नहाय-खाय के साथ छठव्रत शुरू, खरना आज

महापर्व. व्रतियों ने बनायी कद्दू की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल का प्रसाद नहाय-खाय के लिए घाटों पर स्नान को उमड़ी व्रतियों की भीड़ हाजीपुर : मंगलवार को नहाय-खाय के साथ महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान आरंभ हो गया. बड़ी संख्या में छठव्रतियों ने गंगा-गंडक के संगम में स्नान किया और पूर्ण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 25, 2017 4:21 AM

महापर्व. व्रतियों ने बनायी कद्दू की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल का प्रसाद

नहाय-खाय के लिए घाटों पर स्नान को उमड़ी व्रतियों की भीड़
हाजीपुर : मंगलवार को नहाय-खाय के साथ महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान आरंभ हो गया. बड़ी संख्या में छठव्रतियों ने गंगा-गंडक के संगम में स्नान किया और पूर्ण रूप से शुद्धता बरतते हुए शाकाहारी भोजन ग्रहण किया. नहाय-खाय को लेकर नगर के कोनहारा घाट समेत अन्य गंडक घाटों पर सुबह से ही व्रतियों की भीड़ जुटने लगी थी. नहाय-खाय के बाद छठ व्रतियों ने अरवा चावल, चने का दाल और कद्दू की सब्जी का प्रसाद ग्रहण किया. इसके बाद व्रती महिलाएं गेहूं धोकर सूखाने में लगी रहीं. मिट्टी के चूल्हे, आम की लकड़ी आदि की व्यवस्था में भी महिलाएं व्यस्त दिखीं. उधर, बाजार में पूजा के सामान की खरीदारी के लिए जबर्दस्त भीड़ रही.
शुद्धता और पवित्रता का पर्याय है छठ पर्व : सूर्य उपासना का यह पर्व पूरे नियम-निष्ठा के साथ प्रत्येक घर में मनाया जाता है. अनुष्ठान के दौरान शुद्धता और पवित्रता का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है. नहाय-खाय के बाद दूसरे दिन खरना होता है. खरना के दिन व्रतधारी दिन भर उपवास पर रहकर घर-द्वार, चूल्हा-चौका, सबको धो-खंगाल कर स्वच्छ करने के बाद शाम को मिट्टी के चूल्हे पर पवित्र बर्तन में गुड़ की खीर बनाकर छठी मइया को भोग लगाते हैं. इसी प्रसाद को व्रती स्वयं ग्रहण करते हैं और घर के लोगों समेत मित्र व रिश्तेदारों को भी खिलाते हैं. खरना के बाद तीसरे दिन शुरू होता है संपूर्ण उपवास. इस दिन अन्न-जल सब कुछ का परित्याग किया जाता है.
व्रती एवं परिवार की अन्य महिलाएं मिलकर पूरे मनोयोग से ठेकुआ, कसार, खाजा, मिठाई आदि बनाती हैं. छठी मइया के गीत गा-गाकर महिलाएं यह कार्य करती हैं. इन पकवानों के अलावा फल, दूध, मेवा-मिष्टान्न, हल्दी, मूली, अदरक, ईख, अरतीपत्र, लौंग-इलाईची, गागर नींबू, नारियल, सिंदूर, अगरबत्ती, उबटन आदि सामग्री को बांस की टोकरी और सूप में सजाकर संध्या समय घाटों एवं जलाशयों के किनारे पहुंचते हैं. वहां छठ व्रती जल में खड़ा होकर डूबते सूर्य को अर्घ देते हैं. जब तक सूर्य अस्त नहीं हो जाता, तब तक व्रती हाथ जोड़े जल में खड़ा रहते हैं. चौथे दिन भोर से ही सभी लोग घाट किनारे पहुंचते हैं, जहां उदीयमान सूर्य को अर्घ दिया जाता है. उगते सूर्य को अर्घ देने के बाद घर लौटकर व्रती पारण करते हैं और इसी के साथ लोक अास्था के महापर्व का यह अनुष्ठान संपन्न हो जाता है. लोक जीवन में छठ पर्व की इतनी महत्ता है कि इस अवसर पर बड़े-छोटे, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब सबका भेद मिट जाता है.
लोगों का मानना है कि इस पर्व को सच्चे हृदय एवं विधि-विधान के साथ करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

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